पटना:
बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले चुनाव आयोग द्वारा शुरू किए गए विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है। विपक्षी दलों ने इस प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाते हुए दलित, मुस्लिम और पिछड़े वर्गों को मताधिकार से वंचित करने की साजिश करार दिया है।
चुनाव आयोग ने साफ किया है कि यह प्रक्रिया फर्जी मतदाताओं को हटाने और नए योग्य वोटर्स को जोड़ने के लिए है। अधिकारियों के मुताबिक बीएलओ घर-घर जाकर इम्युमरेशन फॉर्म (गणना पत्र) बांट रहे हैं, जिसमें नाम, पता, फोटो, EPIC नंबर, आधार, मोबाइल, जन्मतिथि और अभिभावकों की जानकारी भरनी होगी। यह प्रक्रिया 29 जुलाई तक चलेगी।
विवाद क्यों हुआ?
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तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया कि इस प्रक्रिया में ऐसे दस्तावेज मांगे जा रहे हैं, जो वंचित तबकों के पास नहीं होते, ताकि उन्हें वोटर लिस्ट से बाहर किया जा सके।
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कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा कि यह सिर्फ लिस्ट से नाम हटाने की साजिश नहीं, बल्कि बिहारियों की पहचान और नागरिकता पर हमला है।
हालांकि, चुनाव आयोग ने स्पष्ट कर दिया है कि कोई भी वोटर छूटेगा नहीं। आयोग ने इसे पारदर्शी और समावेशी प्रक्रिया बताया है, जिसे 2003 के बाद पहली बार लागू किया गया है।
कुल मिलाकर, बिहार में वोटर लिस्ट को लेकर सियासी माहौल गर्म है, और इस मुद्दे पर विपक्ष चुनाव आयोग से सीधे टकराव की तैयारी में है।