संगम नगरी प्रयागराज में महाकुंभ के चलते कई महंत, संन्यासी और महामंडलेश्वर बनाए जा रहे हैं. गुरुवार को दिगंबर अखाड़े की छावनी में पट्टाभिषेक समारोह हुआ. विधिविधान से चार नए महामंडलेश्वर बनाए गए. इनमें सबसे कम 18 साल के महामंडलेश्वर स्वामी सियाराम दास भी शामिल हैं. वो महामंडलेश्वर स्वामी रामदास टाटाम्बरी के उत्तराधिकारी हैं.
इनके साथ ही स्वामी अनमोल दास, स्वामी नंदराशरण व स्वामी बजरंग दास का महामंडलेश्वर पद पर पट्टाभिषेक किया गया. महामंडलेश्वर बनाए जाने के दौरान परिसर जय श्रीराम का उद्घोष होता रहा तो उपस्थित संत-महात्माओं ने सभी को आशीर्वाद प्रदान किया. पट्टाभिषेक से पहले तीनों अनि अखाड़ों के निशान दिगंबर अखाड़ा में बैंडबाजा के साथ पहुंचे.
निर्मोही, निर्वाणी व दिगंबर अखाड़े के संत-महात्माओं ने चारों संन्यासियों का महामंडलेश्वर के रूप में पट्टाभिषेक किया. इस महाकुम्भ में अभी तक जितने भी महामंडलेश्वर व महंत बनाए गए हैं, उसमें कम उम्र के महामंडलेश्वर सियाराम दास ही हैं. इस मौके पर महामंडलेश्वर स्वामी राम संतोष दास, महामंडलेश्वर वैष्णव दास, महामंडलेश्वर भागवत दास, गोपाल दास, आदि संत, महात्मा व शिष्य मौजूद रहे.
13 साल में छोड़ा घर-बार
बताते हैं कि जब सियाराम दास उम्र महज 13 साल थी, तभी घर-परिवार को छोड़कर संन्यास जीवन में आ गए थे. महामंडलेश्वर बनने वाले सियाराम दास मूलरूप से मध्य प्रदेश के रहने वाले हैं. किशोरावस्था में ही वह दिगंबर अनी अखाड़े के श्रीमहंत रामदास महाराज टाटंबरी बाबा के शिष्य बन गए थे. छोटी-सी उम्र में इतना तेज देखकर टाटंबरी महाराज के सबसे प्रिय शिष्य बन गए.
पांच साल में बने महामंडलेश्वर
अब महाकुंभ में महामंडलेश्वर बनाया गया और बाबा ने अपना उत्तराधिकारी भी बना दिया. संन्यास में आने के बाद ही इनका पिंडदान आदि कराया गया था. जब 13 साल की उम्र में सियाराम दास टाटंबरी बाबा के पास पहुंचे तो उन्होंने नन्हे बालक को देखते ही कहा- यह बालक बहुत तेज है, इसे साधु बनाना है. वह लगातार अपने साथ रखकर सियाराम दास को धर्म अध्यात्म का ज्ञान कराते रहे. फिर पांच साल बाद उन्होंने अपने प्रिय शिष्य को महामंडलेश्वर बना दिया.