साल 1978 में, जब भारत मोरारजी देसाई सरकार के नोटबंदी की घोषणा के झटकों से जूझ रहा था, उसी वक्त उत्तर प्रदेश के संभल में सांप्रदायिक दंगों का तूफान चल रहा था. सांप्रदायिक तनाव के रूप में शुरू हुआ विवाद जल्द ही क्षेत्र के सबसे विनाशकारी दंगों में से एक में बदल गया, जिसमें 184 लोग मारे गए, जिनमें 180 हिंदू थे. 1978 के दंगों ने संभल की डेमोग्राफी बदल दी.
संभल दंगों से जुड़ी एक फाइल आज तक को सूत्रों के हवाले से मिली है. 23 दिसंबर, 1993 का एक लेटर आज तक के हाथ लगा है, जो उत्तर प्रदेश सरकार के न्याय विभाग के विशेष सचिव ने जिला मजिस्ट्रेट को लिखा था. लेटर में न्याय विभाग ने संभल दंगों से जुड़े 8 मुकदमों को वापस लेने का आदेश दिया था.
सूत्रों का दावा 1993 में मुलायम सिंह की सरकार के दौरान पहली कैबिनेट की मीटिंग के बाद 8 मुकदमों को वापस लेने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के न्याय विभाग की तरफ से यह लेटर लिखा गया था. 1978 के दंगों की फाइलें तलाशी जा रही थीं, इसी दौरान यह फाइल भी मिली. सूत्रों के मुताबिक दंगों के 10 केस की फाइल खंगालने से पता चलता है कि हत्या जैसे संगीन मामलों को भी राज्य सरकार ने ठीक से हैंडल नहीं किया था.
संभल में 1978 में हुए सांप्रदायिक दंगों के 10 केस जो जिला न्यायालय में चल रहे थे, उनके बारे में पता चला है कि उनमें सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया. राज्य सरकार के अभियोजन विभाग द्वारा मुकदमों की पैरवी में कोई रुचि नहीं ली गई, जिस कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई. इनमें से किसी केस में गवाही ही नहीं हुई, जिस कारण आरोपी बरी हो गए, तो किसी केस में जांच अधिकारी (Investigative Officer) ही गवाही देने के लिए पेश नहीं हुए जिसकी वजह से आरोपी बरी हुए.