सुपौल: बिहार सरकार के मुखिया प्रगति यात्रा के दौरान तीसरे चरण में 20 जनवरी यानि आज सोमवार को सुपौल आ रहे हैं और उसको लेकर प्रशासनिक स्तर से तैयारी की जा रही है. मुख्यमंत्री के आने की सूचना से कोसी नदी के कटाव से विस्थापित होकर तटबंध और स्पर पर पिछले 13 वर्ष से समय काट रहे लोगों में बड़ी आस जगी है.
लोगों का कहना है कि, क्या ऐसे विस्थापित परिवारों का उद्धार हो सकेगा. कोसी नदी ने 2008 और 2010 में बलथरवा, बनैनियां, इटहरी, सनपतहा, औरही, ढ़ोली, कटैया, भुलिया गौरीपट्टी, कोढ़ली, लौकहा, उग्रीपट्टी, तकिया, करहरी, कवियाही, सियानी, पिपराही, लौकहा पलार, सिहपुर सहित कई गांवों को भारी नुकसान पहुंचा. कोसी के तेज कटाव के बीच कुछ गांव पूरी तरह से विस्थापित हो गए. ऐसे गांव के लोग पिछले 13 वर्ष से तटबंध और उसके स्पर पर शरण ले रखे हैं. इनमें से कई परिवार को सरकार ने पुनर्वास की जमीन दी. कुछ लोग पुनर्वास की जमीन में अपना-अपना घर बना लिए लेकिन अभी भी कई परिवार ऐसे हैं जो पुनर्वास की जमीन में घर बनाकर रहना नहीं चाहते हैं. ऐसे लोगों का कहना है कि तीन डिसमिल जमीन परिवार के गुजर के लिए काफी नहीं होती. तटबंध के किनारे रहने से उन लोगों को अपने खेतों के देखरेख का मौका मिल जाता है. उसके चलते पुनर्वास की जमीन में जाना नहीं चाहते. कई ऐसे परिवार हैं जिनको अभी तक पुनर्वास की जमीन नहीं मिली है. ऐसे परिवार सरकार के पुनर्वास की जमीन की आस में हैं.
तटबंध और स्पर पर रहनेवाले लोगों का कहना है कि, उनलोगों के परिवार बाहर की कमाई पर चलता है. सरकार बाढ़ के समय जो सहायता राशि देती है वह एक माह के खर्च के बराबर भी नहीं होती है. जो खेती बाड़ी करते हैं वह भी बाढ़ के पानी में प्रभावित होते रहती है. विस्थापित परिवार के लोगों का कहना है कि, जिनको पुनर्वास की जमीन नहीं उनको काफी कठिनाई हो रही है. बाढ़ के समय अपने घर के सामान को सुरक्षित स्थान पर रखने के लिए जगह नहीं मिलती. विस्थापित परिवारों में से कई लोगों का कहना है कि, उन लोगों को आर्थिक पुनर्वास चाहिए. बाढ़ में जो क्षति हुई है उसकी भरपाई सरकार द्वारा नहीं की जा रही है. उल्टे जिस जमीन में पानी है उसको बिहार सरकार घोषित करने की योजना है. विस्थापित परिवार में से कई लोगों का कहना कि एक तो बाढ़ से विस्थापित होना पड़ा है और दूसरा यह कि जमीन से भी बेदखल होने की संभावना है क्योंकि पहले जिस जमीन में पानी बह रहा था उसे सर्वे में बिहार सरकार घोषित कर दिया गया. अब जो जमीन बची हुई है उसमें से कई में पानी बहता है. यदि इस बार के सर्वे में बची हुई जमीन को बिहार सरकार घोषित किया गया तो बड़ी परेशानी होगी. 10 धूर जमीन जो पुनर्वास में दी जा रही है उससे गुजारा संभव नहीं होता. पुनर्वास की जमीन में तो घर बन जाता है बाकी वर्ष भर घर चलाना संभव होता है और उसके चलते परिवार के सदस्य बाहर पलायन करते रहते हैं.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आगमन की खबर से लोगों में बड़ी आस जगी है. लोगों का कहना है कि, इस बार क्या उन लोगों का उद्धार होगा. सरकार विस्थापित परिवार के आर्थिक पुनर्वास की व्यवस्था करेगी.