नई दिल्ली में जीएसटी काउंसिल की 56वीं बैठक की शुरुआत हो चुकी है। इस बैठक में कई अहम मुद्दों पर चर्चा हो रही है। विपक्षी शासित राज्यों ने साफ तौर पर कहा है कि जीएसटी व्यवस्था के चलते उनके राजस्व में भारी नुकसान हो रहा है और केंद्र सरकार को इसकी भरपाई का ठोस इंतजाम करना चाहिए।
बैठक में शामिल राज्यों का कहना है कि कोरोना महामारी और आर्थिक मंदी के बाद से राज्यों की वित्तीय स्थिति कमजोर हुई है। ऐसे में जीएसटी से मिलने वाले हिस्से पर ही उनकी निर्भरता बढ़ गई है। लेकिन मौजूदा व्यवस्था में टैक्स वसूली उम्मीद से कम है, जिससे बजट संतुलन बिगड़ रहा है। विपक्षी दलों का आरोप है कि केंद्र सरकार ने पहले वादा किया था कि जीएसटी लागू होने के बाद होने वाले किसी भी घाटे की पूरी भरपाई की जाएगी, लेकिन अब तक यह व्यवस्था पर्याप्त नहीं है।
सूत्रों के मुताबिक, काउंसिल की बैठक में विपक्षी राज्यों ने मांग रखी है कि राजस्व सुरक्षा के लिए एक विशेष कोष (फंड) बनाया जाए। इस फंड से राज्यों को उनकी वास्तविक जरूरत के अनुसार मदद दी जाए ताकि विकास कार्य प्रभावित न हों। इसके साथ ही कुछ राज्यों ने यह भी सुझाव दिया है कि जीएसटी संग्रह बढ़ाने के लिए टैक्स ढांचे को सरल बनाया जाए और दरों में तर्कसंगत सुधार किए जाएं।
वहीं, केंद्र सरकार का कहना है कि राज्यों को पहले ही मुआवजे के रूप में बड़ी राशि दी गई है और जीएसटी संग्रह लगातार बेहतर हो रहा है। सरकार का तर्क है कि आर्थिक गतिविधियों में तेजी आने से आने वाले महीनों में टैक्स वसूली में और बढ़ोतरी होगी, जिससे घाटे की भरपाई संभव हो सकेगी।
विशेषज्ञों का मानना है कि जीएसटी काउंसिल की यह बैठक राज्यों और केंद्र के बीच तालमेल बनाने के लिहाज से अहम साबित हो सकती है। यदि राजस्व सुरक्षा को लेकर कोई ठोस निर्णय लिया जाता है, तो राज्यों को बड़ी राहत मिल सकती है। साथ ही टैक्स सिस्टम में स्थिरता आएगी और निवेशकों का भरोसा भी मजबूत होगा।
कुल मिलाकर, जीएसटी बैठक में राज्यों की सबसे बड़ी चिंता रेवेन्यू की सुरक्षा है। अब देखना होगा कि काउंसिल इस पर किस तरह का समाधान निकालती है।