सहारनपुर : जनपद के इस गांव में होली जलाने पर जलते हैं भगवान शिव के पांव, इसलिए नहीं होता होलिका दहन, जानें यहां का इतिहास

सहारनपुर होली का त्यौहार नजदीक है, देशभर में होलिका दहन की तैयारियां भी जोरों पर चल रही हैं, लेकिन सहारनपुर में एक गांव ऐसा भी है जिसमे होली का पूजन और होलिका दहन नहीं होता, हम बात कर रहे है सहारनपुर की गंगोह विधानसभा के गांव बरसी की जहां पर महाभारत काल से इस गांव में यही परंपरा चली आ रही है.

मान्यता है कि यहां होलिका दहन होने पर भगवान शिव के पैर झुलस जाएंगे, गांव की महिलाएं होलिका पूजन करने दूसरे गांव में जाती हैं, बरसी गांव में भगवान शंकर का महाभारत कालीन स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है.

मान्यता है कि भगवान शंकर यहां आते हैं, ऐसे में होलिका दहन की अग्नि से उनके पैर झुलस जाते हैं, इसलिए बरसी गांव में होलिका दहन नहीं होता है, जबकि होलिका पूजन करने से घर में सुख-शांति व समृद्धि का वास होता है, लेकिन यहां होलिका नहीं जलाने का रिवाज है, हां, रंगों के त्योहार को दुल्हैंडी रंग गुलाल के साथ धूमधाम से जरूर मनाया जाता है, मान्यता यह भी है कि इस मंदिर पर प्रतिवर्ष विशाल मेला भी लगता है जहां पर कई राज्यों के लोग मंदिर में पहुंचकर भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं, ग्रामीण अनिल गिरी ने बताया कि गांव के एक टीले पर भगवान शिव का मंदिर मौजूद है जिसको कौरवों ने रातों रात बनाया था, लेकिन कुरुक्षेत्र के युद्ध पर जाते समय पांडव पुत्र भीम ने अपनी ताकत से मंदिर के मुख्य द्वार में गदा फंसाकर इस मंदिर को पूर्व से पश्चिम दिशा में घुमा दिया था, जो कि आज भी उसी स्थिति में मौजूद है, ग्रामीणों का दावा है कि इसी कारण यह देश का एकमात्र पश्चिम मुखी शिव मंदिर माना जाता है.

ग्रामीणों के मुताबिक, कुरुक्षेत्र जाते समय भगवान कृष्ण भी इस गांव में रुके थे, तब उन्होंने इस गांव को बृज जैसा बताया था, इस वजह से इस गांव का नाम बरसी पड़ गया, वही ग्रामीणों का कहना है कि लगभग 5000 साल से अधिक समय से यह परंपरा चली आ रही है और आगे भी वह इस परंपरा को ऐसे ही निभाते रहेंगे.

 

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