100 रुपए रिश्वत…आरोपी 39 साल बाद हाईकोर्ट से बरी:रायपुर के बिल असिस्टेंट को लोकायुक्त ने पकड़ा था; 1 साल जेल की हुई थी सजा

बिलासपुर: साल 1986 उस समय छत्तीसगढ़ का रायपुर जिला मध्यप्रदेश के अहम शहरों में गिना जाता था. यहां पर जागेश्वर प्रसाद अवधिया मध्य प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम में बिल असिस्टेंट के तौर पर कार्यरत थे. जागेश्वर प्रसाद अवधिया पर साल 1986 में 100 रुपये की घूसखोरी का आरोप लगा. मध्यप्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम के कर्मचारी अशोक कुमार वर्मा से ने जागेश्वर प्रसाद अवधिया पर आरोप लगाया कि उन्होंने बकाया वेतन का बिल पास कराने के लिए 100 रुपए के रिश्वत की मांग की.

लोकायुक्त ने की थी कार्रवाई: अशोक कुमार वर्मा की शिकायत पर लोकायुक्त ने आरोपी जागेश्वर प्रसाद अवधिया के खिलाफ जाल बिछाया और उन्हें रंगे हाथों पकड़ने का दावा किया. ट्रायल कोर्ट ने इसी आधार पर दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई थी.

हाईकोर्ट में पहुंचा केस: सजा के बाद जागेश्वर प्रसाद अवधिया ने हाईकोर्ट में अपील की. केस की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने पाया कि रिश्वत की मांग और स्वीकृति को लेकर पुख्ता सबूत मौजूद नहीं हैं. गवाहों के बयानों में विरोधाभास पाया गया. एक जगह 100 रुपए के एक नोट की बात आई तो दूसरी जगह दो पचास-पचास रुपये के नोट का जिक्र था. हाईकोर्ट में इसके अलावा ट्रैप टीम की कार्रवाई पर भी कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला. हाईकोर्ट की सुनवाई में यह बात भी सामने आई कि ट्रैप टीम दूरी पर खड़ी थी और उन्होंने पूरी बातचीत या लेन-देन को सीधे तौर पर नहीं देखा.

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने फैसले के आदेश में क्या कहा ?: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने आदेश में कहा कि केवल नोटों की बरामदगी से ही भ्रष्टाचार का अपराध साबित नहीं होता है. जब तक मांग और स्वीकारोक्ति के पुख्ता सबूत न हों, तब तक दोष सिद्ध नहीं किया जा सकता. इसी आधार पर कोर्ट ने जागेश्वर प्रसाद अवधिया को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया. कोर्ट ने साफ किया कि सबूतों की कमी के कारण ट्रायल कोर्ट का फैसला टिक नहीं सकता.

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