तमिलनाडु की सियासी जमीन बीजेपी के लिए शुरू से पथरीली बनी हुई है. ऐसे में बीजेपी ने कमल खिलाने के लिए राज्य के क्षत्रपों के साथ दोस्ती का हाथ मिलाया, लेकिन उसे बहुत ज्यादा दिन बरकरार नहीं रख सकी. पूर्व मुख्यमंत्री और AIADMK के प्रभावशाली नेता रहे ओ पन्नीर्सेल्वम (ओपीएस) ने बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन से गुरुवार को नाता तोड़ लिया. ओपीएस का ये फैसला तमिलनाडु में बीजेपी की चुनाव रणनीति के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है.
पन्नीरसेल्वम ने अपने सलाहकार पंरुती एस रामचंद्रन और करीबी सहयोगियों के साथ करीब लगभग तीन घंटे के मंथन के बाद बीजेपी से दोस्ती तोड़ने का निर्णय लिया. ओपीएस ने बीजेपी से अलग होने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने कहा था कि उनसे मिलना उनके लिए ‘गौरव की बात’ होगी. औपचारिक रूप से पीएम मोदी से मिलने का समय मांगने के बाद भी उनकी मुलाकात नहीं हो सकी.
मुख्यमंत्री एमके स्टालिन गुरुवार सुबह पन्नीरसेल्वम मॉर्निंग वॉक के दौरान मुलाकात करते हैं. इसके बाद अपने करीबी नेताओं के साथ वो बैठक करते हैं और फिर बीजेपी से अलग होने का ऐलान कर दे देते हैं. ऐसे ही 26 साल पहले बीजेपी के साथ खेल हुआ था. 1999 में जयललिता दिल्ली में सोनिया गांधी के साथ चाय पार्टी करती हैं और फिर बीजेपी और AIADMK की दोस्ती टूट जाती है. इसके चलते अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाली एनडीए की केंद्र सरकार गिर जाती है.
जयललिता ने बिगाड़ा था बीजेपी का गेम
अटल बिहारी वाजपेयी ने कई दलों मिलाकर एनडीए की बुनियाद रखी थी. 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में एनडीए की सरकार बनी थी, जो करीब एक साल ही चल सकी थी. AIADMK उस समय एनडीए का हिस्सा थी. AIADMK की कमान जयललिता के हाथ में थी. 29 मार्च को जयललिता दिल्ली आती हैं और होटल अशोका में सोनिया गांधी के साथ चाय पार्टी करती है, जिसे सुब्रमण्यम स्वामी रखते हैं. इस सीक्रेट मीटिंग में वाजपेयी सरकार को घिराने की इबारत लिखी जाती है.
वाजपेयी सरकार को समर्थन देने के बदले जयललिता चाहती थीं कि उनके खिलाफ सभी मुकदमे वापस लिए जाएं और तमिलनाडु की करुणानिधि सरकार को बर्ख़ास्त किया जाए. इसके अलावा वो सुब्रमण्यम स्वामी को केंद्र में वित्त मंत्री बनवाने पर भी जोर दे रही थीं, जिसके लिए वाजपेयी तैयार नहीं थे. ऐसे में जयललिता अपनी सियासी ताकत दिखाना चाहती थी. उन्हें लग रहा था कि जिस सरकार में वह भागीदार थीं, उसे गिराने का इससे बेहतर मौका और कुछ नहीं हो सकता.
मार्च 1999 में जयललिता दिल्ली आती हैं और सोनिया गांधी के साथ उनकी मीटिंग होती है. इस दौरान वाजपेयी सरकार को गिराने की योजना बनती. इस मीटिंग के बाद वो चेन्नई लौट जाती हैं. 6 अप्रैल को जयललिता के पार्टी के सभी मंत्रियों ने वाजपेयी को अपने इस्तीफे भेज दिए. इसके दो दिनों के बाद उन्होंने वो इस्तीफा राष्ट्रपति को बढ़ा भी दिया. जयललिता 10 अप्रैल को दिल्ली आती हैं. राष्ट्रपति से मिलकर वाजपेयी सरकार से समर्थन वापसी लेने का ऐलान कर देती हैं, जिसके बाद 16 अप्रैल को लोकसभा में जब बहुमत परिक्षण होता है तो एनडीए को 269 मिले और विपक्ष 270 वोट मिलते हैं. इस तरह अटल सरकार 1 वोट से गिर जाती है.
AIADMK का बीजेपी से गठबंधन टूट जाता है. जयललिता का सोनिया गांधी के साथ चाय पार्टी के दौरान ही अटल सरकार के सत्ता से बेदखल होने की इबारत लिखी जाती है, जो बीजेपी के लिए गहरा झटका था. 26 साल के बाद फिर एक बार जयललिता के सियासी उत्तराधिकारी का दावा करने वाले पन्नीरसेल्वम ने बीजेपी को दिया है. तमिलनाडु विधानसभा चुनाव से पहले ओपीएस ने बीजेपी से गठबंधन तोड़ लिया है.
