गोंडा: जिले के सरकारी अस्पतालों की बदहाल व्यवस्था एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गई है, पत्रकार इकबाल हुसैन के इलाज के मामले ने स्वास्थ्य विभाग की संवेदनहीनता और डॉक्टरों के दोहरे रवैये को उजागर कर दिया है, जिला अस्पताल में भर्ती पत्रकार को पहले ऑपरेशन की तैयारी के साथ ब्लड चढ़ाया गया, लेकिन डीएम का पत्र पहुंचते ही डॉक्टर ने मरीज को अचानक लखनऊ रेफर कर दिया.
काशीराम कॉलोनी निवासी पत्रकार इकबाल हुसैन को हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. अतुल सिंह ने जिला अस्पताल के हड्डी वार्ड में भर्ती किया था। कूल्हे की हड्डी टूटने के कारण ऑपरेशन की जरूरत थी, जिसकी तैयारी भी लगभग पूरी कर ली गई थी, लेकिन डीएम द्वारा भेजे गए पत्र के बाद डॉक्टर का रुख बदल गया और मरीज को रेफर कर दिया गया.
परिजनों ने किसी तरह इकबाल को एक निजी नर्सिंग होम में भर्ती कराया। बताया गया कि पत्रकार के पास निजी ऑपरेशन के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए उन्होंने उत्तर प्रदेश श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के जिलाध्यक्ष कैलाश नाथ वर्मा के माध्यम से डीएम को पत्र लिखा था, ताकि सरकारी मदद मिल सके। लेकिन मदद की बजाय, मामला और उलझ गया.
इस पूरे प्रकरण ने जिला अस्पताल की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं, बताया जा रहा है कि, यहां कार्यरत कई डॉक्टर खुलेआम प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहे हैं। कुछ के खुद के नर्सिंग होम हैं, तो कुछ दूसरों के नाम पर चलने वाले क्लीनिक में पूरा समय दे रहे हैं। आरोप है कि डॉ. अतुल सिंह का भी एक नर्सिंग होम जिला अस्पताल के सामने ही चल रहा है, जहां वह सरकारी मरीजों को रेफर करते हैं.
जब डॉक्टर से पूछा गया कि पहले ऑपरेशन को लेकर सहमति थी, लेकिन बाद में फैसला क्यों बदला, तो उन्होंने जवाब दिया कि मरीज का हीमोग्लोबिन चार यूनिट ब्लड चढ़ाने के बाद भी 6% से ऊपर नहीं जा रहा था। ऐसे में बिना ICU और वेंटिलेटर के ऑपरेशन करना संभव नहीं था, जो सुविधा अस्पताल में मौजूद नहीं है.
अब सवाल यह उठता है कि, अगर अस्पताल में बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं, तो गंभीर मरीजों को भर्ती ही क्यों किया जाता है? और क्या डीएम का पत्र किसी डॉक्टर का रवैया बदलने के लिए काफी होता है?
यह मामला सिर्फ एक पत्रकार का नहीं, बल्कि जिले के हर उस गरीब मरीज का है जो सरकारी व्यवस्था के भरोसे इलाज कराने आता है.