‘अंधाधुंध कर्ज देश को…’, चीन के BRI पर ऐसा क्यों बोले नेपाल के PM ओली?

भारत का पड़ोसी देश नेपाल देश पर बढ़ते कर्ज को लेकर चिंतित है. इस चिंता को लेकर देश में विदेशी सहायता रणनीति पर काफी बहस हो रही है. इसी बीच देश के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने कहा है कि कोई भी सरकार को, चाहे उसका नेतृत्व कोई भी करे, अंधाधुंध कर्ज नहीं लेना चाहिए, जिससे देश कर्ज के जाल में फंस जाए.

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शुक्रवार को प्रतिनिधि सभा के शीतकालीन सत्र की पहली बैठक को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘बिना किसी कर्ज के साफ-सुथरा रहने के नाम पर नेपाल अविकसित नहीं रह सकता और साहसिक कदम उठाने के नाम पर अंधाधुंध कर्ज लेकर देश को कर्ज के जाल में नहीं फंसा सकता, भावी पीढ़ियों पर बोझ नहीं डाल सकता.’

नेपाल के अखबार ‘द काठमांडू पोस्ट’ की रिपोर्ट के मुताबिक, इस दौरान प्रधानमंत्री ने कहा कि सिर्फ नेपाल ही नहीं, बल्कि किसी भी देश को ऐसा नहीं करना चाहिए.प्रधानमंत्री ओली ने कहा, ‘एक समय था जब भारी-भरकम कर्ज लेने वाले वित्त मंत्री को सफल माना जाता था. लेकिन समय बदल गया है. अगर कोई विदेशी मदद हमारे राष्ट्रीय हित के अनुरूप नहीं है या अगर हमारे पास कर्ज चुकाने की क्षमता नहीं है तो हमें ऐसे कर्ज लेने से पहले सावधानी बरतनी चाहिए.’

नेपाल में विदेशी कर्ज को लेकर 2017 से तेज हुई बहस

नेपाल में विदेशी मदद, कर्ज और ग्रांट आदि को लेकर 2017 से बहस तेज हो गई है. 2017 में नेपाल की सरकार ने चीन के साथ बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव पर हस्ताक्षर किया था. चीन के इस प्रोजेक्ट पर गरीब और विकासशील देशों को कर्ज जाल में फंसाने के आरोप लगते रहे हैं. 2017 में ही नेपाल ने अमेरिका के साथ मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन कॉम्पैक्ट (MCC) पर हस्ताक्षर किया था.

नेपाल में अमेरिका का प्रोजेक्ट पहले ही लागू हो चुका है. इस प्रोजेक्ट में नेपाल आने वाले चार सालों में 19.7 करोड़ डॉलर निवेश करेगा. अमेरिका प्रोजेक्ट में 55 करोड़ डॉलर निवेश कर रहा है.

अमेरिका नेपाल में अपने प्रोजेक्ट तेजी से पूरे कर रहा है लेकिन चीनी प्रोजेक्ट बीआरआई पर काफी कम प्रगति देखी गई है. हाल ही में प्रधानमंत्री ओली चीन दौरे पर गए थे जिस दौरान दोनों पक्षों ने एक व्यापक समझौता किया जिसके तहत बीआरआई के कम से कम दस प्रोजेक्ट्स विकसित किए जाएंगे. हालांकि, निवेश और प्रोजेक्ट्स में कौन, कितना पैसा लगाएगा, इस पर अभी फैसला होना बाकी है.

ओली दिसंबर में चीन गए थे और उन्होंने अपने चीन दौरे को काफी सफल बताया था. उनकी यात्रा के दौरान चीन ने नेपाल को 2 करोड़ डॉलर देने का वचन दिया. चीन ने 2015 में ही नेपाल को यह पैसा देने को कहा था. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इसके अलावा नेपाल को 9.34 अरब नेपाली रुपए मदद देने की घोषणा की थी.

चीन और अमेरिका, किसे चुनेगा नेपाल?

