मोदी 3.0 का पूर्ण बजट (Modi 3.0 Budget) पेश हो चुका है और इसके साथ ही सरकार ने ये भी बता दिया है कि उसके पास कहां से कितना पैसा आएगा और ये खर्च कहां-कहां किया जाएगा. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (FM Nirmala Sitharaman) ने बीते शनिवार को जो Budget 2025 पेश किया था, उसका साइज 50,65,345 करोड़ रुपये है. इस सबके बीच बात करें सरकार की कमाई की, तो सबसे ज्यादा उसके पास इनकम टैक्स और जीएसटी समेत अन्य करों से आएगा. लेकिन इसमें से 20 फीसदी पैसा तो सिर्फ कर्ज चुकाने में ही खर्च होगा. यही नहीं सरकार को 11.54 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज भी लेना होगा. अब सवाल ये कि आखिर सरकार किसे भारी भरकम ब्याज चुकाती है और कहां से ब्याज वसूलकर मोटी कमाई करती है. आइए जानते हैं इसके बारे में एक-एक डिटेल….
यहां से आएगा सरकार के पास पैसा
सरकार ने बजट पेश होने के बाद जानकारी देते हुए पूरा हिसाब किताब भी बताया है. पीआईबी के मुताबिक, सरकार ने बताया कि बजट में कुल राजस्व प्राप्ति 34,20,409 करोड़ रुपये है और बजट अनुमान 50.65 लाख करोड़ है, इसके अलावा विभिन्न राज्यों को किया जाने वाला आवंटन 14.22 लाख करोड़ रुपये है. पीटीआई के मुताबिक, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि ‘राजकोषीय घाटे के वित्तपोषण के लिए प्रतिभूतियों से शुद्ध बाजार कर्ज 11.54 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है, शेष फाइनेंस स्मॉल सेविंग व अन्य स्रोतों से आ सकता है. इस तरह सकल बाजार उधारी 14.82 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है.’ सरकार की होने वाली कमाई के सबसे बड़े सोर्सेज की बात करें, तो उसे होने वाली ब्याज से इनकम होती है. वहीं इस बार कमाई में Income Tax (14.38 लाख करोड़ रुपये करीब 22%), GST (11.78 लाख करोड़ रुपये 18%), Corporation Tax (10.82 लाख करोड़ रुपये करीब 17%) का हिस्सा सर्वाधिक है.
उत्पाद शुल्क | 3.17 लाख करोड़ रुपये (बजट अनुमान का 5%) |
कस्टम ड्यूटी | 2.40 लाख करोड़ रुपये (बजट अनुमान का 4%) |
अन्य टैक्स | 0.05 लाख करोड़ रुपये (बजट अनुमान का 0.1%) |
नॉन टैक्सेबल रेवेन्यू | 2.90 लाख करोड़ रुपये (बजट अनुमान का 4%) |
इंटरेस्ट एंड डिविडेंड | 3.72 लाख करोड़ रुपये (बजट अनुमान का 6%) |
दूसरे देशों को कर्ज देकर ब्याज की वसूली
टैक्स से होने वाली कमाई के अलावा सरकार अन्य रास्तों से भी पैसा बनाती है. इसमें राज्य सरकारों को दिए कर्ज के अलावा दूसरे देशों को बांटे गए कर्ज पर मिलने वाला ब्याज भी शामिल है, जो कि सरकार के नॉन डेट कैपिटल रिसीटस यानी पूंजी खाते में ही आता है.
FY25-26 के बजट में भी मोदी सरकार ने भारत की नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी के तहत भूटान को सबसे ज्यादा 2,150 करोड़ रुपये की सहायता दी है. इसके बाद नेपाल को 700 करोड़ रुपये, फिर मालदीव को 600 करोड़ रुपये और मॉरीशस को 500 करोड़ रुपये की मदद दी गई है. इसके अलावा म्यांमार को 350 करोड़ रुपये आवंटित किए हए हैं. अफ्रीकी देशों के लिए ये आंकड़ा 225 करोड़ रुपये है, जबकि बांग्लादेश और श्रीलंका के लिए सरकार सहायता राशि देती है, जो जारी रखी है.
