भारत-पाक बॉर्डर पर स्थित वह मंदिर, जिस पर बेअसर रहे पाकिस्तान के सैकड़ों बम…

कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान में जंग जैसे हालात बन गए हैं. दोनों देशों ने एक दूसरे के साथ कई समझौतों पर भी रोक लगा दी है. ब्रिटिश हुकूमत से आजादी मिलने और बंटवारे के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच अभी तक कई बार इस तरह का तनाव रह चुका है. तीन बार दोनों देशों के बीच आमने-सामने की जंग भी हुई. जिसमें पाकिस्तान को भारतीय सेना के आगे घुटने टेकने पड़ गए. साल 1965 में भी भारत और पाकिस्तान के बीच बड़ा युद्ध हुआ था. इस लड़ाई में देवी के एक ऐसे मंदिर की कहानी भी दर्ज है, जिसके चमत्कार के किस्से आज तक लोग नहीं भूले हैं.

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तनोट माता का मंदिर राजस्थान के जैसलमेर से लगभग 120 किलोमीटर की दूरी पर भारत-पाकिस्तान सीमा के पास स्थित है. 12वीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण जैसलमेर के भाटी राजपूत शासक महारावल लोनकावत ने कराया था. यह मंदिर तनोट माता को समर्पित है, जिन्हें देवी दुर्गा का अवतार माना जाता है. भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 और 1971 में हुए युद्ध में इस मंदिर के चमत्कार आज भी पाकिस्तानी सेना के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं है.

पहले किस्से की शुरुआत 16 नवंबर 1965 की रात से होती है. पाकिस्तानी सेना की बमबारी की वजह से तनोट चौकी पर तैनात भारतीय सेना के करीब 200 सैनिकों का कनेक्शन अपने साथियों से टूट गया था. कभी भी पाकिस्तान की तरफ से हमला हो सकता था. इसी रात कई सैनिकों के सपने में तनोट माता नजर आईं. उन्होंने सपने में सैनिकों से कहा कि, उन्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है, माता उनकी रक्षा करेंगी.

17 नवंबर की सुबह से ही पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सेना की तनोट पोस्ट पर गोले दागने शुरू कर दिए. पाकिस्तान की सेना ने मंदिर के आसपास करीब 3 हजार बम फेंके. लेकिन माता का ऐसा चमत्कार नजर आया कि कोई भी बम सही निशाने पर नहीं गिरा. जो मंदिर में आकर गिरा तो वह फटा नहीं. इसी बीच भारतीय सेना के वीर जवानों ने पाकिस्तानी सेना को मुंह तोड़ जवाब देना शुरू कर दिया. माता के आशीर्वाद से पाकिस्तानी सेना वहां कुछ भी करने में असफल रह गई.

बदला लेने की फिराक में बाज नहीं आया था पाकिस्तान
साल 1971 में दोनों देशों की सेनाओं के बीच एक बार फिर लड़ाई शुरू हुई. बांग्लादेश (उस समय पूर्वी पाकिस्तान) की आजादी के लिए हो रही इस जंग में भारतीय सेना का ध्यान बांटने के लिए पाकिस्तान की सेना ने राजस्थान से जुड़े बॉर्डर पर सीधा गोलीबारी शुरू कर दी. 1965 में मिली चोट का बदला लेने के लिए पाकिस्तान की सेना ने तनोट गांव के पास भारतीय सेना की लोंगेवाला पोस्ट पर हमला कर दिया. उस समय वहां भारतीय सेना के सिर्फ 120 सैनिक ही मौजूद थे, जबकि पाकिस्तान की सेना पूरी तैयारी के साथ थी.

इसके बावजूद भारतीय सेना के जवानों ने मां तनोट का आशीर्वाद लेकर शहादत की परवाह न करते हुए पाकिस्तान की सेना से आमने-सामने की जंग की और उन्हें धूल चटाकर वहां से भगा दिया. 16 दिसंबर को भारतीय सेना ने लोंगेवाला में जीत हासिल की थी. इसी वजह से 16 दिसंबर को विजय दिवस के रूप में भी मनाया जाता है.

बॉर्डर फिल्म भी लोंगेवाला में हुई जंग पर ही आधारित है, इसी वजह से उसमें मां तनोट मंदिर को दिखाया गया है. ऐसा कहा जाता है कि मां तनोट का ही चमत्कार था जो पाकिस्तान की भारी भरकम सेना भी भारतीय सेना का कुछ नहीं बिगाड़ पाई.

16 दिसंबर का दिन था, जब भारतीय सेना ने लोंगेवाला में यह जीत हासिल की थी. इसी वजह से 16 दिसंबर को विजय दिवस के रूप में भी मनाया जाता है. बॉर्डर फिल्म भी लोंगेवाला में हुई जंग पर ही आधारित है, इसी वजह से उसमें मां तनोट मंदिर को दिखाया गया है.

ऐसा कहा जाता है कि मां तनोट का ही चमत्कार था जो पाकिस्तान की भारी भरकम सेना भी भारतीय सेना का कुछ नहीं बिगाड़ पाई. युद्ध रुकने के बाद तनोट माता के मंदिर का चार्ज बीएसएफ ने ले लिया. तबसे बीएसएफ ही माता के मंदिर का ध्यान रख रही है. आज इस मंदिर को बम वाली माता के मंदिर से भी जाना जाता है.

 

 

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