फिटनेस न वैधता, पंजीकरण भी समाप्त, फिर भी पुलिस, परिवहन और तमाम प्रशासनिक व्यवस्थाओं के सामने मौत बनकर दौड़ती बस ने जब राजधानी में मंत्रालय और मुख्यमंत्री निवास से कुछ दूरी पर हादसे को अंजाम दे दिया, तब सरकार की नींद खुली और हमेशा की तरह भारी भरकम निर्देश जारी कर दिए गए।
सोमवार को भोपाल में ब्रेक फेल हुई अनफिट बस ने कई निर्दोष लोगों को रौंद दिया। युवा डॉक्टर आयशा की जान ले ली, जिसकी चंद दिन में ही शादी होनी थी। घर में शादी की तैयारियों के बीच मातम पसरा है।
अस्पताल में आग लग जाए, पटाखा फैक्ट्री विस्फोट निर्दोषों की जान ले ले, हिंदू लड़कियां लव जिहाद की शिकार हो जाएं, उनसे दुष्कर्म किया जाए या फिर सड़कों पर मौत बनकर दौड़ते वाहनों से रेड सिग्नल पर रुककर कानून का पालन करने वालों की मौत हो जाए।
लापरवाही के सुशासन मॉडल का ये कैसा रंग चढ़ा
प्रशासनिक लापरवाही के चलते ऐसी किसी भी घटना में सरकार सुशासन मॉडल की बात दोहराते हुए ऐसे भारी-भरकम निर्देश देती है, मानो अगले दिन से सब कुछ यूं सुधर जाएगा कि घटनाओं की पुनरावृत्ति कभी होगी ही नहीं, लेकिन लापरवाही के सुशासन मॉडल का रंग प्रशासन पर कुछ यूं चढ़ा है कि यह उतरना तो दूर, हल्का भी नहीं होता।
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Bhopal News: अनफिट बस के सड़क पर दौड़ने का जिम्मेदार कौन?, जानलेवा साबित हो रहा ‘लापरवाही का सुशासन मॉडल’
Unfit Vehicle on Road: भोपाल में एक अनफिट बस के हादसे ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। बस की फिटनेस और पंजीकरण समाप्त होने के बावजूद यह सड़क पर दौड़ रही थी। हादसे में एक युवा डॉक्टर की मौत हो गई। प्रशासनिक लापरवाही के चलते ऐसे हादसे होते रहते हैं और सरकार बाद में चौकन्नी होती है।
By Dhananajay Pratap Singh
Edited By: Prashant Pandey
Publish Date: Wed, 14 May 2025 10:36:27 AM (IST)
Updated Date: Wed, 14 May 2025 10:40:33 AM (IST)
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Bhopal News: अनफिट बस के सड़क पर दौड़ने का जिम्मेदार कौन?, जानलेवा साबित हो रहा ‘लापरवाही का सुशासन मॉडल’
भोपाल में सड़क पर लोगों को कुचलने वाली अनफिट बस। फाइल फोटो
HighLights
बस की टक्कर ने युवा डॉक्टर आयशा की जान ले ली।
कुछ दिन बाद डॉक्टर आयशा की शादी होने वाली थी।
अनफिट के बस के पहियों ने सारी खुशियों को रौंद दिया।
धनंजय प्रताप सिंह, नईदुनिया, भोपाल (MP News)। फिटनेस न वैधता, पंजीकरण भी समाप्त, फिर भी पुलिस, परिवहन और तमाम प्रशासनिक व्यवस्थाओं के सामने मौत बनकर दौड़ती बस ने जब राजधानी में मंत्रालय और मुख्यमंत्री निवास से कुछ दूरी पर हादसे को अंजाम दे दिया, तब सरकार की नींद खुली और हमेशा की तरह भारी भरकम निर्देश जारी कर दिए गए।
सोमवार को भोपाल में ब्रेक फेल हुई अनफिट बस ने कई निर्दोष लोगों को रौंद दिया। युवा डॉक्टर आयशा की जान ले ली, जिसकी चंद दिन में ही शादी होनी थी। घर में शादी की तैयारियों के बीच मातम पसरा है।
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लापरवाही के सुशासन मॉडल का ये कैसा रंग चढ़ा
