दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों में सबसे ज्यादा चर्चित सीट नई दिल्ली विधानसभा रही. इसकी वजह यह थी कि यहां से दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल चुनाव लड़ रहे थे. आम आदमी पार्टी (AAP) के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का सवाल थी, लेकिन नतीजे आए तो अरविंद केजरीवाल को करारी शिकस्त मिली.इस सीट पर बीजेपी के प्रवेश शर्मा ने अरविंद केजरीवाल को 4,089 वोटों के अंतर से हरा दिया.अरविंद केजरीवाल को 25,999 वोट मिले. बीजेपी के प्रवेश वर्मा को 30,088 वोट मिले.
इस जीत के बाद प्रवेश वर्मा सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगे. साथ ही, कयास लगाए जाने लगे कि वे दिल्ली के अगले मुख्यमंत्री हो सकते हैं. जीत का जश्न भी जोरों से मनाया गया. इसी कड़ी में उनकी दोनों बेटियों ने आजतक से खास बातचीत की. उन्होंने अपने पिता की जीत पर खुशी जताई और अपनी भावनाएं साझा कीं.
केजरीवाल के खिलाफ पापा की जीत पर क्या बोलीं प्रवेश शर्मा की बेटियां?
प्रवेश वर्मा की बेटियां सानिधि और पृशा ने आजतक से खास बातचीत की. अरविंद केजरीवाल को हराने के सवाल पर उनकी बेटी सानिधि ने कहा कि जब कोई 11 साल तक झूठ से सरकार चलाएगा और लोगों को बहकाएगा, तो ऐसा ज्यादा समय तक नहीं चलेगा. लोग समझदार हैं, इसलिए जो नतीजा सामने आया है, वह स्वाभाविक है. वहीं, उनकी दूसरी बेटी पृशा कहा कि दिल्ली के लोग समझ चुके हैं कि कौन उनका मजाक उड़ा रहा है और कौन उनकी भावनाओं से खेल रहा है.घर पर हनुमान चालीसा के पाठ को लेकर उन्होंने कहा कि पापा बहुत बड़े हनुमान भक्त हैं, और हनुमान जी ने उनका साथ दिया है.
प्रवेश वर्मा की बेटियों ने आजतक से खास बातचीत में कहा कि उन्हें पूरा भरोसा था कि उनके पापा जीतेंगे. उन्होंने बताया कि जब वे नई दिल्ली में पापा के साथ प्रचार कर रही थीं, तब उन्होंने वहां के लोगों को यह विश्वास दिलाया था कि पापा को ही वोट पड़ेंगे. मेरे पापा जानते थे कि वे सत्य के साथ खड़े हैं.
पापा ने राजनीति और परिवार में संतुलन कैसे बनाया?
इस सवाल पर उन्होंने बताया कि चुनाव प्रचार के दौरान पापा बहुत व्यस्त रहते थे, लेकिन वे हमेशा कहते थे कि सिर्फ हम ही उनका परिवार नहीं हैं, बल्कि नई दिल्ली के लोग भी उनका परिवार हैं. मुख्यमंत्री बनने के सवाल पर उन्होंने कहा कि पार्टी जो भी जिम्मेदारी देगी, पापा उसे पूरी निष्ठा से निभाएंगे.
उन्होंने बताया कि पापा हमेशा यह कोशिश करते हैं कि परिवार और राजनीति के बीच संतुलन बना रहे, लेकिन पिछले दो महीनों में उनकी प्राथमिकता चुनाव थी. वे जनता से मिलते, उनकी समस्याएं सुनते और उन्हें हल करने की कोशिश करते थे.