ग्राम झिरिया में क्रेशर संचालन और खदान स्वीकृति को लेकर आदिवासी परिवारों की आजीविका पर बड़ा संकट खड़ा हो गया है. जिला कलेक्टर द्वारा खदान स्वीकृति और क्रेशर संचालन के लिए पत्र जारी किया गया था, जिसके तहत पांच आदिवासी परिवारों ने अपनी जमीन गिरवी रखकर क्रेशर खरीदा और खदान किराए पर ली. इसके बावजूद तहसीलदार बहरी ने अचानक क्रेशर संचालन पर रोक लगा दी, जिससे आदिवासी परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया.
आदिवासी ग्रामीणों का आरोप है कि खदान क्षेत्र में क्रेशर लगाने के दौरान देवरी गांव के कुछ लोगों – अरविंद तिवारी, मनीष द्विवेदी, बाबूलाल यादव, रामपति यादव और राजेश जायसवाल ने पैसों की मांग की. जब आदिवासियों ने इसकी सूचना 10 जनवरी 2025 को थाना बहरी में दी, तो पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की. इसके बाद इन लोगों ने हिम्मत बढ़ाकर आदिवासी परिवारों पर हमला कर दिया और मारपीट की.
हमले के दौरान पीड़ितों ने पुलिस में फिर से शिकायत दर्ज कराई और चार लोगों के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज हुआ. बावजूद इसके, पुलिस ने अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की, जिससे हमलावरों के हौसले बुलंद हैं और वे आदिवासियों को लगातार परेशान कर रहे हैं.
मारपीट की घटना के बाद जब पीड़ित आदिवासी तहसीलदार से मिले और अपनी परेशानी बताई तो तहसीलदार ने उन्हें डांटते हुए कहा, “तुम्हारी इतनी हिम्मत कैसे हुई कि तुम वहां काम करोगे? मेरे रहते तुम वहां काम नहीं कर पाओगे. जहां जाना है, जाओ.” आदिवासियों ने तहसीलदार को खनिज विभाग की गाइडलाइन भी दिखाई, लेकिन उन्होंने एक नहीं सुनी.
आदिवासियों का सवाल है कि जब कलेक्टर द्वारा क्रेशर संचालन की अनुमति दी गई थी, तो तहसीलदार ने किस अधिकार से उस पर रोक लगाई? कलेक्टर जैसे बड़े अधिकारी के आदेश को तहसीलदार द्वारा अनदेखा करना समझ से परे है.
आदिवासी परिवारों का कहना है कि उन्होंने अपनी जमीन गिरवी रखकर क्रेशर खरीदा था और अब तहसीलदार के इस फैसले ने उनकी आजीविका को चौपट कर दिया है.उनके पास रोजगार का कोई दूसरा साधन नहीं है और वे गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं.
प्रशासन की इस अनदेखी और अधिकारियों के बीच तालमेल की कमी ने गरीब आदिवासियों को गहरे संकट में डाल दिया है. अब देखना यह होगा कि जिला प्रशासन इस मामले में क्या कदम उठाता है और आदिवासियों को न्याय दिलाने के लिए कौन से प्रयास किए जाते हैं.