मोदी की मुहर और नीतीश का बड़ा दिल, बिहार में पहली बार इतनी पावरफुल हुई BJP..

बिहार की सियासत फिर से नई करवट लेती नजर आ रही है. नीतीश कैबिनेट का बुधवार को विस्तार हुआ है, जिसमें बीजेपी के सात विधायकों को मंत्री बनाया गया. जबकि जेडीयू से एक भी मंत्री ने शपथ नहीं ली. सीएम नीतीश कुमार ने जनवरी 2024 में बीजेपी के साथ तीसरी बार हाथ मिलाकर सरकार बनाई थी. इसके बाद से बीजेपी-जेडीयू के बीच कशमकश चल रही थी, जिसके चलते एक साल से कैबिनेट विस्तार अधर में लटका हुआ था. ऐसे में आखिर अचानक अब ऐसा क्या हो गया कि बीजेपी के सात मंत्री बन गए और जेडीयू ने ऐतराज तक नहीं किया?

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नीतीश कुमार और बीजेपी का साथ तीन दशक पुराना है, लेकिन इस दौरान कई बार उनके रिश्ते बने और बिगड़े हैं. सीएम नीतीश दो बार बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ चुके हैं और 2024 में तीसरी बार हाथ मिलाया है. बिहार के बदले सियासी माहौल और महाराष्ट्र में बदले सियासी गेम के बाद नीतीश और उनकी जेडीयू 2025 में बीजेपी से सीएम पद की गारंटी चाहती थी.

पीएम मोदी ने पहले आम बजट में बिहार के लिए खजाना खोला और विकास की सौगात से नवाजा. इसके बाद नरेंद्र मोदी ने सोमवार को भागलपुर रैली में नीतीश को ‘लाडला सीएम’ बताकर एक तरह से उनके चेहरे पर फाइनल मुहर लगाई दी. बीजेपी से हरी झंडी मिलते ही नीतीश कुमार ने बड़ा दिल दिखाया. जेडीयू ने कैबिनेट विस्तार में सभी सात मंत्री पद बीजेपी को दे दिए. इसके चलते बीजेपी पहली बार बिहार सरकार में पावरफुल नजर आ रही है.

बिहार में बीजेपी हुई पावरफुल

बिहार में जेडीयू के पीछे चलने वाली बीजेपी अब पूरी तरह से बड़े भाई के रोल में आ चुकी है. 2020 में जेडीयू से ज्यादा सीटें बीजेपी ने जीती और अब नीतीश सरकार में भी उसका कद काफी बढ़ गया है. बुधवार को कैबिनेट विस्तार में बीजेपी कोटे से सात नए मंत्रियों के शपथ लेने के बाद पहली बार ऐसा है, जब बिहार सरकार के कुल 36 मंत्रियों में से 21 मंत्री बीजेपी के हैं जबकि जेडीयू कोटे से 13 मंत्री है. इस तरह जेडीयू से डेढ़ गुना ज्यादा मंत्री बीजेपी के हो गए हैं.

बिहार में बीजेपी सत्ता में 2005 से हैं, लेकिन इतना पावरफुल पहली बार हुई है. मंत्रिमंडल विस्तार के साथ ही ये तय हो गया है कि अब भले ही मुख्यमंत्री की कुर्सी नीतीश कुमार के पास है, लेकिन ताकत बीजेपी के हाथों में है, जिसका फायदा बीजेपी को विधानसभा चुनाव में मिल सकता है. 2020 में बीजेपी के 74 विधायक जीते थे, लेकिन अब उसकी संख्या 80 विधायकों की हो गई है और जेडीयू के 43 से बढ़कर 45 विधायक हो गए हैं. इसी लिहाज पर मंत्रिमंडल में बीजेपी का सियासी कद बढ़ा है.

बीजेपी ने दिखाया पहले बड़ा दिल

बीजेपी ने 2020 में जेडीयू से ज्यादा विधायक जीतने के बाद भी सत्ता की कमान नीतीश कुमार को सौंप दी थी. इस बार भी नीतीश कुमार ने बीजेपी से नाता तोड़कर आरजेडी के साथ हाथ मिला लिया था, लेकिन 2024 के चुनाव से ठीक पहले एनडीए में वापसी कर गए हैं. इसके बाद भी बीजेपी ने नीतीश कुमार को सिर आंखों पर बैठाए हुए हैं. महाराष्ट्र में बीजेपी ने एकनाथ शिंदे की जगह देवेंद्र फडणवीस को सीएम बनाने का फैसला किया तो जेडीयू ने अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए. ऐसे में बीजेपी ने साफ कर दिया कि महाराष्ट्र की स्थिति से बिहार की अलग है. इसीलिए महाराष्ट्र वाले फॉर्मूले की बात बिहार में नहीं करनी चाहिए.

