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मॉल पर 40 करोड़ टैक्स बकाया, 4 करोड़ में सेटिंग:रायपुर मेयर शिकायत लेकर कलेक्टर के पास पहुंचे; BJP बोली- निगम अफसर जिम्मेदार

रायपुर में दो बड़े मॉल पर करोड़ों रुपए के टैक्स बकाए में फर्जीवाड़ा सामने आया है। बताया जा रहा है कि दोनों मॉल पर 40 करोड़ के टैक्स का बकाया था। आरोप है कि मॉल प्रबंधन ने अफसरों के साथ मिलकर 4 करोड़ का राजीनामा तैयार करा लिया।

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अब मामला सामने आने पर मेयर एजाज ढेबर ने इसका विरोध जताया है। वह और कुछ MIC सदस्य शुक्रवार को कलेक्टर के पास शिकायत लेकर पहुंचे और उन्हें ज्ञापन सौंपा।

ढेबर बोले- 2-2 करोड़ में मैनेज कर रहे

कलेक्टर से मिलने के बाद ढेबर ने मीडिया से बात की। उन्होंने कहा कि, सिटी सेंटर और ट्रेजर आईलैंड मॉल का टैक्स कई सालों से बकाया है। आईलैंड पर 19 करोड़ और सिटी सेंटर पर 17 करोड़ बकाया है। इस पर सेटिंग करके 2-2 करोड़ में मैनेज कर रहे हैं।

हमने मांग की है कि नियमितिकरण की जो फाइल चली है उसे रोका जाए। भाजपा के लोग इस बात को कहते हैं, महापौर को जानकारी है। आचार संहिता के बीच फाइल चली है, तो कैसे बात हम तक आएगी। हमेशा से MIC ने मुद्दा उठाया है। मैं कलेक्टर से कहने आया था कि किसी भी प्रकार का नियमितीकरण नहीं होना चाहिए, जब तक टैक्स नहीं दिया जाता।

 

टैक्स को लेकर अफसरों का यह तर्क

ट्रेजर आईलैंड को लेकर निगम के राजस्व विभाग के अफसरों का कहना है कि मॉल निर्माण के लिए 2008 में अनुमति ली गई थी। तब यह क्षेत्र निगम सीमा में नहीं था। 2013 में परिसीमन के बाद यह निगम सीमा में आया। इसके बाद इसे टैक्स के दायरे में लिया गया।

उस वक्त की महापौर डॉ. किरणमयी नायक ने मॉल पर अवैध निर्माण और टैक्स इत्यादि को लेकर कार्रवाई की। उनके जाने के बाद भी अलग-अलग समय पर टैक्स का निर्धारण किया गया। दो साल पहले करीब 15 करोड़ रुपए टैक्स डिमांड किया गया। मॉल प्रबंधन ने टैक्स को लेकर आपत्ति की।

 

मॉल प्रबंधन का कहना था कि, मॉल अभी निर्माणाधीन अवस्था में है और कई सालों से निर्माण कार्य भी बंद है। टैक्स की गणना पूरे मॉल को निर्मित आधार पर कर दी गई है, जो गलत है। अफसरों ने नियम-शर्त खंगालने के बाद यह पाया कि जब तक किसी बिल्डिंग को कंप्लीशन सर्टिफिकेट जारी नहीं किया जाता तब तक उसे निर्मित नहीं माना जा सकता।

वह किसी सुविधा का भी उपभोग नहीं कर रहा है। उस स्थिति में कॉमर्शियल टैक्स की गणना कर ली गई थी, जो गलत है। इसे सुधार कर फिर से टैक्स डिमांड किया गया, जो करीब पौने तीन करोड़ आ रहा था। यह मॉल प्रबंधन ने भुगतान कर दिया। अफसरों का कहना है कि यह पूरा मामला प्रॉपर्टी टैक्स का है। अवैध निर्माण का मामला अलग है। विवाद प्रॉपर्टी टैक्स को लेकर चल रहा है।

अब जानिए क्या है विवाद

ट्रेजर आईलैंड का मामला तब जोर पकड़ा जब मॉल के बिकने की सुगबुगाहट शुरू हुई। यह मॉल बैंक में बंधक था और पिछले कई वर्षों से निर्माणाधीन अवस्था में ही था। मॉल के बिकने की खबर निगम को मिली, तब अफसरों ने टैक्स वसूली के लिए बैंक और मॉल के प्रबंधन को डिमांड नोट जारी किया।

उस वक्त करीब 15 करोड़ रुपए का डिमांड निकाला गया था। इसमें कुछ अवैध निर्माण और बकाया टैक्स शामिल था। जोन-3 के पूर्व कमिश्नर ने डिमांड नोट जारी किया था। तब मॉल के बिकने की खबर आई और निगम के टैक्स डिमांड को लेकर नए प्रबंधन ने आपत्ति लगाई।

आपत्ति यह थी कि 2016 में किए गए सर्वे में ट्रेजर आईलैंड को पूरी तरह निर्मित बता दिया गया और उस आधार पर टैक्स की गणना की गई। सर्वे करने वालों ने खाली प्लाट पर भी निर्माण बताकर टैक्स जोड़ दिया। जबकि मॉल अभी निर्माणाधीन है और उसका संचालन शुरू नहीं हुआ है। फिर भी कॉमर्शियल टैक्स लगाया गया। प्रबंधन की इस आपत्ति के बाद नगर निगम ने टैक्स रिवाइज किया और पाया कि वास्तव में सर्वे गलत हुआ है।

इस आधार पर नगर निगम ने फिर से करीब पौने तीन करोड़ का डिमांड भेजा। अब इसी को लेकर आपत्ति है कि कैसे पिछला सर्वे किया गया और सर्वे गलत था तो सब इतने समय से चुप क्यों थे। इतने दिनों बाद यह मामला कैसे उठ रहा है।

नेता प्रतिपक्ष ने मेयर को जिम्मेदार ठहराया

​​​​​​​मेयर एजाज ढेबर इसे सीधे तौर पर पूर्व निगम कमिश्नर के कार्यकाल में हुई बड़ी गड़बड़ी करार दे रहे हैं। वहीं नेता प्रतिपक्ष मीनल चौबे इसके लिए ढेबर पर आरोप लगा रही हैं। उन्होंने कहा कि, जब टैक्स घटाया गया, तब वे ही महापौर थे और अब भी हैं। फिर यह कैसे हो गया? इस मामले में दोनों ही निगम अफसरों पर सवाल उठे रहे हैं कि आखिर किसी बड़े मॉल का टैक्स क्यों और कैसे कम कर दिया गया।

 

 

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