जाति, संस्कृति के आधार पर बांटने वाली ताकतों के खिलाफ लड़ने की जरुरत, बुक लॉन्च कार्यक्रम में बोले उपराष्ट्रपति धनखड़

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को कहा कि देश में विकास का सामना ऐसी ताकतों से हो रहा है, जो जाति, वर्ग, धर्म, रंग, संस्कृति और खानपान के विभाजन को घातक तरीके से बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि मेरे लिए गहरी पीड़ा की वजह यह है कि जो लोग इस तरह के छुपे खतरों को अच्छे से समझते हैं, वो दलगत हितों से जुड़कर संकुचित हो गए हैं.

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दरअसल उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ एन्क्लेव में गोपीचंद पी. हिंदुजा, हिंदुजा ग्रुप के चेयरमैन की किताब ‘I AM?’ के विमोचन कार्यक्रम में शामिल हुए. इस दौरान जगदीप धनखड़ ने कहा कि यह किताब भारतीयता की यूनिवर्सल रिलेवेंस और सभी धर्मों में साफ दिखने वाली अच्छे गुणों के बारे में बताती है.

दूसरों के सत्य का सम्मान और सराहना

उपराष्ट्रपति ने कहा कि हम धर्मांतरण की कोशिश किए बगैर दूसरों के सत्य का सम्मान और सराहना कर सकते हैं. एकता का मतलब समानता नहीं है और भारतीयता इसका उत्तम उदाहरण है. यह विविधता में एकता का प्रतीक है. उपराष्ट्रपति ने कहा कि मानव व्यवहार के सभी पहलुओं में, सहिष्णुता (टॉलरेंस) का मतलब दूसरों पर जीत हासिल करना नहीं है.

अशांति को विचार-विमर्श में बदलें

उन्होंने कहा कि डिसइंटीग्रेशन (विघटन) को संवाद में बदलना चाहिए और संघर्ष को सहमति में बदलना चाहिए. टकराव का रुख सभी धर्मों के सार के विपरीत है और यह गलत तरीके से आत्म धार्मिकता और डिसीजन अप्रोच का प्रतीक है. डेमोग्राफी में अननेचुरल, आर्टिफिशियल रूप से इंजीनियर किए गए परिवर्तन पर चिंता जताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि अगर उद्देश्य दूसरों पर प्रभुत्व, प्राथमिकता हासिल करना है, दूसरों पर जनसंख्या की ताकत से वर्चस्व स्थापित करना है, तो यह चिंता का विषय है.

 

शानदार ऐतिहासिक रिकॉर्ड

उन्होंने कहा कि सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए, जैसा कि मैंने कहा जो मानवता के एक छठे हिस्से का घर है, और जिसकी समावेशिता का एक शानदार ऐतिहासिक रिकॉर्ड है, दुर्भाग्यवश, शरारती ताकतें रणनीति के साथ, भारत के खिलाफ साजिश के तहत राष्ट्र-विरोधी नैरेटिव, अननेचुरल डेमोग्राफिक चेंज, लाखों अवैध प्रवासियों की घुसपैठ और धर्मांतरण के जरिए पैस पसार रही हैं. उपराष्ट्रपति ने कहा कि धर्म में विश्वास स्वैच्छिक होता है, यह अंतरात्मा की आवाज की पुकार होनी चाहिए. जो विश्वास छल-प्रपंच के माध्यम से उत्पन्न होता है, वह मानव शोषण का सबसे दीन-हीन रूप है.

 

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