मार्निंग वॉक पर क्या लिखी गई इबारत?
तमिलनाडु के सियासी हलकों में यह लंबे समय से चर्चा चल रही थी कि ओ पन्नीरसेल्वम एनडीए गठबंधन में खुद को अपमानित और उपेक्षित महसूस कर रहे हैं. पीएम मोदी के साथ मुलाकात न होने से ओपीएस की नाराजगी बढ़ गई थी. इसके बाद से एनडीए से उनके अलग होने की चर्चा लगातार चल रही थी, लेकिन पन्नीरसेल्वम कदम नहीं उठा पा रहे थे. ओपीएस के करीबियों के मुताबिक पूर्व मुख्यमंत्री पूरी तरह से निराश हो चुके थे, क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री मोदी हालिया दौरे पर उनसे मिलेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. इसके बाद से उनके सुर बदले हुए नजर आ रहे थे, लेकिन फैसला अब गुरुवार को लिया है.
बीजेपी से गठबंधन तोड़ने से पहले ओपीएस ने गुरुवार की सुबह राज्य के मुख्यमंत्री और डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन से औपचारिक तौर पर मुलाकात की थी. इस दौरान स्टालिन के संग ओपीएस मॉर्निंग वॉक करते सियासी गुफ्तगू करते नजर आए थे. बाद में वह औपचारिक तौर पर मुख्यमंत्री से मिलने पहुंचे थे. स्टालिन से मुलाकात करने के कुछ देर बाद ही पन्नीरसेल्वम ने बीजेपी से गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर दिया. ऐसे में सवाल उठने लगा है कि क्या स्टालिन के संग ठहलते हुए ओपीएस ने बीजेपी के साथ दोस्ती तोड़ने का फैसला किया है, क्योंकि डीएमके के साथ दोस्ती करने की बात कही जा रही है.
ओपीएस अब आगे क्या सियासी फैसला लेंगे
रामचंद्रन ने पनीरसेल्वम और अन्य नेताओं की मौजूदगी में मीडिया से कहा कि अब से समिति एनडीए का हिस्सा नहीं रहेगी. रामचंद्रन ने कहा कि समिति की ओर से इसके प्रमुख पनीरसेल्वम जल्द ही राज्य के विभिन्न हिस्सों का दौरा शुरू करेंगे और भविष्य में गठबंधन से संबंधित फैसले राजनीतिक परिस्थितियों के अनुसार किए जाएंगे. एनडीए से अलग होने का कारण पूछे जाने पर रामचंद्रन ने कहा कि इसका कारण सबको मालूम है. आगे गठबंधन को लेकर उन्होंने कहा कि हम चुनाव के करीब आने पर फैसला लेंगे.
तमिलनाडु में अगले साल विधानसभा चुनाव है, जिसके चलते पन्नीरसेल्वम पर सभी की निगाहें लगी हुई है. ओपीएस के करीबी नेताओं की बात मानें तो उनके सामने राज्य में दो मजबूत विकल्प हैं, जिसमें अभिनेता विजय की पार्टी टीवीके और दूसरी स्टालिन की डीएमके है.माना जा रहा है कि ओपीएस AIADMK के बागी और दिनाकरण को अपने साथ ले सकते हैं.जयललिता की करीबी शशिकला के भतीजे दिनाकरण अपनी राजनीतिक पहचान बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
बीजेपी की राजनीति पर क्या पड़ेगा असर?
ओपीएस के अलग होने के बाद बीजेपी की चुनावी रणनीति पर असर पड़ना लाजमी है. AIADMK के साथ पहले से ही बीजेपी के रिश्ते सही नहीं है. अब ओपीएस के गठबंधन टूटने के बाद बीजेपी की राह मुश्किल हो जाएगी. पन्नीरसेल्वम थेवर समुदाय से आते हैं, जिसकी आबादी तमिलनाडु में 10 से 12 फीसदी है. पन्नीरसेल्वम के समर्थन के बिना बीजेपी और AIADMK के लिए दक्षिण में थेवर समुदाय के वोटों को जोड़ना आसान नहीं है.
पन्नीरसेल्वम ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन 2026 के चुनाव से पहले प्रदेशभर की यात्रा करने का प्लान बनाया है. पन्नीरसेल्वम अगर किसी गठबंधन नहीं करते हैं और अकेले चुनाव लड़ते हैं तो AIADMK के वोटबैंक में बंटवारे होने का खतरा होगा. वहीं, ओपीएस ने डीएमके के साथ गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरती है तो सियासी सीन ही बदल जाएगा. इस तरह ओपीएस के सियासी कदम का राजनीतिक असर पड़ना लाजमी है.