एक देश एक चुनाव संबंधी दो विधेयकों के लिए गठित संसदीय समिति ने बुधवार को अपनी पहली बैठक की. इस बैठक में भाजपा सदस्यों ने इस अवधारणा की सराहना की, जबकि विपक्षी सांसदों ने इस पर सवाल उठाए. कानून मंत्रालय की तरफ से जेपीसी के सदस्यों को पढ़ने के लिए नीले सूटकेस में 18 हजार पन्नों की विस्तृत रिपोर्ट दी गई.
कांग्रेस ने विधेयक को असंवैधानिक और लोकतांत्रिक ढांचे का उल्लंघन बताया. कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने विधेयक की आर्थिक व्यवहार्यता का मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा कि यह कितना लागत प्रभावी होगा, कितने ईवीएम की जरूरत होगी?
बैठक के बाद आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने एक्स पर पोस्ट में भी उस सूटकेस के साथ अपनी फोटो शेयर की है, जिसमें जेपीसी सदस्यों को पढ़ने के लिए रिपोर्ट दी गई है. आम सांसद ने फोटो पोस्ट करते हुए लिखा, “एक देश-एक चुनाव की JPC में हज़ारों पन्ने की रिपोर्ट मिली है. आज ONOE की JPC मीटिंग की पहली मीटिंग हुई.”
कानून मंत्रायल ने सदस्यों को दी प्रजेंटेशन
पीटीआई के मुताबिक सूत्रों ने बताया कि विधि एवं न्याय मंत्रालय के अधिकारियों ने बैठक के दौरान प्रस्तावित कानूनों के प्रावधानों पर एक प्रजेंटेशन दी. इसमें भारतीय विधि आयोग सहित विभिन्न निकायों द्वारा एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने के विचार का समर्थन किया गया. बीजेपी सदस्यों ने ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ प्रस्ताव का समर्थन करते हुए कहा कि यह देश के हित में है.
कांग्रेस के एक सदस्य ने कहा कि यह विचार संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है, जबकि तृणमूल कांग्रेस के एक सांसद ने कहा कि यह लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन करता है.
बता दें कि बीजेपी सांसद पीपी चौधरी की अध्यक्षता वाली 39 सदस्यीय संयुक्त संसदीय समिति में कांग्रेस से प्रियंका गांधी वाड्रा, जेडीयू से संजय झा, शिवसेना के श्रीकांत शिंदे, आप के संजय सिंह और तृणमूल कांग्रेस से कल्याण बनर्जी सहित सभी प्रमुख दलों के सदस्य शामिल हैं. चौधरी पूर्व विधि राज्य मंत्री हैं.
बिल पर जेपीसी कर रही मंथन
वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर संविधान (129वां संशोधन) विधेयक और केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक हाल ही में शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा में पेश किए गए और समिति को भेजे गए हैं, जिस पर अब बैठक कर चर्चा हो रही है. JPC का काम है इस पर व्यापक विचार-विमर्श करना, विभिन्न पक्षकारों और विशेषज्ञों से चर्चा करना और अपनी सिफारिशें सरकार को देना.
बिल पर चर्चा क्यों हो रही?
यह बिल भारत के संघीय ढांचे, संविधान के मूल ढांचे, और लोकतंत्र के सिद्धांतों को लेकर बड़े पैमाने पर कानूनी और संवैधानिक बहस छेड़ चुका है. आलोचकों का कहना है कि राज्य विधानसभाओं के चुनाव लोकसभा के साथ कराने से राज्यों की स्वायत्तता पर असर पड़ेगा और सत्ता के केंद्रीकरण की स्थिति बनेगी. कानूनी विशेषज्ञ यह भी देख रहे हैं कि क्या यह प्रस्ताव संविधान की बुनियादी विशेषताओं, जैसे संघीय ढांचा और लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व, को प्रभावित करता है.
ONOE बिल के मुख्य बिंदु क्या हैं?
129वां संविधान संशोधन बिल संविधान में एक नए अनुच्छेद 82A को जोड़ने का प्रस्ताव करता है, जो लोकसभा और राज्यों के चुनाव एक साथ कराने की नींव रखता है. अभी तक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं. नए प्रावधान के तहत राष्ट्रपति एक निर्धारित तिथि घोषित करेंगे, जो लोकसभा की पहली बैठक के साथ मेल खाएगी. इस तिथि के बाद लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल 5 साल का होगा.
यदि किसी राज्य विधानसभा या लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होने से पहले भंग कर दिया जाता है, तो नए चुनाव होंगे. लेकिन नई सरकार का कार्यकाल मूल 5 साल के शेष समय तक ही सीमित रहेगा. यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि चुनावों की समय-सारिणी पर कोई असर न पड़े और चुनाव प्रक्रिया व्यवस्थित बनी रहे. इस बदलाव को लागू करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 83, अनुच्छेद 172, और अनुच्छेद 327 में संशोधन का प्रस्ताव दिया गया है.