इंदौर के कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय को सुप्रीम कोर्ट से मंगलवार को अग्रिम जमानत मिल गई। कोर्ट ने शर्त रखी है कि मालवीय को पुलिस जांच में पूरा सहयोग करना होगा, अन्यथा उनकी जमानत रद्द की जा सकती है। मालवीय पर आरोप है कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को लेकर विवादित कार्टून बनाया और उसे सोशल मीडिया पर वायरल किया था।
एफआईआर के मुताबिक, कार्टून में आरएसएस की वर्दी पहने एक व्यक्ति को प्रधानमंत्री मोदी को इंजेक्शन लगाते हुए दिखाया गया था। इसके अलावा कथित तौर पर भगवान शिव से जुड़ी टिप्पणियां भी थीं, जिन्हें अदालत ने अपमानजनक माना। शिकायत इंदौर निवासी विनय जोशी ने दर्ज कराई थी।
इससे पहले 23 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मालवीय ने सोशल मीडिया पर माफी मांगी थी। उन्होंने लिखा था कि उनके कार्टून या पोस्ट से किसी भी समुदाय, धर्म या व्यक्ति की भावनाओं को आहत करना उनका उद्देश्य नहीं था। उन्होंने खेद जताते हुए भविष्य में ऐसे कृत्य न दोहराने का आश्वासन दिया।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान मालवीय ने कहा था कि वे प्रधानमंत्री और आरएसएस के प्रति बनाए गए कार्टून के लिए सार्वजनिक माफी प्रकाशित करेंगे। अदालत ने उन्हें 10 दिनों में माफीनामा लिखने का आदेश दिया था। इसके बाद 25 अगस्त को उन्होंने फेसबुक और इंस्टाग्राम पर पोस्ट कर माफी मांगी।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जमानत मिलने के बावजूद अगर मालवीय ने जांच में सहयोग नहीं किया, तो जमानत रद्द कर दी जाएगी। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन की ओर संकेत करता है।
मालवीय का मामला हाल के वर्षों में अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर उठे विवादों में एक और उदाहरण बन गया है। यह मामला न केवल कला और व्यंग्य की सीमाओं पर चर्चा को जन्म देता है, बल्कि इस बात पर भी ध्यान आकर्षित करता है कि सोशल मीडिया पर किसी भी प्रकार की सामग्री कितनी संवेदनशील हो सकती है।