जम्मू-कश्मीर विधानसभा में बुधवार को अनुच्छेद 370 के तहत तत्कालीन राज्य के विशेष दर्जे को बहाल करने की मांग करते हुए एक ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसे केंद्र ने अगस्त 2019 में रद्द कर दिया था. नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के नेता और उपमुख्यमंत्री सुरिंदर कुमार चौधरी की ओर से चल रहे सत्र के तीसरे दिन पेश किए गए प्रस्ताव को विपक्षी बीजेपी सदस्यों के कड़े विरोध के बावजूद सत्तारूढ़ दल का समर्थन मिला.
प्रस्ताव में कहा गया है, ‘यह विधानसभा विशेष दर्जे और संवैधानिक गारंटी के महत्व की पुष्टि करती है, जिसने जम्मू-कश्मीर के लोगों की पहचान, संस्कृति और अधिकारों की रक्षा की और उनके एकतरफा निष्कासन पर चिंता व्यक्त करती है.’ यह विधानसभा भारत सरकार से जम्मू-कश्मीर के लोगों के निर्वाचित प्रतिनिधियों के साथ विशेष दर्जे, संवैधानिक गारंटी की बहाली के लिए बातचीत शुरू करने और प्रावधानों को बहाल करने के लिए संवैधानिक तंत्र तैयार करने का आह्वान करती है. विधानसभा इस बात पर जोर देती है कि बहाली की कोई भी प्रक्रिया राष्ट्रीय एकता और जम्मू-कश्मीर के लोगों की वैध आकांक्षाओं दोनों की रक्षा करेगी.’
बीजेपी ने बताया राष्ट्र विरोधी एजेंडा
नेशनल कॉन्फ्रेंस के इस प्रस्ताव को बीजेपी ने राष्ट्रविरोधी एजेंडा करार दिया है. विधानसभा में भगवा पार्टी ने जमकर हंगामा किया और उसके विधायकों ने 5 अगस्त जिंदाबाद के नारे लगाए. उन्होंने कहा कि जहां हुए बलिदान मुखर्जी, वो कश्मीर हमारा है. बीजेपी नेता शाम लाल शर्मा ने कहा कि अनुच्छेद 370 फाइनल है, शेख अब्दुल्ला से लेकर उमर अब्दुल्ला तक, भावनात्मक ब्लैकमेल करना नेशनल कॉन्फ्रेंस की दिनचर्या है. स्पीकर को स्वतंत्र होना चाहिए और किसी भी पार्टी का पक्ष नहीं लेना चाहिए.
अगस्त 2019 में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 370 को खत्म कर एक ऐतिहासिक फैसला लिया था. इस प्रावधान में जम्मू-कश्मीर को विशेष स्वायत्तता का दर्जा दिया गया था, जिससे क्षेत्र को अपने संविधान और ध्वज सहित अपने आंतरिक मामलों पर महत्वपूर्ण नियंत्रण था, जबकि रक्षा, संचार और विदेशी मामलों को इससे बाहर रखा गया था. इस संवैधानिक परिवर्तन के साथ राज्य को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में बांटा गया था, जिसमें जम्मू-कश्मीर और लद्दाख बनाया गया.
एनसी, पीडीपी करती आई हैं 370 हटाए जाने का विरोध
अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के कदम का नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और अन्य क्षेत्रीय दलों ने विरोध किया, जिन्होंने तर्क दिया है कि यह निर्णय क्षेत्र की स्वायत्तता और पहचान को कमजोर करता है. पिछले साल 11 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने इस फैसले को बरकरार रखा और सितंबर 2024 तक क्षेत्र में चुनाव कराने और जल्द से जल्द राज्य का दर्जा बहाल करने का निर्देश दिया था.