भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने आर्कटिक सर्किल इंडिया फोरम 2025 में रविवार को कहा कि भारत के साथ गहरे संबंधों के लिए यूरोप को कुछ संवेदनशीलता और पारस्परिक हितों का प्रदर्शन करना होगा. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि नई दिल्ली दोस्त की तलाश कर रही है, न कि ज्ञान (उपदेशकों) देने वालों की.
जयशंकर ने एक सत्र को संबोधित कहते हुए कहा कि भारत ने हमेशा रूसी यथार्थवाद की वकालत की है और संसाधन प्रदाता और उपभोक्ता के रूप में भारत और रूस के बीच महत्वपूर्ण सामंजस्य और दोनों देश एक-दूसरे के पूरक हैं.
विदेश मंत्री ने रूस को शामिल किए बिना रूस-यूक्रेन संघर्ष का समाधान खोजने के पश्चिम के पहले के कोशिशों की भी आलोचना की और कहा कि इसने यथार्थवाद (realism) की बुनियादी बातों को चुनौती दी है.
‘अमेरिकी यथार्थवाद का भी हूं समर्थक’
उन्होंने ‘आर्कटिक सर्किल इंडिया फोरम’ में कहा, ‘जिस तरह मैं रूसी यथार्थवाद का समर्थक हूं, उसी तरह मैं अमेरिकी यथार्थवाद का भी समर्थक हूं.’
उन्होंने कहा, ‘मैं समझता हूं कि आज के अमेरिका के साथ जुड़ने का सबसे अच्छा तरीका हितों की पारस्परिकता खोजना है, न कि वैचारिक मतभेदों को सामने रखना और फिर इसे साथ मिलकर काम करने की संभावनाओं को धुंधला कर देगा.’
विदेश मंत्री आर्कटिक क्षेत्र में विकास के वैश्विक परिणामों तथा बदलती विश्व व्यवस्था के क्षेत्र पर पड़ने वाले प्रभाव पर विस्तार से चर्चा कर रहे थे.
यूरोप पर तीखा हमला
यूरोप से भारत की अपेक्षाओं पर एक सवाल का जवाब देते हुए जयशंकर ने कहा कि उसे ज्ञान (उपदेश) देने से आगे बढ़कर पारस्परिकता के ढांचे के आधार पर काम करना होगा. उन्होंने कहा, ‘जब हम दुनिया की ओर देखते हैं, तो हम पार्टनर की तलाश करते हैं. हम प्रचारकों की तलाश नहीं करते, खास तौर पर ऐसे प्रीचर (उपदेशक) जो विदेश में जो उपदेश देते हैं, उसे अपने देश में नहीं लागू करते.’
विदेश मंत्री ने कहा, ‘मुझे लगता है कि यूरोप का कुछ हिस्सा अभी-भी इस समस्या से जूझ रहा है. इसमें कुछ बदलाव आया है. पर यूरोप वास्तविकता की जांच के एक निश्चित क्षेत्र में प्रवेश कर चुका है.’ उन्होंने कहा, ‘अब वे इस दिशा में आगे बढ़ पाते हैं या नहीं, ये हमें देखना होगा.’
उन्होंने कहा, ‘लेकिन हमारे दृष्टिकोण से यदि हमें साझेदारी विकसित करनी है तो कुछ समझ होनी चाहिए, कुछ संवेदनशीलता होनी चाहिए, हितों में पारस्परिकता होनी चाहिए तथा ये अहसास होना चाहिए कि दुनिया कैसे काम करती है.’
जयशंकर ने कहा, ‘और मुझे लगता है कि ये सभी काम यूरोप के विभिन्न भागों में अलग-अलग स्तर पर प्रगति पर हैं. इसलिए कुछ आगे बढ़े हैं, कुछ थोड़े कम.’
‘आर्कटिक में बढ़ रही है हमारी भागीदारी’
केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘आर्कटिक के साथ हमारी भागीदारी बढ़ रही है. अंटार्कटिक के साथ हमारी भागीदारी पहले से भी अधिक है जो अब 40 साल से अधिक हो गई है. हमने कुछ साल पहले आर्कटिक नीति बनाई है. स्वालबार्ड पर केएसएटी के साथ हमारे समझौते हैं जो हमारे अंतरिक्ष के लिए प्रासंगिक है. इस दुनिया पर सबसे अधिक युवा लोगों वाले देश के रूप में, आर्कटिक में जो कुछ भी होता है, वह हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है… जिस दिशा में चीजें आगे बढ़ रही हैं, उसके परिणाम न केवल हमें बल्कि पूरी दुनिया को महसूस होंगे.’
भारत-रूस संबंधों पर उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच संसाधन प्रदाता और संसाधन उपभोक्ता के रूप में महत्वपूर्ण सामंजस्य और इस मामले में एक-दूसरे के पूरक हैं.
‘संघर्ष के वक्त मास्को के संपर्क में रहा भारत’
उन्होंने कहा, ‘जहां तक रूस का सवाल है, हमने हमेशा ये विचार रखा है कि एक रूसी यथार्थवाद है. जिसके हम पक्षधर हैं.’ रूस-यूक्रेन संघर्ष के दौरान, नई दिल्ली मास्को के साथ संपर्क में रहा तथा पश्चिम में बढ़ती बेचैनी के बावजूद उसने रूसी कच्चे तेल की खरीद बढ़ा दी.