भारत में जब भी घर-आंगन में पौधे लगाने की बात आती है तो तुलसी का जिक्र सबसे पहले होता है, लेकिन सऊदी का एक पौधा अब पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींच रहा है. यह पौधा सऊदी के रेगिस्तानी मिट्टी को भी सोना बना रहा है. वो भी भरी गर्मी और दोपहरी में. दिलचस्प बात है कि इस पौधे का मूल यूरोप और अफ्रीका में है.
गर्म रेगिस्तान में इसका उत्पादन
सऊदी अरब के उत्तरी सीमावर्ती क्षेत्रों में पाया जाने वाला रेसिडा ल्यूटिया (Reseda lutea), जिसे सफेद मिग्नोनेट या सफेद खड़ी मिग्नोनेट भी कहा जाता है, एक सुगंधित जड़ी-बूटी है.
यह पौधा जुलाई से सितंबर के बीच उगता है और अधिकतम 60 सेंटीमीटर तक बढ़ सकता है. हरे रंग के इस पौधे में छह पंखुड़ियाँ होती हैं और इसके छोटे सफेद फूलों से सुगंध फैलती है, जो मधुमक्खियों और अन्य परागण करने वाले कीड़ों को आकर्षित करते हैं.
इससे जैव विविधता को बढ़ावा मिलता है और मृदा अपरदन में भी कमी आती है. यह पौधा रेतीली और चिकनी मिट्टी में अच्छी तरह बढ़ता है और इसकी गहरी जड़ें मिट्टी को बांधे रखती हैं, जिससे भूमि उपजाऊ बनती है. इसकी सूखा सहन करने की क्षमता इसे रेगिस्तानी इलाकों के लिए आदर्श बनाती है.
सऊदी को कैसे फायदा होता है?
अमान एनवायर्नमेंटल एसोसिएशन के अध्यक्ष नासर अल-मुजलद के अनुसार, रसेडा अल्बा का विस्तार क्षेत्र की प्राकृतिक वनस्पति विरासत का अहम हिस्सा है. यह न केवल पर्यावरणीय महत्व को बढ़ाता है, बल्कि पर्यटन को भी बढ़ावा देता है.
इस पौधे के औषधीय गुण भी महत्वपूर्ण हैं. पारंपरिक रूप से इसका उपयोग श्वसन, पाचन और त्वचा की समस्याओं के उपचार में किया जाता रहा है। इसमें सूजन-रोधी, एंटीसेप्टिक और कफ निस्सारक गुण होते हैं. इसकी मीठी सुगंध के कारण यह इत्र और पोटपुरी निर्माण में भी काम आता है, और इसकी पत्तियों से निकाला गया पीला-हरा रंग वस्त्रों की पारंपरिक रंगाई में उपयोगी होता है.
भारत में इस पौधे का स्कोप
रेसिडा ल्यूटिया भारत के लिए भी उपयोगी साबित हो सकता है. यह पौधा राजस्थान, गुजरात, हरियाणा और मध्य प्रदेश जैसे सूखा प्रभावित क्षेत्रों में उगाया जा सकता है. यह भूमि कटाव को रोकने, मरुस्थलीकरण से लड़ने और जैव विविधता बढ़ाने में मदद करता है. इसके फूल परागण में सहायक होते हैं, जिससे कृषि को लाभ मिल सकता है. इसे सजावटी पौधे के रूप में भी अपनाया जा सकता है.