इटावा : उत्तर प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय, सैफई के ऑर्थोपेडिक्स विभाग ने चिकित्सा के क्षेत्र में एक अहम मिसाल पेश की है. 90 वर्षीय वृद्ध रविंद्र सिंह चौहान का जटिल ऑपरेशन कर उनके कृत्रिम कुल्हे को सफलतापूर्वक बदला गया और उन्हें फिर से चलने-फिरने की क्षमता प्राप्त हुई. यह मामला खास बन गया क्योंकि मरीज को पहले आगरा और फिर दिल्ली जैसे बड़े शहरों के अस्पतालों से उम्र के आधार पर लौटा दिया गया था, लेकिन सैफई के डॉक्टरों ने चुनौती स्वीकार की और अपने समर्पण से असंभव को संभव कर दिखाया.
19 जनवरी को हुए सड़क दुर्घटना में रविंद्र सिंह चौहान के बाएं कुल्हे में गंभीर चोट आई थी. पहले आगरा के एक निजी अस्पताल में उनका ऑपरेशन किया गया, जहां कृत्रिम कुल्हा प्रत्यारोपित किया गया, लेकिन ऑपरेशन के बाद मरीज को न तो राहत मिली और न ही वे चल-फिर सके. हालत बिगड़ने पर स्वजन उन्हें दिल्ली के समथरगंज अस्पताल ले गए, जहां डॉक्टरों ने अत्यधिक उम्र का हवाला देते हुए ऑपरेशन से इनकार कर दिया. निराश होकर स्वजन उन्हें सैफई ले आए, जहां विश्वविद्यालय के ऑर्थोपेडिक्स विभाग के प्रोफेसर डॉ. सुनील कुमार ने उनकी स्थिति को गंभीरता से लिया.
प्रारंभिक जांच से यह सामने आया कि पहले डाले गए कृत्रिम कुल्हे में असंतुलन था, जिसके कारण मरीज को दर्द हो रहा था और गतिशीलता पूरी तरह से समाप्त हो चुकी थी. प्रो. डॉ. सुनील कुमार ने विभागीय विशेषज्ञों की टीम के साथ गहन विचार-विमर्श किया और यह निर्णय लिया कि पुराने कृत्रिम कुल्हे को हटाकर नया, उपयुक्त कुल्हा प्रत्यारोपित किया जाए. यह निर्णय जोखिमपूर्ण था क्योंकि मरीज की उम्र 90 वर्ष थी और वे पहले ही एक असफल ऑपरेशन से गुजर चुके थे.
लेकिन सैफई की मेडिकल टीम ने चुनौती स्वीकार की और ऑपरेशन सफलतापूर्वक पूरा किया. ऑपरेशन के बाद मरीज को 22 दिन तक अस्पताल में भर्ती रखा गया, जहां नियमित फिजियोथेरेपी से उनका स्वास्थ्य बेहतर हुआ और वे फिर से चलने-फिरने लगे. फिजियोथेरेपी यूनिट के मनमीत कुमार और उनकी टीम की मेहनत और विशेषज्ञता ने मरीज के आत्मविश्वास को भी वापस लाया.
इस जटिल सर्जरी को सफलतापूर्वक पूरा करने वाली टीम में प्रो. डॉ. सुनील कुमार के अलावा डॉ. हरीश कुमार, डॉ. राजीव कुमार, डॉ. ऋषभ अग्रवाल, डॉ. मोहम्मद जावेद अब्बास, डॉ. ग्यादीन, डॉ. रवन, डॉ. शुभम राय शामिल थे. कुलपति डॉ. पीके जैन, प्रतिकुलपति प्रो. रमाकांत यादव, डीन प्रो. आदेश कुमार और चिकित्सा अधीक्षक डॉ. एसपी सिंह ने टीम को बधाई दी.
डॉ. सुनील कुमार ने बताया, “यह सर्जरी हमारे लिए चुनौतीपूर्ण थी, लेकिन सही योजना, आधुनिक संसाधनों और टीमवर्क से हम सफल हुए. यदि शरीर की रिपोर्ट अनुकूल हो, तो उम्र कभी बाधा नहीं बनती.”
रविंद्र सिंह चौहान ने अस्पताल से छुट्टी के बाद कहा, “आगरा में लाखों रुपये खर्च करने के बाद भी कोई फायदा नहीं हुआ. दिल्ली में मुझे उम्र के आधार पर लौटा दिया गया. लेकिन सैफई के डॉक्टरों ने मुझे नया जीवन दिया है. यह अस्पताल ग्रामीण क्षेत्र में होने के बावजूद किसी मेट्रो सिटी से कम नहीं है.”
सैफई विश्वविद्यालय का उद्देश्य केवल इलाज करना नहीं है, बल्कि उच्च गुणवत्ता वाली चिकित्सा सेवाएं हर तबके तक पहुंचाना है, चाहे मरीज किसी भी उम्र, पृष्ठभूमि या परिस्थिति से हो.