चातुर्मास निवास के लिए मुंबई पहुंचे जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने हिंदी-मराठी के बवाल पर बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा कि वह मुंबई में रहकर मराठी भाषा सीखेंगे और वह तभी अपने धाम से वापस जाएंगे जब वह मराठी में बातचीत करना शुरू कर देंगे. शंकराचार्य अगले दो महीने तक मुंबई के कोरा केंद्र परिसर में रहेंगे. उन्होंने बताया कि रविवार से उन्होंने मराठी भाषा सीखना शुरू भी कर दिया है.
एक तरफ तो मराठी भाषा पर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की कट्टरता देखने के बाद पूरे देश से मराठी और हिंदी भाषा पर बड़ी बहस छिड़ गई है. ऐसे में शंकराचार्य ने अपनी इस पहल से कुछ अलग ही मैसेज दिया है. शंकराचार्य ने कहा कि ‘अब मैं मराठी सीखकर मराठी में बातचीत शुरू करूंगा और तब ही अपने धाम लौटूंगा.’
शंकराचार्य ने महाराष्ट्र को संतों और वीरों की भूमि बताया है. उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में संत तुकाराम, संत ज्ञानेश्वर और छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे महान आत्मा पैदा हुए हैं. उन्होंने कहा कि वह यहां सिर्फ चातुर्मास करने नहीं आए हैं, बल्कि इस भूमि की भाषा को आत्मसात करने का संकल्प लेकर आए हैं. उन्होंने कहा कि अब वह मराठी सीखकर ही वहां से जाएंगे.
शंकराचार्य के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी शैलेन्द्र योगिराज सरकार ने इस बात की जानकारी दी है कि आज यानी 13 जुलाई से शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने मराठी सीखना शुरू किया है. उन्हें महाराष्ट्र के लोगों से उन्हीं की भाषा में संवाद करना है. शंकराचार्य ने कहा कि मराठी सिर्फ एक भाषा नहीं बल्कि एक
सांस्कृतिक पुल है.
मराठी केवल भाषा नहीं, सम्मान है
शंकराचार्य के लिए मुंबई के कोरा केंद्र परिसर में विशेष चातुर्मास आवास की व्यवस्था की गई है. वहां आश्रम कुटी का निर्माण किया गया है. स्वामी जी के प्रवचन, साधना सत्र, दर्शन और शिष्य संवाद के कार्यक्रम अगले दो महीनों तक चलेंगे. मुंबई और आसपास के श्रद्धालु बड़ी संख्या में यहां पहुंच रहे हैं. शंकराचार्य ने कहा कि मराठी केवल भाषा नहीं है बल्कि स्थानीय संस्कृति और जनमानस के सम्मान का प्रतीक है.