उत्तर प्रदेश विधान परिषद में बोलते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि समाजवादी पार्टी की सरकार में पेंशन योजना का नाम ‘समाजवादी पेंशन योजना’ था. सपा सरकार के दौरान बस सेवा को भी ‘समाजवादी बस सेवा’ कहा जाता था, हर कार्य में ‘समाजवादी’ नाम जोड़ा जाता था. इसी तरह विवेकाधीन धन भी ‘समाजवादी’ बन गया था, लेकिन अब यह धन संवेदनशीलता और बिना किसी भेदभाव के पात्र लोगों तक पहुंचाया जा रहा है.
वहीं, महाकुंभ को लेकर CM योगी ने विपक्ष पर जोरदार हमला बोला. सीएम ने कहा कि प्रयागराज को बदनाम करने में उन्होंने (समाजवादी पार्टी-कांग्रेस ने) कोई कसर नहीं छोड़ी. आप लोग प्रयागराज के बारे में दुष्प्रचार कर रहे थे. किसी ने सही कहा है, जिसकी जैसी दृष्टि वैसी उसकी सृष्टि. वे प्रयागराज को बदनाम करने के तरीके खोज रहे थे. कुछ लोग संसद में कह रहे थे कि महाकुंभ में हजारों लोग मारे गए हैं लेकिन महाकुंभ के दौरान 28,000 लोग अपने परिवारों से मिल गए. समाजवादी पार्टी और कांग्रेस केवल भारत को बदनाम करना चाहते हैं. उनकी लड़ाई बीजेपी के खिलाफ हो सकती है, लेकिन कभी-कभी बीजेपी के खिलाफ लड़कर वे भारत के खिलाफ हो जाते हैं.
सीएम योगी आदित्यनाथ ने सदन में कहा, “पिछले साढ़े आठ साल से जाति, क्षेत्र, भाषा के आधार पर बिना किसी भेदभाव के ‘मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष’ से जनता को पैसा दिया जा रहा है. जब समाजवादी पार्टी सत्ता में थी, तो केवल समाजवादी पार्टी से जुड़े लोगों को ही पैसा दिया जाता था… बीजेपी सरकार में बिना किसी भेदभाव के नीति के अनुसार यूपी की जनता को पैसा दिया जा रहा है… आजादी से लेकर 2017 तक यूपी में सिर्फ 17 सरकारी मेडिकल कॉलेज बने, हमारी सरकार बनने के बाद हर जिले में एक मेडिकल कॉलेज बन रहा है.”
सदन में हंगामे को लेकर मुख्यमंत्री ने कहा कि समाजवादी पार्टी, जो दोनों सदनों में मुख्य विपक्षी पार्टी है, उसका आचरण न तो किसी भी स्थिति में लोकतांत्रिक था और न ही संवैधानिक. मुझे लगता है कि पूरा सदन इस बात से सहमत होगा.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आगे कहा कि जिस प्रकार माननीय राज्यपाल के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग किया गया और जिस प्रकार के नारे लगाए गए, वह न तो किसी सभ्य समाज में स्वीकार्य है और न ही एक आदर्श लोकतांत्रिक व्यवस्था में. यह एक दुखद पहलू है कि समाजवादी पार्टी का यह आचरण दोनों सदनों में देखने को मिला है.
विधान परिषद में सीएम योगी ने कहा कि अयोध्या को लेकर हमारे विरोधी उपहास उड़ाते थे, लेकिन हमको अपने सामर्थ्य पर विश्वास था, राममंदिर आंदोलन में ये लोग हर तरह से रोड़े अटकाने लगे, जब मंदिर बन गया तो ये लोग कहने लगे…’राम तो सबके हैं.’