कांकेर। कांकेर जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलो मीटर दूर संबलपुर का 100 साल पुराना गणेश मंदिर आस्था का केंद्र बना हुआ है. भक्तों की मान्यता है कि बप्पा के द्वार पहुंचने वाले हर भक्तों की मनोकामना पूरी होती है. इसमें आस-पास के साथ दूसरे जिलों- रायपुर, बस्तर, धमतरी से भी काफी संख्या में भक्त पहुंचते हैं. मंगलवार को पूजा होने के नाते गणेश का हनुमान से भी गहरा लगाव है. यही कारण है कि यहां बप्पा कुमकुम रंग में हैं.
भगवान गणेश को भोग लगाने रोज पंडित खुद भोजन बनाते हैं. इसके लिए समिति की ओर से दान की भी व्यवस्था की गई है.मंदिर के पीछे की यह है कहानी मंदिर में मूर्ति स्थापना की भी रोचक कहानी है.मंदिर के इतिहास के बारे में पूछने पर पंडितों ने बताया कि कांकेर राजवाड़ा के ग्रीष्मकालीन राजधानी गढ़बांसला में तालाब में तैर रहे मूर्ति को एक पंडित ने देखा था.
इसके बाद गणेश प्रतिमा को संबलपुर लाने का निर्णय लिया गया.प्रतिमा को बैलगाड़ी पर लादकर संबलपुर लाने का काम शुरू हुआ. मूर्ति छोटी लेकिन वजनी होने के कारण यहां तक लाने में 14 बैलगाड़ी टूट गए. जैसे तैसे कर प्रतिमा संबलपुर तक लाकर मंदिर निर्माण किया गया.
वहीँ यह मंदिर पुराना होने के कारण कंडम हो गई थी. इसके कारण इसके कभी भी गिरने का खतरा बन गया था.मंदिर समिति ने इसके जीर्णोद्धार करने का निर्णय लिया.करीब एक साल में 50 लाख की लागत से मंदिर को भव्य रूप दिया गया है.नए मंदिर में गणेश के अतिरिक्त मां दुर्गा, शंकर भगवान एवं हनुमान की प्रतिमा भी स्थापित है जहां विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है. यहां दूर से आने वाले भक्तों के रूकने की भी व्यवस्था है.