जापान के मसाना इजावा को जब शौच करना होता है तो वो जंगलों में निकल जाते हैं और खुले में शौच करते हैं. इजावा 50 सालों से खुले में शौच करते आ रहे हैं. 74 साल के इजावा पूर्व नेचर फ्रोटोग्राफर और लेखक हैं. वो कहते हैं कि प्रकृति हमें हर चीज दे रही हैं तो हमें भी अपना मल प्रकृति वो वापस दे देना चाहिए ताकि मिट्टी में मौजूद जीव उसे खाकर जीवित रह सकें और मल का विघटन भी प्राकृतिक तरीके से हो जाए.
समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में इजावा कहते हैं, ‘खुले में शौच करने का मतलब है कि आप जीवन वापस दे रहे हैं. इससे अधिक अच्छा काम और क्या हो सकता है? मसाना इजावा जापान में Fundo-Shi (Poop-Soil Master) के नाम से जाने जाते हैं. जापान में उन्हें एक सेलिब्रिटी माना जाता है जो किताबें लिखते हैं, लेक्चर देते हैं और वो कई डॉक्यूमेंट्री में भी दिख चुके हैं.
जापान की राजधानी टोक्यो के उत्तर में साकुरागावा में उनकी 1.7 एकड़ जंगली जमीन है. उनका यह जंगल एक फुटबॉल मैदान जितना बड़ा है और उन्होंने इसे अपना ‘पूपलैंड’ बना रखा है यानी वो यहीं शौच के लिए जाते हैं. उनका यह पूपलैंड बेहद ही खास है जिसे देखने को लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. यहां वो लोगों को खुली जगह में शौच के सुझाव भी देते हैं.
क्या है मसाना इजावा के पूपलैंड की खासियत?
जापानी भाषा में खुले में शौच के स्थान को नोगुसो कहते हैं. इसके लिए इजावा एक गड्ढा खोदते हैं, पोंछने के लिए एक या दो पत्ते लेते हैं और धोने के लिए पानी की एक बोतल लेते हैं. शौच की जगह को चिह्नित करने के लिए वहां पेड़ों की टहनियां या कोई छड़ी लगा देते हैं ताकि वो शौच के लिए वहां दोबारा ना जाएं और अपने मल विघटन के समय का हिसाब लगा सकें. इजावा टॉयलेट पेपर की जगह पत्तियों का इस्तेमाल करते हैं. चिनार की एक पत्ती दिखाते हुए वो कहते हैं, ‘इन पत्तियों को छूकर देखिए, कितनी नरम हैं. ये इस्तेमाल के लिए पेपर से ज्यादा अच्छी हैं.’
मशरूम एक्सपर्ट इजावा नेचर फोटोग्राफर हैं जो 2006 में रिटायर हो गए थे. जब वो 20 साल के थे तब उन्हें खुले में शौच के बारे में पता लगा. तब उन्होंने एक विरोध प्रदर्शन देखा जिसमें लोग सीवेज प्लांट के निर्माण का विरोध कर रहे हैं. उन्होंने बताया, ‘हम सभी शौच करते हैं लेकिन प्रदर्शनकारी चाहते थे कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट कहीं दूसरी जगह, उनकी नजरों से दूर हो. अगर वो मानते थे कि वो सही हैं तो वो गलत थे.’
इसके बाद इजावा ने फैसला किया कि वो बाहर ही शौच करेंगे. इजावा का मानना है कि टॉयलेट, टॉयलेट पेपर और वेस्ट वाटर फैसिलिटी के लिए खूब सारा पानी लगता है जिसमें ऊर्जा और केमिकल्स की जरूरत पड़ती है.
द एनर्जी एंड रिसर्च इंस्टिट्यूट (TERI), दिल्ली में सर्कुलर इनोनॉमी एंड वेस्ट मैनेजमेंट के डायरेक्टर डॉ. सुनील पांडे का कहना है कि इससे प्राकृतिक संसाधनों पर असर पड़ता है लेकिन खुले में शौच करना इसका विकल्प नहीं है. वो कहते हैं, ‘शौच के लिए टॉयलेट के इस्तेमाल से प्राकृतिक संसाधनों पर बोझ पड़ा है. इस बोझ को कम करने का सबसे अच्छा तरीका है कि हम टॉयलेट पेपर पर अपनी निर्भरता कम करें और सीवेज को सही से ट्रीट किया जाए. फिर सीवेज के ट्रीटेड पानी को सिंचाई आदि के लिए इस्तेमाल किया जाए.’