प्रतिनिधि सभा में बोलते हुए केपी शर्मा ओली ने संकेत दिया कि नेपाल के विकास के लिए उनकी सरकार चीन और अमेरिका में से किसी एक को चुनने की स्थिति में नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘चाहे BRI हो, MCC हो, विश्व बैंक हो या एशियाई इंफ्रास्ट्रक्चर और निवेश बैंक हो, हम इस स्थिति में नहीं कि इनमें से किसी का चुनाव कर सकें. चाहे वो ग्रांट हो, रियायती कर्ज हो या प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हो, हमारे पास देश और लोगों को फायदा पहुंचाने वाली मदद को स्वीकार करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है.’

अपनी संप्रभुता से समझौता कर रहा नेपाल?

नेपाल का विदेशी कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है. सितंबर 2024 में उसका विदेशी कर्ज बढ़कर 10.5 अरब डॉलर हो गया था. चीन के पड़ोस में बसा हुए नेपाल रणनीतिक रूप से बेहद अहम देश है जहां चीनी प्रभाव को कम करने के लिए अमेरिका ने MCC प्रोजेक्ट शुरू किया है. नेपाल में इस बात पर अकसर बहस होती है कि चीन और अमेरिका के कर्ज तले दबा नेपाल अपनी संप्रभुता से समझौता कर रहा है. भारत भी इसमें एक बड़ा फैक्टर है.

अमेरिका इंडो-पेसिफिक क्षेत्र में चीन के प्रभाव को रोकने के लिए भारत के साथ अपने रिश्ते मजबूत कर रहा है, साथ ही वो क्षेत्र के देशों को भी अपने खेमे में करने की भरपूर कोशिश कर रहा है.

इधर, नेपाल अमेरिका के साथ-साथ चीन से भी अपने संबंधों को लगातार बढ़ा रहा है. नेपाल में चीन के सहयोग के कई प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं. मार्च 2023 में ही चीन ने नेपाल को पोखरा इंटरनेशनल एयरपोर्ट के निर्माण के लिए 21.5 करोड़ डॉलर की मदद दी थी.

चीन ने यह कर्ज भारी ब्याज पर दिया था जिससे नेपाल की अर्थव्यवस्था पर बेहद बुरा असर हुआ. नेपाल को वर्ल्ड बैंक और एशियन डेवलपमेंट बैंक से क्रमशः 0.25 प्रतिशत और 0.75 प्रतिशत ब्याज पर कर्ज मिलता है लेकिन चीन से यह कर्ज उसे 2 प्रतिशत ब्याज पर मिला है.

वर्ल्ड बैंक और एशियन डेवलपमेंट बैंक नेपाल को कर्ज चुकाने के लिए 40 साल का समय दे देते हैं लेकिन चीनी कर्ज चुकाने के लिए नेपाल के पास ज्यादा से ज्यादा 15-20 साल का ही समय है.

पोखरा इंटरनेशनल एयरपोर्ट की तरह ही चीन नेपाल में कई प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहा है. चीन नेपाल का सबसे बड़ा कर्जदाता भी बन बैठा है. चीन के जिस कर्ज जाल कूटनीति की बात होती है, नेपाल उसमें फंसता जा रहा है. नेपाल के अंदर इस बात पर बहस होती है चीनी प्रोजेक्ट्स और उसका भारी-भरकम कर्ज देश की संप्रभुता को खतरे में डाल सकता है. चीन ने अपने तथाकथित विकास प्रोजेक्ट्स के नाम पर श्रीलंका और पाकिस्तान को भी अपने कर्ज जाल में फंसा रखा है.

चीनी कर्ज में फंसने के बाद जब देशों की आर्थिक स्थिति बदतर हो जाती है और वो डिफॉल्ट होने लगते हैं तो चीन अपनी आंखें मूंद लेता है. 2022 में श्रीलंका के साथ यही हुआ. चीनी कर्ज में फंसे श्रीलंका की हालत इतनी खराब हो गई कि 12 अप्रैल 2022 को उसने खुद को डिफॉल्ट घोषित कर दिया. पाकिस्तान भी डिफॉल्ट की कगार पर खड़ा है.

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