विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन के साथ हुई सीमा वार्ता को लेकर बड़ा बयान दिया है. विदेश मंत्री ने कहा कि बीजिंग के साथ खासतौर से सैनिकों की वापसी (डिसइंगेजमेंट) से संबंधित तकरीबन 75 फीसदी समस्याएं सुलझ गई हैं, हालांकि, दोनों देशों को अभी भी कुछ काम करने हैं. जयशंकर ने यह भी बताया कि कैसे भारत और चीन के बीच अतीत में कभी भी आसान संबंध नहीं रहे.
विदेश मंत्री ने कहा कि, “हमारे बीच अतीत में आसान संबंध नहीं रहे हैं. 2020 में जो हुआ वह कई समझौतों का उल्लंघन था, चीन ने बड़ी संख्या में सैनिकों को वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भेज दिया. हमने, जवाब में, अपने सैनिकों को ऊपर भेज दिया. चीन के साथ सीमा वार्ता में कुछ प्रगति हुई है.”
जयशंकर ने गुरुवार को जिनेवा सेंटर फॉर सिक्योरिटी पॉलिसी में राजदूत जीन-डेविड लेविटे के साथ अपनी बातचीत के दौरान विदेश मंत्री ने कहा कि पूर्वी लद्दाख में सीमा मुद्दे पर सैनिकों की वापसी से संबंधित मुद्दे लगभग 75 प्रतिशत तक सुलझ गए हैं लेकिन बड़ा मुद्दा सीमा पर बढ़ते सैन्यीकरण का है. उन्होंने कहा कि हमें अभी भी कुछ काम करने हैं.
#WATCH | Geneva Centre for Security Policy | EAM Dr S Jaishankar says, "It (India-China) is a very complex relationship…When any country rises it has a ripple effect on the neighbourhood…We did not have an easy relationship in the past…We had a series of agreements which… pic.twitter.com/RaHSoZubJU
— ANI (@ANI) September 12, 2024
गलवान झड़प से प्रभावित हुए रिश्ते
उन्होंने आगे कहा, “अगर सैनिकों की वापसी का कोई समाधान है और शांति तथा स्थिरता की वापसी होती है, तो हम अन्य संभावनाओं पर विचार कर सकते हैं. यह सबसे अहम मुद्दा है.” जयशंकर ने कहा कि दोनों देशों के बीच अतीत में मुश्किल रिश्ते रहे हैं. उन्होंने 2020 के बारे में भी बात की जब भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच गलवान घाटी में झड़प हुई थी. जयशंकर ने कहा कि जून 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़पों ने भारत-चीन संबंधों को प्रभावित किया है, उन्होंने जोर देकर कहा कि सीमा पर हिंसा होने के बाद यह नहीं कहा जा सकता कि बाकी संबंध इससे अछूते हैं.
उन्होंने कहा कि चीन के साथ आर्थिक संबंध “अनफेयर और असंतुलित” रहे हैं. विदेश मंत्री ने कहा, “यह (भारत-चीन संबंध) एक बहुत ही जटिल संबंध है… इतिहास में उनका बुरा दौर भी रहा है. दोनों संबंधों को पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे हैं और एक तरह से कायाकल्प कर रहे हैं. दोनों एकमात्र ऐसे देश हैं जिनकी आबादी एक अरब से अधिक है.आम तौर पर ऐसा होता है कि जब कोई देश आगे बढ़ता है तो उसका पड़ोस पर असर पड़ता है. इन दोनों देशों को एक-दूसरे का पड़ोसी होने का भी सम्मान प्राप्त है.”
बीजिंग में हुई थी बैठक
आपको बता दें कि भारत और चीन ने 29 अगस्त को बीजिंग में WMCC की 31वीं बैठक की थी और दोनों पक्षों ने प्रासंगिक द्विपक्षीय समझौतों और प्रोटोकॉल के अनुसार सीमा क्षेत्रों में जमीन पर शांति और शांति बनाए रखने का निर्णय लिया था. विदेश मंत्रालय के अनुसार, दोनों पक्षों ने एलएसी की स्थिति पर “स्पष्ट, रचनात्मक और दूरदर्शी” विचारों का आदान-प्रदान किया और राजनयिक और सैन्य चैनलों के माध्यम से संपर्क बढ़ाने पर भी सहमति व्यक्त की.
विदेश मंत्री ने आगे कहा कि सीमा मुद्दों के अलावा, दोनों देशों को प्रौद्योगिकी, दूरसंचार और डिजिटल सहित अन्य क्षेत्रों में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि भारत-चीन के संबंध में बड़े मुद्दे हैं. हम व्यापार के मुद्दे पर लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं… चीन के साथ आर्थिक संबंध बहुत अनफेयर रहे हैं. यह बहुत असंतुलित रहा है कि हमारे पास वहां के बाजार तक में पहुंच नहीं है. उनके पास भारत में बहुत बेहतर बाजार पहुंच है. आज हमारे पास प्रौद्योगिकी, दूरसंचार और डिजिटल जैसे विभिन्न क्षेत्रों में कई चिंताएं हैं.”