देश भर के मंदिरों में वीआईपी एंट्री का चलन है. सुप्रीम कोर्ट में इस पर रोक लगाने को लकर एक याचिका दायर की गई थी. अब अदालत ने इस याचिका को लेकर कोई निर्देश पारित करने से इनकार कर दिया है. देश के मुख्य न्यायधीश संजीव खन्ना की पीठ इस विषय को सुन रही थी. अदालत ने साफ किया कि भले वे याचिका में उठाए गए मुद्दे से सहमत हों लेकिन इसको लेकर अदालत को अपनी तरफ से इस मामले में कोई आदेश या दिशानिर्देश देना ठीक नहीं होगा. अदालत ने ये जरूर कहा कि राज्य की संस्थाएं इस मामले में अपनी जो उचित हो, उस तरह के जरूरी फैसले ले सकती हैं. आइये विस्तार से समझें पूरा मामला.
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में वीआईपी दर्शन के लिए अतिरिक्त शुल्क वसूलने और मंदिरों में एक खास वर्ग के लोगों को तरजीह देने, उनके लिए चुनिंदा और खास व्यवस्था देने के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर की गई थी. जिस पर अदालत ने विचार करने से इनकार कर दिया. देश के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने साफ तौर पर कह दिया कि इस मुद्दे पर फैसला समाज और मंदिर प्रबंधन को करना होगा. अदालत इस संबंध में कोई निर्देश नहीं दे सकती. अदालत ने कहा -हमारी राय हो सकती है कि कोई विशेष व्यवहार नहीं दिया जाना चाहिए, लेकिन ये निर्देश अदालत नहीं जारी कर सकती.
याचिका में क्या कहा गया था?
याचिका दायर करने वाले शख्स का नाम वकील आकाश वशिष्ठ है. उनका तर्क था कि 12 ज्योतिर्लिंग होने के कारण कुछ एसओपी की आवश्यकता है, वीआईपी दर्शन की पूरी व्यवस्था मनमानी है. अदालत वृंदावन के श्री राधा मदन मोहन मंदिर के विजय किशोर गोस्वामी की ओर से भी दायर इस मुद्दे पर दायर याचिका की सुनवाई कर रहा था. उस याचिका में कहा गया था कि मंदिरों में वीआईपी कल्चर संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 में निहित समानता के अधिकार का उल्लंघन है. ऐसा इसलिए क्योंकि ये पैसे के हिसाब से असमर्थ भक्तों के साथ भेदभाव करता है. खासकर, वंचित महिलाओं, विकलांग व्यक्तियों और वरिष्ठ नागरिकों को इससे दिक्कत होती है.