सुप्रीम कोर्ट में आया ऐसा मामला, जिससे सन्न रह गए जज और कोर्ट रूम में मौजूद वकील..

सुप्रीम कोर्ट में एक ऐसा मामला सामने आया, जब जज और कोर्ट रूम में मौजूद सभी वकील सन्न रह गए. सर्वोच्च अदालत में दाखिल मामले में ही फर्जीवाड़ा किया गया. ताकि अदालत पक्ष में आदेश जारी कर दे और ऐसा हुआ भी लेकिन जब हकीकत सामने आई तो सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल आदेश वापस ले लिया. साथ ही जांच के आदेश भी जारी कर दिए. मुकदमा कुछ ऐसा है, जिसमें सर्वोच्च अदालत के लिए यह जानना जरूरी है कि प्रतिवादी की तरफ से पेश वकील कहीं वादीपक्ष की मिलीभगत से तो नहीं पेश हुआ. अगर ऐसा हो तो अदालत के सामने मुकदमों की लंबी फेरहिस्त के साथ वादी-प्रतिवादी के वकीलों की तस्दीक की मुसीबत भी खड़ी हो जाएगी.

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दरअसल सर्वोच्च अदालत में कोई भी आवेदन, याचिका, कैविएट या अन्य कोई दस्तावेज अदालत द्वारा तय व्यवस्था एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड (एओआर) के जरिए ही दाखिल किया जा सकता है. एओआर की जिम्मेदारी होती है कि वह संबंधित पक्ष के निर्देश पर ही आगे बढ़े. जबकि प्रतिवादी ने इस मामले में मुकदमेबाजी सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच जाने की जानकारी होने से भी इनकार कर दिया. वह भूमि संबंधित विवाद में निचली अदालत और हाई कोर्ट में जीत हासिल कर चुका था.

फर्जीवाड़ा करके अपने पक्ष में आदेश करा लिया

अब उसका आरोप है कि सुप्रीम कोर्ट में उसके खिलाफ याचिका दाखिल करने वाले पक्ष ने फर्जीवाड़ा करके अपने पक्ष में आदेश करा लिया. सर्वोच्च अदालत ने स्थिति की गंभीरता के मद्देनजर आदेश तत्काल वापस ले लिया क्योंकि अगर यह सच है तो यह सीधे तौर पर न्यायिक प्रक्रिया के साथ खिलवाड़ और धोखाधड़ी है. जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री को मामले की आंतरिक जांच कर तीन सप्ताह में रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है.

साथ ही सुनवाई के दौरान कोर्ट ने चेतावनी दी कि दोषियों के खिलाफ कड़ा कदम उठाया जाएगा. इस मामले में एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया जा सकता है. प्रतिवादी हरीश जायसवाल की ओर से पेश वकील ज्ञानंत सिंह और अभिषेक राय ने कोर्ट से 13 दिसंबर 2024 के आदेश वापस लेने की मांग की और पीठ को बताया कि उसने ना तो कोई समझौता किया है और ना ही सुप्रीम कोर्ट में किसी वकील को प्रतिनिधित्व के लिए नियुक्त किया.

वकील ने क्या कहा?

ऐसे में यह सामने आया कि जिस वकील ने कथित तौर पर उस नकली पक्ष की ओर से पेशी की थी. वह अब वकालत नहीं करते है और उन्हें इस मामले की कोई जानकारी नहीं थी. उन्होंने यह भी कहा कि उनका मुवक्किल हरीश जायसवाल ने ना तो सुप्रीम कोर्ट में कोई वकील नियुक्त किया है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाले विपिन बिहारी सिन्हा उर्फ विपिन प्रसाद सिंह के साथ कोई समझौता नहीं किया था. प्रतिवादी के वकील ने आरोप लगाया कि विपिन बिहारी सिन्हा उर्फ विपिन प्रसाद सिंह ने फर्जीवाड़े करके सुप्रीम कोर्ट का आदेश हासिल किया है.

फर्जीवाड़े का आरोप लगाने वाले अर्जीकर्ता जिनकी उम्र 90 वर्ष से ज्यादा है, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कोर्ट में मौजूद थे. उनके वकील का कहना था कि इस मामले में निचली दोनों अदालतों और पटना हाईकोर्ट ने उनके हक में फैसला दिया था और विपिन बिहारी सिन्हा की याचिका खारिज कर दिया था. वकीलों ने कहा कि उस याचिका में विपिन बिहारी सिन्हा ने जमीन बिक्री समझौता होने का दावा किया था.

कानून और नैतिकता का उल्लंघन

जमीन की कीमत 63000 रुपये भुगतान करने के बावजूद बिक्री डीड न करने का आरोप लगाया था. प्रतिवादी की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता ने ना केवल कानून और नैतिकता का उल्लंघन किया है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के साथ भी धोखा किया है. यदि इस धोखाधड़ी को सुधारा नहीं गया तो ऐसे दुर्भावनापूर्ण याचिकाकर्ता भविष्य में भी न्यायालय को गुमराह करने का प्रयास करते रहेंगे.

ऐसा नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट में पहली बार इस तरह का फर्जीवाड़ा देखने को मिल रहा हो, इससे पहले नीतीश कटारा मामले में गवाह भगवान सिंह के नाम से झूठी याचिका दाखिल करने के मामले की सीबीआई जांच का आदेश दिया दे चुका है. इस मामले में प्रतिवादी सुखपाल, रिंकी और उनके सहयोगियों ने हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को धोखा देने और न्याय प्रणाली की साख को दांव पर लगाने की कोशिश की है, क्योंकि उन्होंने हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए जाने वाले दस्तवेज़ों को जाली बनाने के साथ भगवान सिंह के नाम पर उनकी जानकारी, सहमति के बिना दाखिल की गई झूठी कार्यवाही की साजिश की. लिहाजा इसकी जांच पड़ताल सीबीआई को सौंपना उचित है.

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