Uttarakhand UCC: उत्तराखंड में सोमवार (27 जनवरी 2025) से लागू हुई समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लेकर मुस्लिम संगठनों में खासी नाराजगी है. जमीअत उलमा-ए-हिंद ने भी उत्तराखंड UCC के खिलाफ बयान जारी कर कहा है कि समान नागरिक संहिता मुसलमानों को किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं है.
जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने उत्तराखंड में लागू की गई समान नागरिक संहिता को संविधान में मौजूद धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ बताया है और इसे लोकतंत्र की हत्या करने जैसा बताया है.
महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि संबंधित पक्षों, विशेष रूप से मुस्लिम अल्पसंख्यकों की आपत्तियों को नजरअंदाज कर इस कानून को लागू करना न्याय विरोधी है. भारत के विधि आयोग द्वारा मंगाए गए जनता के सुझावों से यह तथ्य सामने आ गया था कि देश के अधिकांश लोग समान नागरिक संहिता को स्वीकार नहीं करते. इसलिए विधि आयोग ने सरकार को सलाह दी थी कि समान नागरिक संहिता न तो वांछनीय थी और न ही इसकी कोई आवश्यकता है. इसके बावजूद सार्वजनिक सुझावों और विधि आयोग की सिफारिशों की उपेक्षा करते हुए सरकार ने एक तानाशाह की तरह इस कानून को जनता पर थोपकर लोकतंत्र की हत्या की है.
मौलाना मदनी ने कहा है कि हमने सरकारों के सामने इस सच्चाई को बार-बार पुरजोर ढंग से पेश किया था कि देश और संविधान के निर्माताओं ने पर्सनल लॉ की रक्षा करने का वादा किया था. अगर सरकार इस वादे से मुकरती है तो हम इसके विरुद्ध कानून और संविधान के दायरे में रह कर संघर्ष करेंगे.
देश की एकता और अखंडता पर पड़ेगा असर
मौलाना महमूद मदनी ने आगे कहा कि हमारा देश अनेकता में एकता का एक महान उदाहरण है. इसको नजरअंदाज कर जो भी कानून बनाया जाएगा, उसका सीधा असर देश की एकता और अखंडता पर पड़ेगा. यह अपने आप में समान नागरिक संहिता के विरोध का सबसे बड़ा कारण है.
इस्लामी शरिया का समर्थन करते हुए मौलाना मदनी ने कहा कि हम इस बात पर दृढ़ हैं कि मुसलमान इस्लामी शरिया पर पूरी तरह डटे रहेंगे और इस रास्ते में आने वाले किसी भी कानून की परवाह नहीं करेंगे.