हर साल माघ महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी मनाई जाती है. इस दिन को ज्ञान, संगीत और कला की देवी मां सरस्वती का प्राकट्य दिवस के रूप में भी मनाया जाता है. इस दिन को ऋषि पंचमी और सरस्वती पूजा के नाम से भी जाना जाता है. इस बार बसंत पंचमी का त्योहार 2 फरवरी यानी आज मनाया जा रहा है.
बसंत पंचमी के खास अवसर पर देवी सरस्वती की पूजा-अर्चना करने का विधान है. धार्मिक मान्यता है कि मां सरस्वती को पीला रंग बेहद प्रिय है, इसलिए लोग इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनते हैं और मां सरस्वती को पीले फल और मीठे पीले चावल का भोग लगाते हैं.
इसके अलावा, इस दिन सरस्वती पूजा के दौरान व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए. ऐसी मान्यता है कि इस दिन पूजा के दौरान मां सरस्वती की कथा का पाठ करने से मनचाही मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और हर काम में सफलता मिलती है. ऐसे में चलिए पढ़ते हैं बसंत पंचमी की कथा.
बसंत पंचमी की कथा
हिंदू धर्म शास्त्रों में वर्णित पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार जगत के पालनहार भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्माजी ने मनुष्य और पशु-पक्षियों की रचना की. इसके बाद ब्रह्मा जी ने महसूस किया कि जीवों के सर्जन के बाद भी पृथ्वी पर चारों तरफ मौन छाया हुआ है. तब उन्होंने भगवान विष्णु से आज्ञा लेकर अपने कमंडल से जल की कुछ बूंदों को पृथ्वी पर छिड़क दिया.
जल की इन बूंदों पृथ्वी पर एक अद्भुत शक्ति अवतरित हुईं. छह भुजाओं वाली इस देवी के एक हाथ में पुष्प, दूसरे हाथ में पुस्तक, तीसरे और चौथे हाथ में कमंडल और बाकी के दो हाथों में वीणा और माला विराजमान थी. यह देवी और कोई नहीं बल्कि स्वयं मां सरस्वती थीं. उन्होंने ब्रह्मा जी को प्रणाम किया. तब ब्रह्माजी ने देवी से वीणा बजाने के लिए कहा.
जब देवी ने मधुर नाद किया, तो पृथ्वी के सभी जीव-जंतुओं को वाणी सुनने को मिली और पृथ्वी पर उत्सव जैसा माहौल हो गया. ऋषि भी इस वीणा को सुनकर झूम उठे, तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा. वाणी से जो ज्ञान की लहर व्याप्त हुईं हैं. उन्हें ऋषिचेतना ने संचित कर लिया और तभी से इसी दिन बंसत पंचमी के पर्व मनाने की शुरुआत हुई.