एक देश एक चुनाव अलोकतांत्रिक नहीं…कानून मंत्रालय ने संयुक्त समिति से कहा

कानून मंत्रालय ने एक राष्ट्र, एक चुनाव की तारीफ करते हुए है कि एक साथ चुनाव कराना अलोकतांत्रिक नहीं है. मंत्रालय ने एक राष्ट्र, एक चुनावसंबंधी विधेयकों की पड़ताल कर रही संसद की संयुक्त समिति से कहा है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराना अलोकतांत्रिक नहीं है और इससे संघीय ढांचे को कोई नुकसान नहीं होगा.

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संयुक्त समिति के सदस्यों द्वारा पूछे गए सवालों के उत्तर में केंद्रीय कानून मंत्रालय के विधायी विभाग ने कहा है कि ऐसा समझा जाता है कि अतीत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए गए थे, लेकिन कुछ राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने सहित विभिन्न कारणों से यह चक्र टूट गया था. वहीं सूत्रों मुताबिक मंत्रालय ने समिति के कुछ सवालों के जवाब दे दिए हैं, जबकि कुछ अन्य सवालों को निर्वाचन आयोग को भेज दिया गया है. संयुक्त समिति की अगली बैठक मंगलवार 25 फरवरी को होगी.

1951 से 1967 तक एक साथ हुए चुनाव

दरअसल साल 1951 से 1967 तक लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित किए गए थे. लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए पहले आम चुनाव 1951-52 में एक साथ हुए और यह परंपरा 1957, 1962 और 1967 में हुए तीन आम चुनावों तक जारी रही थी. हालांकि कुछ राज्य विधान सभाओं के समय से पहले भंग होने की वजह से 1968 और 1969 में चुनाव कराए जाने से यह चक्र बाधित हो गया था.

चौथी लोकसभा 1970 में समय से पहले भंग कर दी गई

वहीं चौथी लोकसभा भी 1970 में समय से पहले भंग कर दी गई थी और 1971 में नए चुनाव कराए गए थे. पहली, दूसरी और तीसरी लोकसभा के विपरीत, जिन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया था, पांचवीं लोकसभा का कार्यकाल आपातकाल की घोषणा के कारण अनुच्छेद 352 के अंतर्गत 1977 तक बढ़ा दिया गया था.

एक राष्ट्र, एक चुनाव पर सरकार की तरफ से जारी बयान कहा गया था कि तब से अब तक सिर्फ कुछ ही लोकसभाओं का कार्यकाल पूरे पांच साल तक चला है, जैसे आठवीं, दसवीं, 14वीं और 15वीं। छठी, सातवीं, नौवीं, 11वीं, 12वीं और 13वीं सहित अन्य लोकसभाओं को समय से पहले ही भंग कर दिया गया था. वहीं राज्य विधानसभाओं को पिछले कुछ सालों में इसी तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ा है.

‘एक साथ चुनाव कराने से शासन में एकरूपता को बढ़ावा मिलता है’

सरकार का कहना है कि इन घटनाक्रम ने एक साथ चुनाव कराने के चक्र को पूरी तरह बाधित कर दिया, जिसके कारण देश भर में अलग-अलग चुनावी कार्यक्रम होने का वर्तमान पैटर्न बन गया. एक राष्ट्र, एक चुनाव पर उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बयान में कहा गया कि एक साथ चुनाव कराने से शासन में एकरूपता को बढ़ावा मिलता है और इससे शासन में सुधार होगा.

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