आमतौर पर जहां लोग 60 की उम्र के बाद आराम की ज़िंदगी जीना पसंद करते हैं, वहीं महाराष्ट्र के कराड तालुका के नांदगांव गांव की 65 वर्षीय मंगला आबा आवळे ने इस सोच को चुनौती दी है. अपने बेटे की मदद और आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश करते हुए उन्होंने ऑटो रिक्शा चलाना शुरू किया है. भीड़भाड़ वाले ट्रैफिक में बुंगाट रिक्शा चलाती मंगला दादी लोगों के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं.
बेटे का सहारा बनने की ठानी
मंगला दादी के पति का देहांत तब हो गया था जब उनके बच्चे छोटे थे. अकेले दम पर उन्होंने मजदूरी कर एक बेटा और तीन बेटियों की परवरिश की. बेटा अब एसटी बस का ड्राइवर है और बेटियों की शादी हो चुकी है. अपने बेटे के परिवार की आर्थिक मदद और अपनी सेहत के खर्च निकालने के लिए मंगला दादी ने फिर एक बार कमर कस ली इस बार हाथ में ऑटो रिक्शा की स्टेयरिंग थामी.
15 दिनों में सीख लिया ऑटो चलाना
शुरुआत में बेटे ने उन्हें ऑटो चलाने की ट्रेनिंग दी. महज 15 दिनों की प्रैक्टिस में ही उन्होंने ट्रैफिक भरे रास्तों में भी ऑटो चलाना शुरू कर दिया. सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक वे कराड से उंडाळे मार्ग पर यात्रियों को सफर कराती हैं. रोज़ाना करीब 500 से 700 रुपये की आमदनी होती है.
बीमारियों से हार नहीं मानी
शुगर जैसी बीमारी से ग्रस्त होने के बावजूद मंगला दादी ने कभी हार नहीं मानी. उन्होंने कहा कि घर बैठकर बीमार होने से बेहतर है, व्यस्त रहना और काम करना. उनका आत्मविश्वास, जज़्बा और साहस देखने वालों को हैरान कर देता है.
लोगों में बनी चर्चा का विषय
उनके साहस को देखकर लोग दादी की जमकर तारीफ कर रहे हैं. महिलाएं, खासकर बुजुर्ग महिलाएं, मंगला दादी को एक रोल मॉडल की तरह देख रही हैं. उनकी कहानी दिखाती है कि उम्र सिर्फ एक संख्या है और अगर मन में इच्छा हो तो कोई भी काम किसी भी उम्र में किया जा सकता है.