उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के राजकीय इंटर कॉलेज में अधिकारियों की लापरवाही की एक ऐसी कहानी सामने आई है जो सिस्टम की सुस्ती और संसाधनों की बर्बादी का बड़ा उदाहरण बन चुकी है. यहां साल 2016 में समाजवादी सरकार के समय आए 73 लैपटॉप पिछले आठ वर्षों से एक कमरे में बंद हैं. इन लैपटॉप की सुरक्षा के लिए दो सिपाही हर दिन कॉलेज में तैनात रहते हैं. अब तक उनकी ड्यूटी पर सरकार का करीब 53.76 लाख रुपये खर्च हो चुका है, जबकि लैपटॉप की कुल कीमत सिर्फ 14.60 लाख रुपये थी.
समाजवादी पार्टी सरकार ने मेधावी छात्रों को लैपटॉप देने की योजना शुरू की थी. उसी के तहत ये लैपटॉप जिले के नोडल सेंटर के रूप में चयनित राजकीय इंटर कॉलेज में भेजे गए थे. दिसंबर 2016 तक वितरण चलता रहा, लेकिन जनवरी 2017 में विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लागू होते ही वितरण पर रोक लगा दी गई और कॉलेज के कमरा नंबर 16 को सील कर दिया गया. सील लगने के बाद से अब तक यह कमरा नहीं खुला है. दो सिपाही लगातार इसकी निगरानी में लगे हैं और इसे ‘लैपटॉप ड्यूटी’ कहा जाने लगा है. पहले सिपाही स्थायी रूप से तैनात रहते थे, अब उन्हें हर महीने रोटेशन में बदला जाता है.
लैपटॉप ड्यूटी बनी मजाक
कॉलेज के प्रधानाचार्य ओपी राय ने कहा कि लंबे समय से तैनात सिपाहियों ने अब स्कूल का एक खाली कमरा भी अपने उपयोग में ले लिया है, जहां वे आराम करते हैं. विभागीय सूत्रों के मुताबिक नए भर्ती हुए सिपाहियों को यहां भेजा जाता है और हर एक सिपाही को औसतन 28 हजार रुपये प्रतिमाह वेतन मिलता है. दो सिपाहियों का सालाना वेतन 6.72 लाख रुपये बैठता है, यानी अब तक आठ साल में करीब 54 लाख रुपये सिर्फ रखवाली पर खर्च हो चुके हैं.
डीआईओएस ने झाड़ापल्ला
जब इस संबंध में जिला विद्यालय निरीक्षक अजीत कुमार से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि 2017 में तत्कालीन डीआईओएस ने शासन को एक पत्र भेजा था. लेकिन उसके बाद न कोई जवाब आया और न ही किसी अधिकारी ने दोबारा इस दिशा में कोई प्रयास किया. अब पूरा मामला फाइलों में दफन होकर रह गया है. तकनीकी विशेषज्ञों का मानना है कि इतने सालों तक बिना उपयोग के बंद रहने से ये लैपटॉप शायद ही अब काम लायक बचे हों. एमजेपी रुहेलखंड विश्वविद्यालय के कंप्यूटर साइंस विभागाध्यक्ष प्रो. एसएस बेदी ने बताया कि इतने लंबे समय तक बंद रहने से बैटरियां पूरी तरह खराब हो सकती हैं. साथ ही, इन लैपटॉप्स में पुराना Windows-7 ऑपरेटिंग सिस्टम है, जिसे अब सपोर्ट नहीं किया जाता.
लैपटॉप की विशेषताएं भी बन गईं मजाक का कारण
इन लैपटॉप्स की एक खास बात यह थी कि जैसे ही इन्हें ऑन किया जाता, स्क्रीन पर अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव की तस्वीर दिखाई देती थी. हर लैपटॉप में 2 जीबी रैम और 500 जीबी हार्ड डिस्क थी. अनुमानित कीमत 20 हजार रुपये प्रति यूनिट बताई गई थी. अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर ये लैपटॉप कब छात्रों तक पहुंचेंगे? कब शासन कोई ठोस निर्देश देगा और दो सिपाही कब तक इस ‘लैपटॉप ड्यूटी’ में अपना समय और सरकारी पैसे की बर्बादी करते रहेंगे. यह मामला न सिर्फ एक योजना के अधूरेपन को दिखाता है, बल्कि सरकारी मशीनरी की लापरवाही और जवाबदेही की गंभीर कमी को भी उजागर करता है.