सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (CDSCO) की जांच में अप्रैल महीने में 196 दवाओं के सैंपल ‘नॉट ऑफ स्टैंडर्ड क्वालिटी’ के मिले. इसमें 60 दवाओं के सैंपल सेंट्रल लैब और 136 स्टेट लैब में मिले. ‘नॉट ऑफ स्टैंडर्ड क्वालिटी’ (NSQ) का मतलब होता है कि दवा का सैंपल एक या दो पैरामीटर पर फेल हुआ हो. जांच में फेल हुए ये सैंपल किसी पर्टिकुलर बैच की दवा उत्पादों को लेकर हैं. ये बाजार में उपलब्ध अन्य दवा उत्पादों पर किसी भी चिंता का विषय नहीं है.
अप्रैल में बिहार से एक दवा के नमूने की पहचान नकली दवाओं के रूप में की गई है, जिसे किसी अन्य कंपनी के स्वामित्व वाले ब्रांड नाम का उपयोग करके अनधिकृत निर्माता द्वारा बनाया गया है. इस मामले की जांच और कार्रवाई की जा रही है. सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन द्वारा एनएसक्यू, गलत ब्रांड वाली और नकली दवाओं की पहचान करने की यह कार्रवाई राज्य नियामकों के सहयोग से नियमित आधार पर की जाती है.
इसका मकसद ये है कि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ऐसी दवाओं की पहचान की जाए और उन्हें बाजार से हटाया जाए. इससे पहले केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन ने दिसंबर में लिए दवाओं के सैंपल के रिजल्ट जारी किए थे. इसके मुताबिक 135 से ज्यादा दवाएं मानकों पर सही नहीं पाई गईं.
इन दवाओं के सैंपल हुए थे फेल
जिन दवाइयों के सैंपल फेल हुए थे, उनमें हार्ट, शुगर, किडनी, बीपी और एंटीबायोटिक सहित कई दवाइयां शामिल थीं. ये दवाएं देश की कई बड़ी फार्मास्युटिकल्स कंपनी बनाती हैं. केंद्रीय लैब ने 51 और राज्य औषधि परीक्षण प्रयोगशालाओं ने 84 दवाओं के नमूनों को मानक गुणवत्ता के अनुरूप नहीं पाए गए.
इन दवाओं में जन औषधि केंद्रों को दी जाने वाली एंटीबायोटिक दवा-सेफपोडोक्साइम टैबलेट आईपी 200-एमजी, डाइवैलप्रोएक्स एक्सटेंडेड-रिलीज टैबलेट, मेटफॉर्मिन हाइड्रोक्लोर आईडीई टैबलेट, जिंक सल्फेट टैबलेट, मेटफॉर्मिन टैबलेट 500 एमजी, एमोक्सीमून सीवी-625, पेरासिटामोल 500 एमजी शामिल थीं.