मध्य प्रदेश में अधिग्रहित मंदिरों में पंडितों की नियुक्ति पर बवाल शुरू हो गया है. आरोप है कि ये नियुक्तियां योग्यता के आधार पर करने के बजाय एक जाति विशेष को ध्यान में रखते हुए की जा रहीं है. इन नियुक्तियों के खिलाफ जबलपुर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल हो गई है. वहीं हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए राज्य सरकार को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा है. हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैद और न्यायमूर्ति विवेक कुमार जैन की खंडपीठ में हुई.
याचिकाकर्ता के वकील रामेश्वर सिंह ठाकुर के मुताबिक इन नियुक्तियों के संबंध में धर्मस्व विभाग की ओर से परिपत्र जारी किया गया है. इसे देखने से साफ हो जाता है कि ये नियुक्तियां जाति के आधार पर की जा ही है. यह ना केवल पक्षपातपूर्ण और असंवैधानिक है, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 13, 14, 15 और 16 का उल्लंघन भी है. वकील ठाकुर के अनुसार सरकार का यह फैसला योग्यता की अनदेखी तो करता ही है, सरकारी नौकरियों में समान अवसर के अधिकार को भी ठेस पहुंचाता है.
350 मंदिरों में होनी है नियुक्ति
बता दें कि मध्यप्रदेश सरकार ने राज्य में अब तक 350 से अधिक मंदिरों का अधिग्रहण किया है. इन सभी में मंदिरों में पंडितों-पुजारियों की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हो गई है. इस संबंध में राज्य के धर्मस्व विभाग ने परिपत्र जारी कर दिया है. इस परिपत्र पर राज्य में बड़ा विवाद शुरू हो गया है. मध्य प्रदेश अनुसूचित जाति, जनजाति अधिकारी कर्मचारी संघ ने भी सरकार के इस निर्णय का विरोध करते हुए आपत्ति दर्ज कराई है.
चार सप्ताह में सरकार को देना है जवाब
संघ ने आरोप लगाया कि यह नीति एक खास वर्ग को अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए लाई गई है. इससे सामाजिक संतुलन भी प्रभावित हो सकता है. बताया गया है कि आपत्ति दर्ज कराने के बावजूद सरकार की ओर से कोई ठोस जवाब नहीं मिला है. इसकी वजह से हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई है. हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए अगली तारीख चार सप्ताह बाद की दी है. इस तारीख पर सरकार को कोर्ट में अपना पक्ष रखना है.