मानव मल में अन्य पशुओं की तुलना में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले बैक्टीरिया ज्यादा मात्रा में हो सकते हैं इसलिए इसे प्रतिबंधित किया गया है. डॉ. पांडे कहते हैं, ‘खुले में शौच कहना खतरनाक है क्योंकि इससे मिट्टी और पानी दूषित हो सकते हैं और इससे पानी से पैदा होने वाले रोगों का खतरा बहुत बढ़ जाता है. खुले में शौच करना पर्यावरण और इंसानों को नुकसान तो पहुंचाता है ही, साथ ही यह एक सामाजिक समस्या भी है क्योंकि इसके लिए महिलाओं को घर से बाहर जाना पड़ता है और खुले में शौच से उनकी सुरक्षा को भी खतरा है.’
‘अधिक से अधिक लोगों को खुले में शौच करना चाहिए’
जापान में भी खुले में शौच करने पर प्रतिबंध है. लेकिन इजावा के सदियों पुराने घर के आसपास का जंगल उनके ही नाम है इसलिए उन्हें खुले में शौच को लेकर अधिकारियों के दबाव का सामना नहीं करना पड़ता. वो कहते हैं कि मिट्टी को काम करने देना चाहिए क्योंकि यह पर्यावरण के लिए बेहतर है. इजावा का मानना है कि अधिक से अधिक लोगों को उनका अनुसरण करना चाहिए.
इजावा के इस तर्क पर डॉ. सुनील पांडे कहते हैं, ‘खुले में शौच से पर्यावरण को फायदा होता है क्योंकि मल जब विघटित होता है तो मिट्टी को जरूरी कार्बन और पोषक तत्व मिलते हैं लेकिन मल में मौजूद रोगाणु इंसान को बीमार कर सकते हैं. ये न केवल मिट्टी को बल्कि शौच स्थल के आसपास के ग्राउंड वाटर और दूसरे जल स्रोतों को भी दूषित कर सकते हैं.’
संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनिसेफ के अनुसार, एक ग्राम मानव मल में 10 मिलियन वायरस, एक मिलियन बैक्टीरिया और एक हजार परजीवी सिस्ट हो सकते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, खराब स्वच्छता जैसे कि शौच के बाद और खाने से पहले साबुन से हाथ न धोने के कारण हर साल डायरिया से 800,000 से अधिक मौतें होती हैं. यह संख्या मलेरिया से मरने वाले लोगों से भी अधिक है.
इजावा ने शौच के लिए कैंसिल कर दिया हनीमून का प्लान
खुले में शौच करने के दृढ़ विश्वास को लेकर इजावा को भारी कीमत भी चुकानी पड़ी है. दूसरी शादी के बाद इजावा को पेरू के लोकप्रिय टूरिस्ट प्लेस Machu Picchu जाना था लेकिन जब उन्हें पता चला कि वहां उन्हें शौच के लिए टॉयलेट का इस्तेमाल करना पड़ेगा तो उन्होंने अपने हनीमून का एक हिस्सा रद्द कर दिया. वो हंसते हुए कहते हैं, ‘मैंने सिर्फ खुले में शौच करने के लिए अपनी पत्नी और माचू पिचू की यात्रा को खतरे में डाल दिया.’
जापान के Forest Products Research Institute (FFPRI) के मिट्टी वैज्ञानिक 43 साल के काजुमिची फूजी इजावा के बाहर शौच करने के तरीके से सहमत हैं लेकिन वो कहते हैं कि इजावा के तरीके उतने सुरक्षित नहीं हो सकते जितना कि वो सोचते हैं. खासकर उनका पूपलैंड की मिट्टी को चखकर दिखाना कि वो कितनी सुरक्षित है.
फुजी ने कहा कि जापान के एदो शहर में खेती की जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए मानव मल का उपयोग किया जाता था, लेकिन देखा गया कि वहां के लगभग 70 प्रतिशत लोग परजीवी संक्रमण से पीड़ित थे.
इजावा कहते हैं कि खुले में शौच करना उन्हें प्रकृति के करीब ले जाता है. वो कहते हैं कि मरने के बाद जापानी परंपरा के अनुसार, उनके शरीर को जलाया नहीं जाएगा बल्कि जंगल में ही सड़ने-गलने के लिए छोड़ दिया जाएगा.