प्रशासनिक लापरवाही के चलते ऐसी किसी भी घटना में सरकार सुशासन मॉडल की बात दोहराते हुए ऐसे भारी-भरकम निर्देश देती है, मानो अगले दिन से सब कुछ यूं सुधर जाएगा कि घटनाओं की पुनरावृत्ति कभी होगी ही नहीं, लेकिन लापरवाही के सुशासन मॉडल का रंग प्रशासन पर कुछ यूं चढ़ा है कि यह उतरना तो दूर, हल्का भी नहीं होता।
ऐसे निर्देश फौरी तौर पर भले चर्चा में आ जाएं, पर कागजों के बाहर कभी नहीं निकलते हैं। यही वजह है कि ऐसे हादसे भी कभी नहीं रुकते। सड़कों पर जांच के नाम पर वाहन चालकों को धर-दबोचने में माहिर पुलिस और परिवहन कर्मियों की नजर इस बस पर कैसे नहीं पड़ी, यह प्रदेश का बच्चा-बच्चा भी जानता है। ऐसे न जाने कितनी बस अभी भी प्रशासनिक लापरवाही के दम पर मौत बनकर दौड़ रही हैं, उसकी गिनती भी करना संभव नहीं।
प्रयागराज महाकुंभ के दौरान हुई 550 से ज्यादा दुर्घटनाएं
बड़ा सवाल है कि क्या ऐसे वाहनों के खिलाफ कार्रवाई के लिए दिया गया निर्देश जमीन पर उतर सकेगा। ऐसे निर्देशों के अमल पर संशय और सवाल इसलिए लाजिमी हो जाता है कि इसी वर्ष प्रयागराज महाकुंभ के दौरान भी करीब 550 से अधिक दुर्घटनाएं जबलपुर से उत्तर प्रदेश की सीमा तक हुईं, इनमें 192 लोग अकाल मौत के शिकार हुए।
ये दुर्घटनाएं एक दिन में नहीं हुईं, बल्कि डेढ़ महीने में हुई, लेकिन परिवहन विभाग या सरकार ने उन्हें रोकने, नियंत्रित करने का कोई प्रयास नहीं किया। 16 फरवरी 2021 को याद करें तो हमें रीवा-सीधी की वह बस दुर्घटना की याद दिलाती है, जिसमें 48 लोगों की मौत हुई।
यह यात्री बस अपना मार्ग बदल कर जा रही थी, इसका जिम्मेदार भी परिवहन विभाग था। उसकी जांच रिपोर्ट में क्या आया, किसी को पता भी नहीं होगा। प्रति वर्ष सड़क दुर्घटनाएं बढ़ रही हैं, लेकिन उन्हें कैसे नियंत्रित किया जाए, कहीं कोई चिंता नहीं कर रहा है।
वसूली से ही नहीं मिलती परिवहन विभाग के अमले को फुर्सत
भोपाल के ताजा मामले की प्रारंभिक जांच में भोपाल के संभागायुक्त संजीव सिंह ने इसे प्रशासनिक लापरवाही माना है, यानी यह तो तय हो गया कि जिस निर्दोष डाक्टर आयशा को जान गंवानी पड़ी, उसकी मौत का जिम्मेदार प्रशासन है। ऐसा हादसा पहली बार नहीं हुआ है।
कई बड़े-बड़े हादसे हुए और जांच के नाम पर सदैव ही अधिकारियों का निलंबन होता रहा है, कुछ दिन बाद वे बहाल हो जाते हैं और मामला खत्म हो जाता है। परिवहन विभाग केवल राज्य की सीमा पर चौथ वसूली के लिए चेकिंग कर रहा है।
ऑनलाइन कामकाज के प्रयास फेल
हर जिले में उसके कार्यालय में बिना रिश्वत दिए लाइसेंस नहीं बन रहे हैं। ऑनलाइन कामकाज के सारे प्रयास फेल रहे हैं। फिटनेस चेकिंग, नवीनीकरण के सारे कामकाज में भाड़े के कर्मचारी यानी परिवहन विभाग के दलाल मोर्चा संभाले हुए हैं। यातायात पुलिस का काम केवल सीट बेल्ट और हेलमेट की चेकिंग के नाम पर हो रही वसूली तक सिमट गया है।
ऐसे में सुशासन का दावा कितना मजबूत है, समझा जा सकता है। यह बात चौंकाती है कि जहां सरकार बैठी है, वहीं अनफिट बस मौत बनकर दौड़ रही है और कोई देखने वाला नहीं है। सुशासन का दावा वहीं ध्वस्त हो जाता है, जब हादसे लापरवाही की वजह से होते हैं और सरकार बाद में चौकन्नी होती है।
यदि समय रहते निर्देशों का पालन हो, प्रशासनिक कसावट के साथ मैदानी स्तर पर सख्त कार्रवाई की जाए, तो ऐसे हादसे रुकेंगे और सुशासन का दावा मजबूत भी होगा। इसी दिन का इंतजार पूरे प्रदेश को है।