देश भर में रंगों का त्योहार होली को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. कई जगह अलग-अलग परंपराओं से होली मनाई जाती है. होली की तरह ही होलिका दहन की परंपराएं भी कई राज्यों में अलग-अलग हैं. राजस्थान के सलूंबर जिले के सेमारी में करकेला धाम की नारियल वाली होली लोगों को लंबे समय से आकर्षित करती रही है. करकेला धाम में लोग नारियल भेंट कर होलिका जलाते हैं.
सलूंबर के सेमारी कस्बे की धनकावाड़ा ग्राम पंचायत से करीब डेढ़ किमी की दूरी पर स्थित करकेला धाम को आदिवासियों का पवित्र धार्मिक स्थान माना जाता है. स्थानीय आदिवासियों की मान्यताओं के अनुसार, होलिका को अपनी बेटी के तौर पर देखा जाता है.
सबसे पहले यहीं जलाई जाती है होलिका
आदिवासियों के धार्मिक स्थान करकेला धाम में सबसे पहले होलिका जलाई जाती है. धाम के पहाड़ी पर होने की वजह से दूर से ही होलिका दहन दिख जाता है. इसके बाद ही आस-पास के इलाकों में होली जलाई जाती है. ऐसी मान्यता है कि सबसे पहले करकेला धाम में ही होली जलनी चाहिए. यहां होलिका दहन के बाद उठने वाली आग की लपटें देख आसपास के लोग अपने यहां होलिका जलाने की तैयारी करते हैं.
होलिका को नारियल भेंट दी जाती है
होलिका को नारियल की भेंट दी जाती है. यहां रहने वाले लोग बताते हैं कि आदिवासी लोगों की मान्यता है कि पहाड़ पर स्थित करकेला धाम के पास ही होलिका प्रह्लाद को गोदी में लेकर आग में बैठी थी. भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए लीला रची. इसके चलते आग में होलिका जल गई और प्रह्लाद बच गए.
आदिवासियों का मानना है कि होलिका इसी इलाके की रहने वाली थी. इसी वजह से आदिवासियों के बीच होलिका को विदाई देने के लिए नारियल यानी श्रीफल भेंट किए जाते हैं. करकेला धाम में होलिका के साथ ही यहां नारियलों की होली जलाई जाती है. ऐसी मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति होलिका को नारियल भेंट कर कोई मन्नत मांगता है तो वो जरूर पूरी होती है. करकेला धाम में बनी धूणी लगातार जलती रहती है.