केंद्र की तीसरी बार सत्ता में आने के बाद से मोदी सरकार बिहार पर खास मेहरबान नजर आई है. 2024 और 2025 दोनों ही बजट में बिहार को विकास की सौगात से नवाजने का काम मोदी सरकार ने किया. इस बार विधानसभा चुनाव से पहले जिस तरह की तमाम घोषणाएं बजट में की गई है, उससे जेडीयू के विश्वास को अच्छे से बीजेपी ने जीतने में सफल. इसके चलते ही नीतीश कुमार सार्वजनिक रूप से कई बार कह चुके हैं कि अब कभी भी एनडीए का साथ नहीं छोड़ेंगे और बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे.

महाराष्ट्र चुनाव के बाद से लगातार सवाल उठ रहा था कि 2025 का बिहार चुनाव एनडीए पीएम मोदी के चेहरे पर लड़ेगी या बिहार एनडीए का चेहरा नीतीश कुमार ही होंगे. नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार का यह बोलना कि पिता जी को एनडीए सीएम फेस घोषित करे. ऐसे में पीएम मोदी ने नीतीश कुमार को लाडला सीएम बताकर उसे पर मुहर लगा दी है. इतना ही नहीं बीजेपी के तमाम बड़े नेता कई बार बोल चुके है कि नीतीश कुमार ही बिहार में एनडीए का चेहरा हैं. इतना ही नहीं जेपी नड्डा ने भी साफ कर दिया है कि नीतीश कुमार बिहार में एनडीए के बड़े भाई हैं.

समझेंनीतीश की सियासी मजबूरी

बिहार में बीजेपी के सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी नीतीश कुमार के लिए पीएम मोदी के बड़ा दिल दिखाए जाने के बाद जेडीयू के पास अब कहने और नाराजगी को जताने का कोई मौका नहीं रह गया. मोदी सरकार ने दिल खोलकर बिहार को बजट दिया और नीतीश कुमार के चेहरे पर मुहर लगा दी. इसके बाद नीतीश कुमार के लिए पाला बदलना आसान नहीं रहा है. राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो नीतीश कुमार अब पहले की तरह मजबूत नहीं रहे. शारीरिक और सियासी रूप से नीतीश कमजोर हैं. ऐसे में नीतीश कुमार के लिए बीजेपी के साथ बने रहना ही सियासी मजबूरी है, वो भी तब जब उनकी सारी इच्छाएं पूरी हो रही है.

बिहार की सियासत में जब तक नीतीश कुमार मजबूत रहे तब तक बीजेपी कभी भी उनके आगे नहीं आ पाई. बीजेपी जब भी ऐसी कोशिशें करती तो जेडीयू की तरफ आक्रामक तेवर दिखाते, लेकिन अब स्थितियां बदल गई हैं. मौजूदा राजनीतिक माहौल में नीतीश को बीजेपी की ज्यादा जरूरत है. नीतीश अगर बीजेपी से गठबंधन तोड़ते हैं तो उनकी पार्टी जेडीयू में टूट हो सकती है. इसकी वजह यह है कि जेडीयू के तमाम नेताओं के संबंध बीजेपी के साथ हैं, वो नहीं चाहते हैं कि अब आरजेडी के साथ जाया जाए. इसके अलावा जेडीयू के कई नेता हैं, जो ये जानते हैं कि बीजेपी के साथ रहे बिना वो नहीं जीत सकते हैं.

वहीं, नीतीश कुमार के बेटे निशांत के राजनीति में आने की चर्चा तेज है. निशांत अगर सियासत में आते हैं तो सीएम नीतीश कुमार के सामने अपने बेटे को सेट करने की चुनौती है. नीतीश जानते हैं कि बीजेपी की मदद के बिना निशांत को सेट करना आसान नहीं होगा. आरजेडी के साथ जाकर संभव नहीं है. ऐसे में बीजेपी के साथ उसकी शर्तों पर ही रहना मजबूरी बन गया है. नीतीश की इच्छा सिर्फ सीएम पद की है, जिसे बीजेपी ने हरी झंडी दे दी है, क्योंकि बीजेपी के लिए नीतीश कुमार का चेहरा जरूरी भी है. नीतीश के सहारे बीजेपी बिहार में अपनी उम्मीद लगाए हुए हैं. इस तरह मोदी ने नीतीश के साथ सियासी केमिस्ट्री बनाकर ही बिहार में चलने का दांव चला है.

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