मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर पीठ में लोगों को न्याय दिलाने के लिए पैरवी करने वाले अधिवक्ता एमपीएस रघुवंशी खाली समय में धार्मिक किताबें पढ़ने का शौक रखते हैं। इंटरनेट मीडिया से दूर हैं और इंटरनेट का उपयोग सिर्फ न्यायिक कामों में मदद लेने के लिए करते हैं।
खाने में सात्विक भोजन पसंद है, घूमने पूरे परिवार के साथ जाते हैं। संगीत पुराने जमाने का सुनते हैं। जब भी मौका मिल जाता है तो कमजोर तबके के लोगों के लिए मदद का हाथ बढ़ाने से कतई पीछे नहीं हटते हैं।
सभी के लिए मिसाल है इनकी जीवन शैली
यह जीवन शैली है हाई कोर्ट ग्वालियर के जाने माने अधिवक्ता और पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता एमपीएस रघुवंशी की। अधिवक्ता रघुवंशी बताते हैं कि तनाव से अभी तक उनका कोई लेना देना नहीं रहा है।
वो मैदान में उतरते ही तब हैं जब तैयारी पूरी होती है। न्यायिक प्रणाली में दमखम दिखाने वाले अधिवक्ता एमपीएस रघुवंशी के जीवन के बारे में ऐसी ही कई रोचक बाते हैं
- सवाल: वकालत के अलावा कौन सा काम है जो बेहद रुचि लेकर करते हैं?
जवाब: अधिकतर समय तो न्यायालय में ही जाता है। लेकिन फिर भी जब भी कभी समय मिलता है, ताे गरीब और कमजोर तबके के लोगों की सामाजिक सेवा का काम करके बहुत आनंद मिलता है
- सवाल: इंटरनेट मीडिया पर दिन भर का कितना समय बिताते हैं? रील्स देखते हैं ?
जवाब: इंटरनेट का उपयोग सिर्फ केस पढ़ने, जजमेंट डाउनलोड करने और ऑनलाइन बहस के लिए होता है। इसके अलावा फेसबुक 2020 में बंद कर दी थी और इंस्टाग्राम पर आज तक अकाउंट नहीं बनाया। रील देखने में जरा भी रुचि नहीं हैं। इंटरनेट सिर्फ आवश्यक सूचनाओं के लिए उपयोग करता हूं ।
- सवाल: किस प्रकार के वाहनों का शौक है,चलाना पसंद है या बैठना?
जवाब: वाहनों का शौक जैसा कुछ नहीं है। सिर्फ दैनिक जीवन के कामों के लिए उपयोग करते हैं। अधिकतर कार ही उपयोग में आती है। वाहन खुद नहीं चलाता हूं, दिन भर दिमाग में केस से जुड़ी चीजें घूमती हैं तो ऐसे मे कभी वाहन चलाते समय कंट्रोल खोने का डर रहता है। इसलिए ड्राइवर से गाड़ी चलवाता हूं।
- सवाल: संगीत के मामले में पसंद कैसी है, गाने सुनना पसंद है?
जवाब: हां संगीत सुनना बहुत पसंद है। लेकिन आधुनिक समय का संगीत समझ से बाहर लगता है। कानों में मधुरता घोलने की जो क्षमता पुराने गानों में है, वो किसी और में नहीं। आज भी किशोर कुमार और मोहम्मद रफी के गानों को बड़े चाव से सुनता भी हूं और साथ में गुनगुना भी लेता हूं।
- सवाल: वकालत का तनाव घर पर साथ लाते हैं, अगर हां तो मुक्त कैसे करते हैं?
जवाब: इस बात का जवाब मेरे सहयोगी सही देंगे। उन्हें पता है कि मैं एक समय में एक ही काम को पूरी ईमानदारी से करता हूं। कार्यक्षेत्र में पैरवी के दौरान सिर्फ पैरवी, पढ़ाई के समय सिर्फ पढ़ाई और घर पर जाने के बाद पूरा समय सिर्फ और सिर्फ परिवार के साथ बिताता हूं। पैरवी के लिए मैदान में उतरता ही तब हूं, जब तैयारी पूरी हो, इसलिए तनाव नहीं होता।
- सवाल: अगर वकील नहीं होते, तो क्या कर रहे होते?
जवाब: मुझे कभी वकील बनना ही नहीं था। जब स्नातक कर रहा था, तो उस समय हमें एक चौहान सर पढ़ाया करते थे। उन्हें देखकर ठान लिया था कि प्रोफेसर बनना है। इसी चक्कर में एलएलएम किया, लेकिन प्रोफेसर नहीं बन सका। फिर जाकर वकालत में हाथ आजमा लिया। अभी भी मौका मिलता है तो जूनियर को पढ़ाता हूं।
- सवाल: आपके परिवार में आज भी किसानी होती है, आपने कभी किसान बन कर काम किया है?
जवाब: हमारा गांव धुर्रा, अशोकनगर जिले में आता है। वहां शुरू से ही हमारे परिवार में किसानी होती आ रही है। पढ़ाई के दौरान जब भी कभी गांव जाता था, तो कभी हल तो कभी ट्रैक्टर चलाया करता था। किसानी तो आज भी होती है, लेकिन जब से न्यायिक सेवाओं में आए, तब से उतना समय बच ही नहीं पाता है कि ट्रैक्टर चला सकें।