क्या आपने कभी ऐसा महसूस किया है कि कोई जाना-पहचाना इंसान आपके सामने खड़ा हो, लेकिन आप उसे पहचान न पाएं? या कोई परिचत व्यक्ति आपको नमस्कार या हेल्लो कर रहा है और आप चुपचाप खड़े हैं और उनसे बात नहीं कर पा रहे है या उन्हें भूल गए हैं. अगर ऐसा बार-बार हो रहा है, तो यह एक गंभीर समस्या हो सकती है, जिसे प्रोसोपैग्नोसिया कहते हैं. इसे आम भाषा में “फेस ब्लाइंडनेस” भी कहा जाता है. इस बीमारी में व्यक्ति लोगों के चेहरे नहीं पहचान पाते हैं . कभी-कभी यह समस्या इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि व्यक्ति अपने परिवार के सदस्यों या यहां तक कि खुद को भी आईने में पहचानने में दिक्कत महसूस करने लगता है.
इस बीमारी के कारण क्या हैं?
इस बीमारी के दो मुख्य कारण हो सकते हैं. कुछ लोगों में यह जन्मजात होती है, जिसे डिवेलपमेंटल प्रोसोपैग्नोसिया कहा जाता है. इसका मतलब है कि दिमाग का वह हिस्सा, जो चेहरे पहचानने का काम करता है, जन्म से ही सही तरीके से विकसित नहीं होता. दूसरी स्थिति में, यह बीमारी किसी दिमागी चोट, स्ट्रोक या न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर की वजह से हो सकती है. जब दिमाग का वह हिस्सा जो चेहरों को पहचानने में मदद करता है, किसी कारण से प्रभावित हो जाता है, तो व्यक्ति को चेहरों की पहचान करने में दिक्कत होने लगती है और व्यक्ति किसी को पहचानने में कठिनाई महसूस करने लगता है.
लक्षण कैसे पहचानें?
कभी-कभी लोग आवाज, कपड़ों या चलने के अंदाज से दूसरों की पहचान करने की कोशिश करते हैं. कुछ मामलों में, लोगों को फिल्मों या टीवी शो के किरदारों को पहचानने में भी दिक्कत होती है.
क्या यह बीमारी ठीक हो सकती है?
फिलहाल इस बीमारी का कोई पक्का इलाज नहीं है, लेकिन कुछ तरीके अपनाकर इसे नियंत्रित किया जा सकता है. जैसे कि दूसरे संकेतों से पहचान करना. कपड़े, आवाज, हेयरस्टाइल या शरीर की बनावट देखकर लोगों को पहचानने की कोशिश करना. इसके अलावा खास तरह की एक्सरसाइज और ट्रेनिंग से चेहरों को पहचानने की क्षमता को बेहतर बनाया जा सकता है. कई लोग इस बीमारी की वजह से खुद को अलग-थलग महसूस करने लगते हैं, ऐसे में मनोवैज्ञानिक मदद लेना फायदेमंद हो सकता है.
क्या करें अगर यह समस्या हो?
अगर आपको या आपके किसी करीबी को चेहरों को पहचानने में लगातार परेशानी हो रही है, तो इसे हल्के में न लें. किसी न्यूरोलॉजिस्ट या मनोचिकित्सक से सलाह लेना जरूरी है. सही समय पर समस्या को समझकर उस पर काम किया जाए, तो इसे काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है. इस बीमारी के बारे में जागरूकता बढ़ाना भी जरूरी है, ताकि लोग इसे समझें और इससे प्रभावित व्यक्ति को उचित सहयोग दें.