1528 से 2025 तक… राम मंदिर बना भारत की आत्मा का नया प्रतीक

अयोध्या : एक सपना, जो युगों-युगों तक करोड़ों लोगों की आँखों में पलता रहा. एक आस्था, जो समय की कसौटी पर खरी उतरती रही. और एक संघर्ष, जिसने न केवल भारत के सामाजिक और धार्मिक परिदृश्य को बदला, बल्कि उसकी आत्मा को भी एक नई दिशा दी. रामनगरी अयोध्या में प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर का निर्माण अब पूर्ण हो चुका है. यह केवल एक भव्य स्थापत्य नहीं, बल्कि यह भारत की आत्मा, आस्था, परंपरा और संस्कृति का जीवंत प्रतीक बन गया है.

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500 वर्षों की प्रतीक्षा का फल
इस संघर्ष की शुरुआत 1528 ईस्वी में मानी जाती है, जब बाबर के सेनापति मीर बाकी ने रामजन्मभूमि स्थल पर बाबरी ढांचे का निर्माण कराया. तभी से यह भूमि संघर्ष और बलिदानों की गवाह बनती रही. कहा जाता है कि इस कालखंड में 76 से अधिक युद्ध हुए, हजारों लोग बलिदान हुए और असंख्य आंदोलनों ने जन्म लिया.

22-23 दिसंबर 1949 की वह ऐतिहासिक रात, जब रामलला की मूर्ति प्रकट हुई, इस संघर्ष की दिशा ही बदल गई. इसके बाद 1984 में विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व में रामजन्मभूमि मुक्ति आंदोलन की शुरुआत हुई.
1990 में कारसेवकों पर चली गोलियों ने आंदोलन को और प्रबल किया, और फिर आया 6 दिसंबर 1992 का दिन, जब बाबरी ढांचा गिरा और इतिहास एक नए मोड़ पर आ खड़ा हुआ.

न्यायिक निर्णय और मंदिर निर्माण की आधारशिला
कई वर्षों की न्यायिक प्रक्रिया के बाद नौ नवंबर 2019 को सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक निर्णय देते हुए सर्वसम्मति से रामजन्मभूमि स्थल को मंदिर निर्माण के लिए सुपुर्द कर दिया। इस फैसले ने सदियों पुराने विवाद को न्यायपूर्ण समाधान दिया.

इसके बाद 5 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भूमि पूजन कर मंदिर निर्माण की विधिवत शुरुआत की। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को मंदिर निर्माण की जिम्मेदारी सौंपी गई, जिसने पूर्ण पारदर्शिता के साथ निर्माण प्रक्रिया को आगे बढ़ाया.

शिल्पकला, श्रद्धा और संस्कृति का अद्वितीय संगम
56 महीनों की कठिन साधना और लगभग 1200 करोड़ रुपये की लागत से बना यह मंदिर नागर शैली की वास्तुकला का अप्रतिम उदाहरण है. राजस्थान के बंशी पहाड़पुर से लाए गए लाल बलुआ पत्थरों से निर्मित यह मंदिर 380 फीट लंबा, 250 फीट चौड़ा और 161 फीट ऊँचा है.

तीन मंजिलों वाले इस मंदिर में कुल 392 नक्काशीदार स्तंभ हैं, जिन पर भारत की प्राचीन शिल्पकला की छाप स्पष्ट देखी जा सकती है. मंदिर के हर कोण में धार्मिक भाव, सांस्कृतिक गौरव और शिल्प की दिव्यता समाहित है।

हजार वर्षों तक अमिट रहेगा यह मंदिर
मंदिर की नींव लगभग 50 फीट गहराई में पत्थरों की चट्टान पर बनाई गई है. यह आधार इसे प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षित रखने में सक्षम है. वैज्ञानिक तकनीकों और पारंपरिक ज्ञान के सम्मिलन से यह मंदिर अगली अनेक पीढ़ियों तक सुरक्षित और प्रभावी रहेगा. यह केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक चेतना, सामाजिक एकता और ऐतिहासिक अस्मिता का गाथागान है.

राम मंदिर: राष्ट्र की आत्मा का पुनर्जागरण
राम मंदिर भारत के उस सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक है, जिसमें एक राष्ट्र अपनी जड़ों की ओर लौटता है. यह मंदिर केवल ईंट और पत्थरों से नहीं बना, बल्कि इसमें करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था, साधना और संकल्प का समावेश है.
यह मंदिर बताता है कि संघर्ष चाहे जितना भी लंबा क्यों न हो, यदि उद्देश्य पवित्र हो और नीयत सच्ची, तो विजय निश्चित होती है। यह मंदिर “शून्य से शिखर” तक की उस यात्रा का अंतिम पड़ाव है, जहाँ भारतवर्ष की आस्था, उसकी संस्कृति और उसकी अस्मिता का दीप सदा के लिए प्रकाशित हो चुका है.

अंततः…
अयोध्या का यह नव्य रूप केवल स्थापत्य की दृष्टि से ही नहीं, बल्कि आत्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अद्वितीय है. श्रीराम जन्मभूमि का यह मंदिर अब भारत की चेतना में स्थायी रूप से स्थापित हो चुका है—एक ऐसा प्रतीक जो आने वाली पीढ़ियों को संघर्ष, श्रद्धा और स्वाभिमान की शिक्षा देता रहेगा.

 


 

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