जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इंडिया टुडे के न्यूज डायरेक्टर राहुल कंवल के साथ बातचीत में केंद्र सरकार को लेकर अपने नजरिए के बारे में बात की और रचनात्मक संबंध बनाए रखने के महत्व पर जोर दिया. उनसे सवाल पूछा गया कि क्या वह पीएम मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को नाराज करने से बचने के लिए सतर्क हैं, अब्दुल्ला ने जवाब दिया, ‘किसी को दुश्मनी से शुरुआत क्यों करनी है?’
उमर अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस ने पिछले साल हुए जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल की थी जिसके बाद वह सीएम की कुर्सी पर बैठे हैं. तब से दो मौकों पर वह गृह मंत्री अमित शाह से मिल चुके हैं और हाल ही में सोनमर्ग में टनल के उद्घाटन के दौरान पीएम मोदी से भी मिले थे. उमर अब्दुल्ला ने केंद्र के साथ बातचीत में ‘मिल-जुलकर चलने वाला’ लहजा अपनाया है. हालांकि वह जम्मू-कश्मीर के लिए पूर्ण राज्य के दर्जे की अपनी मांग पर अड़े हुए हैं.
‘मैं लड़ाई क्यों करूं?’
उमर अब्दुल्ला ने केंद्रीय नेतृत्व के साथ अपनी सकारात्मक बातचीत का जिक्र करते हुए कहा, ‘सच तो यह है कि जब मैं प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से मिला, तो उन्होंने बहुत ही स्पष्ट रूप से कहा कि लोगों ने अपनी बात कह दी है. जनादेश का सम्मान किया जाना चाहिए और वे सरकार का पूरा समर्थन और सहायता करेंगे.’
उन्होंने बेवजह के टकराव पर सवाल उठाते हुए कहा, ‘इसलिए जब उन्होंने मनमुटाव की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी, तो मैं लड़ाई क्यों करूं, जिसकी कोई जरूरत ही नहीं है?’
‘हम बीजेपी के साथ नहीं लेकिन…’
जब उनसे उन लोगों के बारे में पूछा गया जो उनका विरोध करते हैं तो उमर अब्दुल्ला ने जवाब दिया, ‘कोई बात नहीं, राजनीति का मतलब अलग-अलग राय रखना है. इसलिए ऐसे भी लोग होंगे जो मुझसे सहमत नहीं होंगे. वे अपनी किस्मत आज़मा सकते हैं और उस कुर्सी पर बैठ सकते हैं जिस पर मैं बैठा हूं. उन्हें ऐसा करने दीजिए. फिर वे जितना चाहें उतना आक्रामक हो सकते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘और अगर उनका तरीका मेरे तरीके से बेहतर काम करता है, तो मैं पहला व्यक्ति होऊंगा जो आपके कार्यक्रम आऊंगा और कहूंगा कि वे सही थे और मैं गलत था.’
उमर अब्दुल्ला ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि वह केंद्र सरकार के साथ मिलकर काम कर रहे हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि उनकी पार्टी जम्मू-कश्मीर से संबंधित मुद्दों पर बीजेपी के साथ है.
उन्होंने कहा, ‘मैं केंद्र के प्रति नरम नहीं हूं. कृपया समझें. सरकार के साथ काम करने का मतलब यह नहीं है कि मैं उनकी हर बात मान लूं. इसका मतलब यह नहीं है कि मैं भाजपा के कामों को स्वीकार कर लूं. इसका मतलब यह नहीं है कि जम्मू-कश्मीर के मुद्दों पर नेशनल कॉन्फ्रेंस का मत और बीजेपी ने जो किया है, उसके बीच कोई आम सहमति है. इन मुद्दों पर कोई सहमति नहीं है.’
उमर अब्दुल्ला ने सवाल किया, ‘लेकिन अगर हम इस बात पर सहमत हैं कि जम्मू-कश्मीर को तरक्की की जरूरत है, विकास की जरूरत है, राज्य का दर्जा बहाल करने की जरूरत है, तो क्या मुझे ऐसी लड़ाई लड़नी चाहिए जहां फिलहाल इसकी जरूरत नहीं है?’
‘यह एक लर्निंग एक्सपीरियंस है’
बतौर मुख्यमंत्री अपने दूसरे कार्यकाल के बारे में उमर अब्दुल्ला ने कहा, ‘यह एक लर्निंग एक्सपीरियंस है. मुझे पता था कि एक केंद्र शासित प्रदेश का मुख्यमंत्री बनना आसान नहीं होगा. कुछ चीजें ठीक हैं, कुछ चीजें मुश्किल रही हैं लेकिन जीवन चलता रहता है.’
‘…इसीलिए क्रिकेट टीम का सिर्फ एक कैप्टन होता है’
उनसे सवाल किया गया, पिछली बार जब आप सीएम थे तब जम्मू-कश्मीर एक पूर्ण राज्य था. तो एक पूर्ण राज्य का सीएम होने और एक केंद्र शासित प्रदेश का सीएम होने में क्या अंतर है? उमर अब्दुल्ला ने जवाब दिया, ‘सबसे बड़ा अंतर है कि दो पावर सेंटर्स होते हैं. उपराज्यपाल के पास अपनी शक्तियां होती हैं और मुख्यमंत्री के पास अपनी. इससे चीजें थोड़ी मुश्किल हो जाती हैं क्योंकि मुझे लगता है कि यूनिटी ऑफ कमांड के बिना कोई भी संस्थान बेहतर काम नहीं कर सकता. यही वजह है कि क्रिकेट टीम का सिर्फ एक कप्तान होता है, सिर्फ एक आर्मी चीफ होता है और सिर्फ एक प्रधानमंत्री होता है.’