छत्तीसगढ़ के बस्तर यूनिवर्सिटी में कम्प्यूटर खरीदी में कमीशनखोरी को लेकर लोक आयोग के आदेश को हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया है. लोक आयोग ने इस मामले में राज्य सरकार को कुलपति, रजिस्ट्रार सहित अन्य अफसरों के खिलाफ जांच की अनुशंसा की थी, जिसे यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.
दरअसल, बस्तर विश्वविद्यालय में 65 कंप्यूटरों की सप्लाई की प्रक्रिया शुरू की गई. इसके लिए रायपुर के एक निजी कंपनी को टेंडर मिला. कंपनी ने समय पर सभी कंप्यूटर की सप्लाई कर दी. लेकिन, यूनिवर्सिटी ने इसका भुगतान नहीं किया. इस पर कंपनी के संचालक संतोष सिंह ने राज्य शासन के साथ ही लोक आयोग में शिकायत कर दी, जिसमें कुलसचिव एसपी तिवारी, कुलपति दिलीप वासनीकर और एक अन्य अधिकारी पर कमीशन मांगने का आरोप लगाया.
इस मामले की जांच के बाद लोक आयोग ने 17 मई 2018 को राज्य सरकार से तत्कालीन कुलपति दिलीप वासनीकर, कुलसचिव एसपी तिवारी और एक अन्य अधिकारी हीरालाल नाइक के खिलाफ जांच की अनुशंसा कर दी.
लोक आयोग के आदेश को हाईकोर्ट में दी चुनौती
यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार एसपी तिवारी ने लोक आयोग के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी, इसमें बताया कि कंप्यूटर की बकाया राशि का भुगतान हो चुका है. वहीं, बस्तर यूनिवर्सिटी की तरफ से बताया गया कि आपूर्ति का निर्णय कार्य परिषद की मंजूरी के बाद लिया गया था.
वहीं, लोक आयोग ने कहा कि याचिकाकर्ता और अन्य अधिकारियों पर गंभीर आरोप थे. जांच के दौरान उन्हें सुनवाई का पूरा मौका दिया गया. इसके बाद दोषी पाए जाने पर राज्य सरकार से जांच की सिफारिश की गई है.
हाईकोर्ट ने कहा- बिना सबूत के आरोप सिद्ध माना
इस मामले की सुनवाई जस्टिस राकेश मोहन पांडेय की सिंगल बेंच में हुई. सभी पक्षों की दलीलें सुनने और दस्तावेजों का परीक्षण के बाद हाईकोर्ट ने पाया कि जांच का आदेश शिकायतकर्ता और उसके गवाहों के मौखिक बयान के आधार पर दिया गया था.
विभाग यह साबित नहीं कर सका कि रिश्वत या कमीशन की मांग की गई थी. कोई ठोस सबूत नहीं था, फिर भी आरोप सिद्ध मान लिए गए. यह भी स्पष्ट हुआ कि शिकायतकर्ता ने केवल बकाया राशि वसूलने के लिए शिकायत की थी. अब जब भुगतान हो चुका है, तो उसे कोई शिकायत नहीं है. इस आधार पर हाईकोर्ट ने लोक आयोग के आदेश को निरस्त कर दिया है.
पेंशन और अन्य प्रकरणों का जल्द करें निपटारा
हाईकोर्ट ने आदेश में कहा है कि याचिका में सेवानिवृत्ति बकाया के भुगतान की कोई विशेष मांग नहीं की गई थी. लेकिन, याचिकाकर्ता के सेवानिवृत्त होने को देखते हुए राज्य सरकार को पेंशन संबंधी दावे का जल्द निपटारा करने के निर्देश दिए गए हैं.