सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ एक्ट को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बड़ा फैसला सुनाते हुए कानून को असंवैधानिक नहीं माना। अदालत ने साफ किया कि यह एक्ट संविधान के खिलाफ नहीं है और इसे लागू करने में कोई बाधा नहीं है। कोर्ट के इस फैसले का जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने स्वागत किया है, लेकिन संगठन ने कहा है कि जब तक यह कानून पूरी तरह रद्द नहीं हो जाता, उनका संघर्ष जारी रहेगा।
जमीयत ने अपने बयान में कहा कि वक्फ संपत्तियां मुस्लिम समाज की धार्मिक और सामाजिक धरोहर हैं। इनकी सुरक्षा और उपयोग समुदाय के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। संगठन का कहना है कि सरकार द्वारा बनाया गया वक्फ एक्ट कई मामलों में समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता और संपत्ति अधिकारों के खिलाफ है। इसलिए इसे लेकर वे लगातार कानूनी और सामाजिक लड़ाई लड़ते रहेंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि वक्फ एक्ट के तहत बनाई गई व्यवस्थाएं संवैधानिक अधिकारों के अनुरूप हैं और इसका सीधा उल्लंघन नहीं करतीं। हालांकि अदालत ने यह भी माना कि इस कानून के प्रावधानों को लागू करते समय पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित की जानी चाहिए।
जमीयत ने कोर्ट के इस बयान को सकारात्मक कदम बताया और कहा कि इससे आगे की लड़ाई को बल मिलेगा। संगठन के नेताओं ने कहा कि समुदाय को अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर बचाने के लिए जागरूक रहना होगा और सरकार से लगातार मांग करनी होगी कि वक्फ एक्ट को खत्म किया जाए।
कानून विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद वक्फ एक्ट को लेकर कानूनी स्थिति और स्पष्ट हो गई है। अब यह देखना होगा कि जमीयत और अन्य मुस्लिम संगठन आगे किस तरह अपनी मांगों को लेकर आंदोलन तेज करते हैं।
जमीयत ने साफ कर दिया है कि यह संघर्ष लंबा चलेगा और जब तक वक्फ एक्ट रद्द नहीं होता, वे अपनी आवाज उठाते रहेंगे।