सागर जिले की बीना विधानसभा से कांग्रेस विधायक निर्मला सप्रे की सदस्यता समाप्त कराने के लिए कांग्रेस विधायक दल ने पुनः न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। मामले की पृष्ठभूमि यह है कि सप्रे ने लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के मंच पर जाकर पार्टी में शामिल होने की घोषणा की थी, लेकिन विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र नहीं दिया। इसके बाद नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने विधानसभा अध्यक्ष को दल-बदल कानून के तहत कार्रवाई करने का आवेदन दिया।
सिंघार ने दावा किया कि सप्रे लगातार भाजपा के कार्यक्रमों में शामिल हो रही हैं और यह स्पष्ट रूप से पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलग्न होने का प्रमाण है। कांग्रेस का कहना है कि सप्रे ने दल-बदल किया है और इस पर कार्रवाई किए बिना मामले को लंबा खींचा जा रहा है। विधायक दल ने हाई कोर्ट के इंदौर खंडपीठ में याचिका दाखिल की, जिसमें सप्रे की सदस्यता समाप्त करने और उन्हें छह वर्ष तक चुनाव लड़ने से रोकने का अनुरोध किया गया।
हालांकि, हाई कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी और यह स्पष्ट किया कि मामला उनके क्षेत्राधिकार में नहीं आता। अब इस मामले की सुनवाई हाई कोर्ट जबलपुर के क्षेत्राधिकार में होगी। विधानसभा सचिवालय ने भी क्षेत्राधिकार का मामला उठाया और पहले इस निर्धारण का अनुरोध किया।
सप्रे ने रिकार्ड पर यह स्वीकार नहीं किया कि वह भाजपा की सदस्य हैं, लेकिन उनके भाजपा कार्यक्रमों में भाग लेने और लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी में शामिल होने की घोषणा से यह स्पष्ट हो गया कि उन्होंने दल-बदल किया है। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार का कहना है कि अब इसे लंबा खींचने की आवश्यकता नहीं है और दल-बदल कानून के तहत सप्रे की सदस्यता समाप्त कर उन्हें आगामी छह वर्षों तक चुनाव लड़ने से रोका जाना चाहिए।
इससे पहले भाजपा ने रामनिवास रावत के इस्तीफे का फायदा उठाते हुए सप्रे को उपचुनाव लड़ाने का प्रयास किया था, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस कारण से पार्टी इस मामले में सतर्क है और कानूनी प्रक्रिया में प्रकरण को उलझाकर रखने का प्रयास कर रही है।
निर्मला सप्रे की सदस्यता को लेकर यह विवाद राज्य राजनीति में चर्चा का विषय बना हुआ है। हाई कोर्ट जबलपुर में अब मामले की सुनवाई होगी और आगामी समय में इसका निपटारा होना अपेक्षित है।