कहां-कहां खर्च करेगी सरकार
अब राज्यों को किए जाने वाले आवंटन का हिस्सा जोड़कर देखें, तो सरकार का बजट अनुमान 50 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले खर्च (Budget 2025 Expenditure) से बढ़कर करीब 64 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा हो जाता है. खास बात ये है कि सरकार की कमाई भी ब्याज के पैसों से सबसे ज्यादा होगी और खर्च भी ब्याज चुकाने में ही सबसे ज्यादा करती है, जो इस बार बजट अनुमान का 20% है. आइए जानते हैं कि आखिर सरकार की कमाई की एक-एक पाई कहां पर खर्च होने वाली है…
राज्यों का हिस्सा | 14.22 लाख करोड़ रुपये |
ब्याज चुकाने में | 12.76 लाख करोड़ रुपये |
ट्रांसपोर्ट | 5.48 लाख करोड़ रुपये |
डिफेंस | 4.91 लाख करोड़ रुपये |
प्रमुख सब्सिडी | 3.83 लाख करोड़ रुपये |
पेंशन | 2.76 लाख करोड़ रुपये |
रूरल डेवलपमेंट | 2.66 लाख करोड़ रुपये |
टैक्स एडमिनिस्ट्रेशन | 1.86 लाख करोड़ रुपये |
एग्रीकल्चर | 1.71 लाख करोड़ रुपये |
एजुकेशन | 1.28 लाख करोड़ रुपये |
हेल्थ | 98,311 करोड़ रुपये |
अर्बन डेवलपमेंट | 96,777 करोड़ रुपये |
आईटी-टेलीकॉम | 95,298 करोड़ रुपये |
एनर्जी | 81,174 करोड़ रुपये |
कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज | 65,553 करोड़ रुपये |
फाइनेंस | 62,924 करोड़ रुपये |
सोशल वेलफेयर | 60,052 करोड़ रुपये |
साइंटिफिक डिपार्टमेंट | 55,679 करोड़ रुपये |
एक्सटर्नल अफेयर्स | 20,517 करोड़ रुपये |
नॉर्थ ईस्ट डेवलपमेंट | 5,915 करोड़ रुपये |
अन्य पर | 4.82 लाख करोड़ रुपये |
सरकार कर्ज क्यों और कैसे लेती है?
अब बात करते हैं कि आखिर सरकार कैसे और कहां से कर्ज लेती है. दरअसल, सरकार का खर्च हमेशा उसकी आय से ज्यादा होता है. अब खर्च और कमाई के बीच के अंतर को पूरा करने के लिए सरकार को कर्ज लेना होता है. बता दें कि सरकार दो तरह से लोन लेती है इंटर्नल या एक्सटर्नल. यानी भीतरी कर्ज जो देश के भीतर से होता है और बाहरी कर्ज जो देश के बाहर से लिया जाता है. इन कर्जों का ब्याज चुकाने पर सरकार को सबसे ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ता है.
पहला- इंटरनल डेब्ट
सबसे पहले बताते हैं Internal Debt के बारे में, तो सरकार ये बैंकों, बीमा कंपनियों, रिजर्व बैंक, कॉरपोरेट कंपनियों, म्यूचुअल फंडों के जरिए लेती है. इसके अलावा सरकार आमतौर पर सरकारी प्रतिभूतियों यानी सिक्यूरिटीज (G-Secs) के माध्यम से ही एक तरह का कर्ज ही लेती है. मार्केट स्टेबिलाइजेशन बॉन्ड, ट्रेजरी बिल, स्पेशल सिक्योरिटीज, गोल्ड बॉन्ड, स्माल सेविंग स्कीम, कैश मैनेजमेंट बिल के द्वारा ये पैसा जुटाया जाता है. इस तरह से जुटाए गए कर्ज को सरकार तय समय में ब्याज के साथ लौटाती है. बजट अनुमान में शामिल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट समेत अन्य खर्च को पूरा करने के लिए अक्सर G-Secs जारी किए जाते हैं, जैसे सड़क, हॉस्पिटल या स्कूल बनाने के लिए.
दूसरा- एक्सटर्नल डेब्ट
अब बात करते है सरकार द्वारा लिए जाने वाले कर्ज के दूसरे तरीके के बारे में, जो External Debt होता है. नाम से ही जाहिर है कि ये कर्ज सरकार देश के बाहर से लेती है. इनमें मित्र देशों, IMF-World Bank जैसी संस्थाओं से लिया जाने वाला कर्ज शामिल होता है. हालांकि, विदेशी कर्ज का बढ़ना देश की इकोनॉमी के लिए अच्छा नहीं माना जाता है, इसके पीछे की वजह ये है कि अगर सरकार देश के बाहर से कोई कर्ज लेती है, तो उसका भुगतान US Dollar या फिर अन्य कर्ज देने वाले देश की करेंसी में ही चुकाना होता है. भारत को कर्ज देने वाले देशों की बात करें, तो अमेरिका, जापान, यूरोपीय यूनियन इसमें शामिल हैं. वित्त मंत्रालय द्वारा बीते साल एक रिपोर्ट जारी कर बताया गया था कि सितंबर 2024 में भारत पर कुल 711.8 अरब डॉलर का कर्ज था. इसमें 53.4 फीसदी की हिस्सेदारी सिर्फ अमेरिका की थी.