पहलगाम हमले के बाद BJP सांसद निशिकांत दुबे ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा है कि आर या पार पाकिस्तान के कब्जे का कश्मीर हमारा होगा, धैर्य रखिए यह मोदी की सरकार है जिसके गृहमंत्री अमित शाह जी हैं. निशिकांत दुबे ने इस बारे में एक्स पर पोस्ट करते हुए सेकुलरिज्म का भी मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा कि देश का बंटवारा जब हिंदू और मुसलमान के नाम पर हो गया तो केवल वोट बैंक के लिए अल्पसंख्यक के नाम पर मुसलमानों को ज़्यादा अधिकार कैसे दिया गया.
बीजेपी सांसद ने कहा कि हिंदुओं को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने वालों को आज पहलगाम की घटना पर बताना चाहिए कि आज की हत्या धर्म के आधार पर की गई या नहीं? लानत है सेकुलरवादी नेताओं पर.
कुछ ही दिन पहले सुप्रीम कोर्ट पर बरसने वाले गोड्डा के सांसद निशिकांत दुबे ने कहा कि आर या पार पाकिस्तान के कब्जे का कश्मीर हमारा होगा, धैर्य रखिए यह मोदी की सरकार है जिसके गृहमंत्री अमित शाह जी हैं.
निशिकांत दुबे ने संविधान प्रदत मौलिक अधिकारों के कुछ प्रावधानों को खत्म करने पैरवी की है. उन्होंने कहा कि अब संविधान के आर्टिकल 26 से 29 तक को खत्म करने का समय है.
आइए अब हम समझते हैं कि संविधान का अनुच्छेद 26, 27, 28 और 29 क्या है जिसे निशिकांत दुबे खत्म करना चाहते हैं.
दरअसल भारतीय संविधान के अनुच्छेद 26, 27, 28 और 29 धार्मिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक-शैक्षिक से जुड़े मौलिक अधिकारों से संबंधित हैं.
अनुच्छेद 26: धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता
संविधान का यह अनुच्छेद व्यक्तियों और धार्मिक संप्रदायों को उनके धार्मिक कार्यों को स्वतंत्र रूप से संचालित करने की आज़ादी देता है.
इस अनुच्छेद के अनुसार प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसका कोई हिस्सा धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं की स्थापना कर सकता है और उसका रखरखाव का अधिकार रखता है.
अपने धार्मिक मामलों का प्रबंधन स्वतंत्र रूप से कर सकता है.
धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए संपत्ति प्राप्त कर सकता है और उसे मैनेज कर सकता है.
हालांकि इस अनुच्छेद के प्रावधान सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन हैं.
अनुच्छेद 27: धर्म के प्रचार हेतु कर से छूट
यह अनुच्छेद कहता है कि किसी भी व्यक्ति को ऐसे कर का भुगतान करने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा, जिसका उपयोग विशेष रूप से किसी धर्म या धार्मिक संस्था के प्रचार के लिए किया जाए.
यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि राज्य करों के माध्यम से किसी धर्म को बढ़ावा न दे.
अनुच्छेद 28: धार्मिक शिक्षा या पूजा में स्वतंत्रता
अनुच्छेद 28 अंतःकरण की स्वतंत्रता के अधिकार से संबंधित है और शैक्षणिक संस्थाओं में विद्यार्थियों और शिक्षकों को धार्मिक शिक्षा या पूजा में भाग लेने के लिए बाध्य किए जाने से संरक्षण प्रदान करता है. यह अनुच्छेद कहता है कि ऐसे शैक्षणिक संस्थान जो राज्य के पूर्ण नियंत्रण में हैं, वहां धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी.
देश का बँटवारा जब हिंदू व मुसलमान के नाम पर हो गया तो केवल वोट बैंक के लिए अल्पसंख्यक के नाम पर मुसलमानों को ज़्यादा अधिकार देकर हिंदुओं को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने वालों को आज पहलगाम की घटना पर बताना चाहिए कि आज की हत्या धर्म के आधार पर की गई या नहीं? लानत है सेकुलर वादी…
— Dr Nishikant Dubey (@nishikant_dubey) April 22, 2025
ऐसे स्कूल जो राज्य से सहायता प्राप्त करते हैं, वे धार्मिक शिक्षा तभी दे सकते हैं जब वह अनिवार्य न हो और छात्र की सहमति हो.
छात्रों को धार्मिक उपासना में भाग लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता.
यह अनुच्छेद शिक्षा संस्थानों में धार्मिक स्वतंत्रता को सुनिश्चित करता है.
अनुच्छेद 29: अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक और शैक्षणिक अधिकार
संविधान का यह प्रावधान अल्पसंख्यकों को उनकी संस्कृति और भाषा को सुरक्षित रखने का अधिकार देता है.
यह अनुच्छेद किसी भी नागरिक समूह को अपनी भाषा, लिपि या संस्कृति संरक्षित करने का अधिकार देता है.
यह अनुच्छेद कहता है कि धर्म, नस्ल, जाति या भाषा के आधार पर सरकारी या सहायता प्राप्त शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश से वंचित नहीं किया जाएगा.