राहुल गांधी ने कांग्रेस मुख्यालय इंदिरा भवन के उद्घाटन भाषण के दौरान सेल्फ गोल कर दिया. राहुल गांधी ने कथित रूप से अपने बयान में इंडियन स्टेट के खिलाफ लड़ाई लड़ने की बात कर दी. राहुल गांधी यहां बीजेपी-आरएसएस और मोहन भागवत को घेरने का प्रयास कर रहे थे पर उनसे हो गया उल्टा. दरअसल मौका था कांग्रेस का अपने नए दफ्तर में प्रवेश करना का. सोनिया गांधी ने इस भवन का उद्घाटन किया और राहुल गांधी ने स्पीच दी. राहुल ने बयान दिया कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल सिर्फ बीजेपी-आरएसएस से नहीं, बल्कि भारतीय राज्य से लड़ रहे हैं. इस बयान के बाद बीजेपी भड़की हुई है. बीजेपी प्रवक्ता प्रदीप भंडारी कहते हैं कि ‘राहुल गांधी ने अपनी मंशा साफ कर दी है. उन्होंने कहा- हम भारतीय राज्य से लड़ रहे हैं. राहुल गांधी उन ताकतों के रिमोट कंट्रोल में हैं जो भारतीय राज्य को खत्म करना चाहते हैं. उनके इरादे राष्ट्रीय हित के खिलाफ हैं.’
पर सवाल उठता है कि भारत विरोधी ऐसी बात राहुल गांधी के मुंह से निकल कैसे जाती है? राहुल गांधी ने पिछले साल सितंबर महीने में अपनी विदेश यात्रा के दौरान आरक्षण पर बात करते हुए कहा था कि भारत में आरक्षण तब खत्म कर दिया जाएगा, जब भारत एक फेयर प्लेस हो जाएगा. राहुल गांधी की उस समय भी आलोचना हुई थी कि उन्हें भारत क्यों फेयर स्टेट नहीं लगता है. आइये देखते हैं कि कैसे उनके दिमाग में ये बातें आजकल आ जाती हैं ?
1-स्टेट की अवधारणा का विरोध?
किसी भी लोकतांत्रिक देश में स्टेट की अवधारणा का विरोधी होने का मतलब माना जाता है डेमोक्रेसी पर भरोसा न होना. आम तौर शुरूआती दौर में मार्क्सवाद स्टेट की विचारधारा को नहीं मानता था. कॉर्ल मार्क्स मानते थे मार्क्सवाद के अंतिम चरण में सभी राज्य विलीन हो जाएंगे. शुरूआती दौर के लिए मार्क्सवाद राज्य को एक आवश्यक बुराई के रूप में बनाए रखने का पक्षधर था. मार्क्स का मानना था कि स्टेट ही सारी बुराइयों का जड़ है. एक और विचारधारा एनॉर्किज्म की अवधारणा को महात्मा गांधी भी आंशिक तौर पर मानते थे. दरअसल गांधी जी का भी मानना था कि स्टेट को अधिक शक्तिशाली बनाने की जरूरत नहीं है. अब अगर राहुल गांधी इंडियन स्टेट से लड़ने की बात करने लगे हैं तो उनके विरोधियों का यह आंकलन करना लाजिमी है कि राहुल पर कम्युनिस्टों का प्रभाव बढ़ रहा है.
2- क्या वाकई कम्युनिस्टों के प्रभाव में हैं राहुल गांधी और कांग्रेस?
कांग्रेस पार्टी में शुरू से एक तबका कम्युनिस्टों से प्रभावित रहा है. आजादी के पहले तो दो गुट ही बन गए थे. पर पार्टी में दक्षिणपंथियों पर कभी वामपंथी हावी नहीं होने पाए. यही कारण रहा कि देश में करीब 5 दशक तक कांग्रेस शासन कर सकी. पर जैसे -जैसे दुनिया में कम्युनिस्टों का प्रभाव खत्म हुआ, वामपंथियों ने दूसरा रास्ता अख्तियार कर लिया. भारत में कम्युनिस्ट पार्टियां कमजोर हुईं तो इस विचारधारा वालों ने अपने लिए कांग्रेस में ठौर ठिकाना हासिल कर लिया. जैसे अमेरिका में वामपंथियों ने डेमोक्रेट्स के रूप में अपनी जगह बनाई . डीप स्टेट की परिकल्पना बहुत कुछ कम्युनिस्टों का बदला रूप ही है. ऐसे में कहा जाने लगा क राहुल गांधी आए दिन कम्युनिस्ट विचारधारा वाली बातों को लागू करने की बातें वामपंथियों के प्रभाव में आकर ही करते हैं. कभी संपत्ति का समान वितरण, अरबपतियों को खत्म करना, जिसकी जितनी आबादी -उसकी उतनी हिस्सेदारी जैसी राहुल गांधी की बातों पर वामपंथ का साया नजर आता है.
बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने लिखा, कांग्रेस का घिनौना सच उजागर हो गया. राहुल गांधी ने वह बात स्पष्ट रूप से कह दी, जो उनका सपना है. यह कोई रहस्य नहीं है कि राहुल गांधी और उनके इकोसिस्टम के अर्बन नक्सलियों और डीप स्टेट एक्टर्स के साथ गहरे संबंध हैं. ये वे लोग हैं, जो भारत को ‘बदनाम, अपमानित और खारिज’ करना चाहते हैं. कांग्रेस का इतिहास उन सभी ताकतों को प्रोत्साहित करने का रहा है जो एक कमजोर भारत चाहते हैं.
कांग्रेस नेता सचिन पायलट राहुल गांधी पर हो रहे हमलों के जवाब में कहते हैं कि,संघ कहता है कि आजादी 1947 में नहीं मिली थी तो क्या वे लोग हजारों लोगों के बलिदान का मजाक नहीं उड़ा रहे. जिन लोगों ने आजादी की लड़ाई में हिस्सा नहीं लिया, वे कभी समझ नहीं सकते. केंद्र सरकार संवैधानिक संगठनों को कमजोर करने के लिए रणनीतिक तरीके से काम कर रही है. चुनाव आयोग जैसे संगठनों की विश्वसनीयता में गिरावट आई है. हम चाहते हैं कि पारदर्शिता हो और जवाबदेही तय हो.
3-सीलमपुर की सभा में कहा था कि देश को अरबपति नहीं चाहिए
दिल्ली में चुनावों को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी स्थानीय समस्याओं को चुनावी रैलियों में उठा रहे हैं. पर दिल्ली जैसे राज्य के चुनाव में भी राहुल गांधी का फोकस आरक्षण, अमीरी गरीबी, अरबपति, अडानी आदि पर होता है. सीलमपुर की सभा में रविवार को उन्होंने देश से अरबपतियों को खत्म करने की बात भी कह दी. जाहिर है कि राहुल के दिमाग में इस समय साम्यवाद का भूत इस कदर हावी है कि उन्हें इंडियन स्टेट भी आवश्यक बुराई की जगह, अनावश्यक बुराई लगने लगा है.
राहुल ने बुधवार को कांग्रेस मुख्यालय के उद्घाटन के अवसर पर जो बातें कीं बहुत कुछ ऐसी ही थीं.उन्होंने कहा कि आरएसएस की विचारधारा जैसी हमारी विचारधारा हजारों साल पुरानी है और ये हजारों सालों से RSS की विचारधारा से लड़ रही है. ऐसा मत सोचिए कि हम निष्पक्ष लड़ाई लड़ रहे हैं. इसमें कोई निष्पक्षता नहीं है. अगर आप मानते हैं कि हम बीजेपी या RSS से लड़ रहे हैं, तो आप समझ नहीं पाए हैं कि क्या हो रहा है. बीजेपी और RSS ने हमारे देश की हर संस्था पर कब्जा कर लिया है. अब हम बीजेपी, आरएसएस और इंडियन स्टेट से ही लड़ रहे हैं.’ कांग्रेस सांसद ने आगे कहा, ‘हमें नहीं पता कि हमारी संस्थाएं काम कर रही हैं या नहीं. ये बिल्कुल स्पष्ट है कि मीडिया क्या कर रहा है. यहां तक कि लोग भी जानते हैं कि मीडिया अब स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं रहा.
4-सोरोस के संपर्क का असर
अमेरिका में कम्युनिस्टों ने जॉर्ज सोरोस के माध्यम से डेमोक्रेट्स के बीच जगह बना ली है. भारत में राहुल गांधी पर आरोप लगता रहा है कि वे जब भी अमेरिका या यूरोप जाते हैं तो सोरोस का संगठन उनकी मदद करता रहा है. सोरोस पर यूरोप सहित दुनिया के कई लोकतांत्रिक देशों में सरकारों को अस्थिर करने का आरोप लगता रहा है. बीजेपी आईटी सेल के हेड अमित मालवीय लिखते हैं कि राहुल गांधी ने अब भारतीय राज्य के खिलाफ ही खुली जंग का ऐलान कर दिया है. यह सीधे जॉर्ज सोरोस की प्लेबुक से निकला है.
अभी पिछले महीने बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने दावा किया था कि अरबपति निवेशक जॉर्ज सोरोस और कुछ अमेरिका आधारित एजेंसियां, खोजी मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ऑर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट’ (ओसीसीआरपी) और राहुल गांधी की तिकड़ी ने भारत को अस्थिर करने और सत्ता परिवर्तन के लिए सार्वजनिक असंतोष को भड़काने की कोशिश की.
संबित पात्रा ने कहा था कि ओसीसीआरपी और राहुल गांधी दो शरीर और एक आत्मा है. उन्होंने कहा कि ये महज संयोग नहीं है. ये साठगांठ है और इससे एक बात स्पष्ट होती है कि राहुल नहीं चाहते कि भारत आगे बढ़े. भारत की संसद चले, यह राहुल गांधी नहीं चाहते.’