5 अगस्त सिर्फ तारीख नहीं, हिंदुत्व का पुनर्जागरण है – जानिए क्यों है यह दिन ऐतिहासिक

अयोध्या : 5 अगस्त अब सिर्फ एक तारीख नहीं, हिंदू अस्मिता और राष्ट्रीय पुनर्जागरण का प्रतीक बन चुका है.इसी दिन 2019 में मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाकर एक ऐतिहासिक कदम उठाया और फिर 2020 में श्रीराम मंदिर की नींव रखी गई. यह वही मंदिर है, जिसकी प्रतीक्षा देश ने 492 वर्षों तक की.आज, श्रीराम जन्मभूमि सिर्फ श्रद्धा का केंद्र नहीं, बल्कि आर्थिक और सांस्कृतिक उन्नति का आधार बन चुकी है.

राम मंदिर का सपना, संघर्ष और साकार रूप

1528 में बाबर के सेनापति मीर बाकी द्वारा बनाए गए ढांचे से शुरू हुआ यह विवाद 9 नवंबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ अपने निर्णायक मोड़ पर पहुंचा.कोर्ट ने पूरी 2.77 एकड़ भूमि रामलला को सौंपी और मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया.

 

इसके बाद 5 अगस्त, 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में भूमि पूजन कर मंदिर निर्माण की विधिवत शुरुआत की.और आखिरकार, 22 जनवरी 2024 को भव्य श्रीराम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा संपन्न हुई.

कानूनी लड़ाई से लेकर आर्थिक विकास तक

1858 में पहली FIR से लेकर 2019 तक यह मामला अदालतों में रहा.लेकिन राम मंदिर निर्माण की शुरुआत के साथ अयोध्या की किस्मत भी बदल गई. अब तक मंदिर निर्माण के लिए 5,500 करोड़ रुपये का चंदा प्राप्त हो चुका है। मंदिर से जुड़ी पर्यटन गतिविधियों के कारण हर साल 16% की दर से टूरिज्म बढ़ रहा है.

₹20,000 करोड़ के निवेश से बदल रही अयोध्या की सूरत

उत्तर प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार मिलकर अयोध्या को आधुनिक पर्यटन नगरी बनाने की दिशा में तेजी से कार्य कर रही हैं.PRASHAD और स्वदेश दर्शन योजनाओं से तीर्थयात्रियों को सुविधा, सुरक्षा और सांस्कृतिक अनुभव मिल रहा है.

रेलवे टर्मिनल, हाईवे, बायपास और एयरपोर्ट विस्तार जैसी परियोजनाओं पर ₹12,000 करोड़ से अधिक का निवेश हुआ है.वहीं, निजी क्षेत्र भी तेजी से आगे आया है:

टाटा संस द्वारा ₹650 करोड़ का मंदिर संग्रहालय

ताज होटल्स की तीन प्रमुख परियोजनाएं

द लीला होटल्स और हाउस ऑफ अभिनंदन लोढ़ा की लग्जरी टाउनशिप व हॉस्पिटैलिटी इन्वेस्टमेंट

राम मंदिर विवाद एक नजर में…
1528: मुगल शासक बाबर के कमांडर मीर बाकी ने अयोध्या में भगवान राम के जन्मस्थान पर एक मस्जिद (बाबरी मस्जिद) बनवाई।

1858: इस विवाद को लेकर पहली कानूनी शिकायत (FIR) दर्ज की गई, जिसमें परिसर के भीतर हवन-पूजन का जिक्र था।

1885: निर्मोही अखाड़े के महंत रघुबर दास ने फैजाबाद की अदालत में राम चबूतरे पर पक्का मंदिर बनाने की अनुमति मांगी, लेकिन अदालत ने इसे खारिज कर दिया।

1949: विवादित ढांचे के भीतर मूर्तियों का प्रकटीकरण हुआ। इसके बाद सरकार ने इस जगह को विवादित घोषित कर ताला लगा दिया।1950: हिंदू महासभा के सदस्य गोपाल सिंह विशारद ने पूजा-अर्चना की अनुमति के लिए पहला मुकदमा दायर किया.

1959: निर्मोही अखाड़े ने भी इस जगह पर अपना दावा करते हुए मुकदमा दायर किया.

1961: उत्तर प्रदेश के सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने इस जगह को मुस्लिमों का बताते हुए एक मुकदमा दर्ज किया.

1986: फैजाबाद के जिला न्यायाधीश ने इस स्थल का ताला खोलने का आदेश दिया, जिससे हिंदुओं को पूजा का अधिकार मिला.

1989: तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की अनुमति से राम मंदिर की आधारशिला रखी गई.

1990: लाल कृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर आंदोलन को तेज करने के लिए रथ यात्रा शुरू की.

1992: 6 दिसंबर को अयोध्या पहुंचे कारसेवकों ने विवादित ढांचा गिरा दिया.

2002: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मालिकाना हक तय करने के लिए सुनवाई शुरू की और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को खुदाई का निर्देश दिया.

2003: पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट में जमीन के नीचे एक विशाल हिंदू धार्मिक ढांचा होने की बात सामने आई.

2010: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित जमीन को तीन हिस्सों (रामलला, निर्मोही अखाड़ा, और सुन्नी वक्फ बोर्ड) में बांटने का फैसला दिया.

2019: 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए पूरी 2.77 एकड़ जमीन रामलला को दी और मुस्लिम पक्ष को मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया.

2020: 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर का भूमि पूजन किया और निर्माण कार्य शुरू हुआ.

2024: 22 जनवरी को भव्य राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुई.

 

धार्मिक विरासत से आधुनिकता की ओर

श्रीराम मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक चेतना और आत्मगौरव का प्रतीक बन चुका है। वर्षों तक विकास से वंचित रही अयोध्या, अब अंतरराष्ट्रीय मानचित्र पर चमक रहा एक धार्मिक पर्यटन केंद्र बन गया है.

5 अगस्त की तारीख अब हर भारतीय के मन में गर्व, श्रद्धा और आत्मबल की भावना भर देती है.यह दिन बताता है कि यदि संकल्प अडिग हो, तो इतिहास भी बदला जा सकता है.श्रीराम मंदिर सिर्फ ईंट-पत्थर का ढांचा नहीं, बल्कि वह आत्मबल है जिसने न केवल विवाद को समाप्त किया बल्कि एक नया युग भी शुरू किया.

 

 

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