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स्ट्रीट लाइट योजना में लूट का उजाला: गरला गांव में भ्रष्टाचारियों की चांदी, जनता अंधेरे में

चंदौली : सरकारी योजनाओं का हश्र जब बंद कमरों में तय हो और विकास की रोशनी महज कागजों पर चमके, तब गांव की सड़कों पर अंधेरा छा ही जाता है. चकिया विकास खंड के गरला गांव में 73 स्ट्रीट लाइटों के नाम पर 2,95,867 रुपये का बजट तो पास हुआ, लेकिन लाइट की रोशनी गांव में कहीं नहीं दिखी। दिखा तो सिर्फ प्रधान-सचिव की मिलीभगत और सरकारी तंत्र की उदासीनता का अंधेरा.

सरकारी योजनाएं: बंदरबांट की दुकाने

गांव के प्रधान और सचिव पर आरोप है कि उन्होंने स्ट्रीट लाइट योजना के नाम पर पूरा खेल रचकर सरकारी धन को अपनी जेब में डाल लिया. ग्रामीणों ने मुख्यमंत्री पोर्टल पर शिकायत की तो घोटाले की परतें खुलीं, लेकिन प्रशासन की नींद अब तक नहीं टूटी. यह घटना यह साबित करती है कि सरकारी तंत्र न सिर्फ भ्रष्टाचारियों को पनाह देता है, बल्कि उनकी ढाल भी बनता है.

स्ट्रीट लाइट न लगने की वजह से गांव के लोग अंधेरे में जीने को मजबूर हैं. वे अपनी जेब से एलईडी बल्ब लगाकर उजाले का इंतजाम कर रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि अधिकारियों ने “जीरो टॉलरेंस” नीति को “जीरो परफॉर्मेंस” में बदल दिया है। इस घोटाले ने यह भी दिखा दिया कि प्रशासनिक अधिकारी विकास योजनाओं को गंभीरता से लेने के बजाय घोटालेबाजों की भूमिका में नजर आते हैं.

प्रशासन का ढोंग: न कार्रवाई, न जिम्मेदारी

ग्रामीणों ने इस मामले की शिकायत जिलाधिकारी से भी की, लेकिन उनकी शिकायतें फाइलों में दबा दी गईं. यह प्रशासनिक चुप्पी बताती है कि भ्रष्टाचार का यह अंधेरा केवल गांव तक सीमित नहीं है, बल्कि ऊपर तक फैला हुआ है. सरकारी अधिकारी अपनी निष्क्रियता से यह संदेश दे रहे हैं कि विकास योजनाएं केवल आंकड़ों को सजाने के लिए हैं, न कि जमीनी बदलाव के लिए.

– 73 स्ट्रीट लाइटों का प्रस्ताव सिर्फ कागजों पर सजा।
– आवंटित 2.95 लाख रुपये का घोटाला, जिम्मेदार अधिकारी बेफिक्र.
– ग्रामीण खुद की जेब से खर्च कर रहे हैं, प्रशासन मौन साधे बैठा है.
– योगी सरकार की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति का मजाक उड़ाया जा रहा है.

गरला गांव की यह घटना अकेली नहीं है। यह सरकारी तंत्र में बैठे उन लोगों का असली चेहरा दिखाती है, जो योजनाओं के नाम पर अपनी जेबें भरने में व्यस्त हैं. ग्रामीणों का कहना है कि अगर इस घोटाले पर कार्रवाई नहीं हुई, तो यह न केवल सरकार की छवि को बर्बाद करेगा, बल्कि जनता का विश्वास भी तोड़ देगा.

यह घोटाला सवाल करता है—क्या सरकारी तंत्र वाकई जनता के विकास के लिए है, या फिर यह “भ्रष्टाचार का अड्डा” बन चुका है? जब तक दोषियों पर कड़ी कार्रवाई नहीं होती और योजनाओं को ईमानदारी से लागू नहीं किया जाता, तब तक यह अंधकार कायम रहेगा.

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